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हताश लोगों को आसानी से मृत्यु का एक माध्यम मिल जाएगा सुसाइड कैप्सूल

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सनत जैन

हाल ही में स्विट्जरलैंड में सुसाइड कैप्सूल के माध्यम से आत्महत्या ने पूरी दुनिया में एक गहरा विवाद खड़ा कर दिया है। इस कैप्सूल का निर्माण नीदरलैंड्स की कंपनी ने किया है। यह केप्सूल स्विट्जरलैंड के मरियानेज की बुडलेरी स्ट्रीट के पास स्थित है। एक 64 वर्षीय अमेरिकी महिला की इच्छा म़ृत्यु ने इस आत्महत्या और कैप्सूल को चर्चाओं में ला दिया है। क्या ऐसे उपकरणों का उपयोग मानवीय मूल्यों और नैतिकता के अनुकूल है। सुसाइड कैप्सूल एक उन्नत तकनीकी उपकरण है। जिसमें इच्छामृत्यु की इच्छा करने वाला व्यक्ति स्वेच्छा से कैप्सूल के भीतर बैठ जाता है। दरवाजा बंद कर एक बटन दबाते ही कुछ मिनटों के भीतर कैप्सूल में नाइट्रोजन गैस फैल जाती है। जिससे व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। इस तरह से म़ृत्यु ‎बिना किसी दर्द या पीड़ा के होती है।

इसे इस तरह से डिजाइन किया गया है। जो जल्द और शांतिपूर्ण ढंग से जीवन को समाप्त कर देता है। अमेरिकी मे महिला की मृत्यु के बाद स्विट्जरलैंड की पुलिस ने कई लोगों को हिरासत में लिया है। पुलिस का दावा है, कंपनी के कुछ अधिकारियों और सेवा से जुड़े व्यक्तियों ने महिला को शांतिपूर्ण ढंग से आत्महत्या के लिए प्रेरित किया था। इस घटना के बाद नैतिकता,कानून,और चिकित्सा क्षेत्र में इच्छा मृत्यु को लेकर गहरी बहस छिड़ गई है। स्विट्जरलैंड में इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता प्राप्त है। परंतु इस मामले ने एक नया ‎विवाद खड़ा कर ‎दिया है। दुनिया के अधिकांश देशों में इसे वैध नहीं माना है। विशेषज्ञों का कहना है, ऐसे उपकरणों के प्रयोग के लिए कठोर कानूनी और नैतिक दिशा निर्देश आवश्यक हैं। जीवन समाप्त करने का यह माध्यम उन मरीजों के लिए सहायक हो सकता है। जो गंभीर पीड़ा और लाइलाज बीमारियों से जूझ रहे हैं।

स्विट्जरलैंड की इस घटना ने पूरे विश्व में इच्छा मृत्यु को लेकर नई बहस को जन्म दिया है। कुछ लोग इसे मानवीय और चिकित्सा दृष्टि से उचित ठहराते हैं। वहीं दूसरी ओर इसे अनैतिक और गैरकानूनी मानते हैं। सरकारों और चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े ‎जिम्मेदरों को इस विषय पर स्पष्टता से समग्र निर्णय लेने की आवश्यकता है। पिछले 4 दशक मे चिकित्सा के क्षेत्र में व्यवसायिकता देखने को मिल रही है। कृत्रिम उपचार के माध्यम से किसी तरह से बीमार व्यक्ति को लंबे समय तक जिंदा रखा जाता है। इस प्रक्रिया में उसे शारीरिक और मानसिक कष्ट से गुजारा जाता है। किसी भी दृष्टि से उसे जीवित रखा जाता है। चार दशक पहले चिकित्सक इस तरह के मामले में स्वाभाविक प्रक्रिया के तहत मरीज को प्राकृतिक तरीके से देखरेख और उपचार करके उसे जिंदा रखने की कोशिश करते थे। शारीरिक संरचना में जब मरीज भोजन करने में असमर्थ हो जाए, औषधि का उसके ऊपर असर खत्म हो जाए, बीमारी से निजात पाने की कोई संभावना न हो।

ऐसी स्थिति में प्राकृतिक मृत्यु की क्रिया से गुजरा जाता था। इसमें शरीर को असाध्य कष्ट नहीं होता था। पिछले 4 दशकों में जो उपकरण चिकित्सा के क्षेत्र में उपयोग में लाये जा रहे हैं। कुछ ऐसी औषधि हैं जो शरीर के किसी एक अंग को लंबे समय तक जिंदा रख पाती है। उसके सहारे मरीज को शारीरिक और मानसिक कष्ट से अस्पतालों में गुजरा जाता है। मरीज के परिवार जनों से इलाज के नाम पर काफी पैसा अस्पतालों द्वारा कमाई की जाती है। भारत जैसे देश में साधु-संतों और जैन धर्म के लोगों में समाधि और संलेखना के माध्यम से इच्छा मृत्यु का चलन है। इस तरह की इच्छा मृत्यु से बाहरी शारीरिक कष्ट नही होता है। शारीरिक रूप से जो शरीर ग्रहण कर सकता है। उसको लेते हुए वह धीरे-धीरे शरीर को निष्क्रीय करते हुए स्वाभा‎विक मृत्यु का वरण करता है। भारत में स्वाभा‎विक प्राकृ‎तिक मौत की यह प्रक्रिया घर-घर में प्रच‎लित थीऍ जब भी कोई असाध्याय बीमारी से ग्रसित होता था, उम्र पूरी हो जाने के बाद जब शारीरिक अंग कमजोर हो जाते थे। तब स्वाभाविक रूप से बिना किसी कष्ट के मृत्यु के वरण करने का तरीका भारत में विकसित था। पिछले कुछ वर्षों में चिकित्सा के क्षेत्र में जो लूट देखने को मिल रही है। उपकरणों की सहायता से मरीज को असाध्य कष्ट पहुंचाते हुए कृत्रिम रूप से लंबे समय तक जिंदा रखने की कोशिश की जाती है। वह पूरी तरह से अब अव्यवहारिक, क्रूर एवं अप्राकृतिक है। सुसाइड कैप्सूल समस्याओं को और बढ़ाएगा। हताश लोगों को आसानी से मृत्यु का एक माध्यम मिल जाएगा।

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