– वीरेंद्र भदौरिया
मध्यप्रदेश सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। पिछले कुछ वर्षों से सोयाबीन के औसत मंडी भाव ₹ 7000/- प्रति क्विंटल होने से इस वर्ष अधिक रकबे में सोयाबीन बोई गई थी। फसल अच्छी देख कर अच्छे दाम मिलने की प्रत्याशा से किसान उत्साहित थे, इस बीच सोयाबीन के भावों में तेज गिरावट आई और यह पिछले पांच वर्षों में सबसे निचले स्तर ₹ 3100 प्रति क्विंटल तक आ गई, जबकि डा.स्वामिनाथन आयोग की संस्तुति (C2+50%) के हिसाब से संगणनीय एमएसपी अनुसार सोयाबीन का न्यूनतम भाव ₹ 8000 प्रति क्विंटल होना चाहिए। निरंतर बढ़ती लागत के मद्देनजर सोयाबीन के मूल्य में परिलक्षित असामान्य गिरावट किसानों के लिए किसी तबाही से कम नहीं है।
यह सर्वविदित है कि देश के खाद्य तेल व तिलहन का पूरा कारोबार अडानी जी की मुट्ठी में है, उनकी सहूलियत के हिसाब से सरकार की आयात निर्यात नीतियां बनती बदलती हैं। मोनोपली होने से तिलहन व तेल के भाव पर उनका पूरा नियंत्रण है। सोयाबीन के मूल्य में असाधारण गिरावट का नुकसान तो किसानों को उठाना पड़ेगा, किंतु उपभोक्ताओं को इसका कोई लाभ नहीं मिलेगा, खाद्य तेलों के दाम जहां के तहां हैं। सरकार हस्तक्षेप करने से रही।
सोयाबीन सहित अन्य तिलहनी फसलें तैयार होकर जब मंडियों में आने वाली होती हैं, उसके पहले ही अडानी जी बढ़े हुए मूल्य पर अपने पुराने स्टाक से बाजार को पाट देते हैं तथा जरूरत अनुसार भारी मात्रा में विदेशों से पाम ऑयल या सोया क्रूड आयल मंगाना शुरू कर देते हैं, मित्रवर को अतिरिक्त सुविधा देने के लिए कुछ समय के लिए आयात शुल्क घटा दिया जाता है, जिससे घरेलू मांग में कमी होने से तिलहनी जिंसों के दाम एकदम नीचे आ जाते हैं। न्यूनतम स्तर तक दाम नीचे आते ही अडानी जी लगभग 90% तिलहन खरीद कर अपनी गोदामों में जमा कर लेते हैं,साल दर साल यही खेल चल रहा है, इस पूरे खेल में सरकार शामिल है, अपने मित्र उद्योगपति को मालामाल करने के लिए जानबूझकर छोटे कारोबारियों व किसानों को बर्बाद किया जा रहा है।
किसानों के प्रति केंद्र सरकार का उपेक्षा पूर्ण रवैया यथावत बरकरार है, इसलिए सरकार के खिलाफ आंदोलन से कुछ हासिल होने की कोई संभावना नहीं है। अब तो किसानों को सीधे समस्या के मूल कारण अर्थात अडानी के खिलाफ आंदोलन करना होगा, क्योंकि सरकार की डोर भी उनके ही हाथ में है। अडानी की कंपनियों द्वारा उत्पादित फार्च्यून या अन्य ब्रांडों के खाद्य तेलों का बहिष्कार का आह्वान करना होगा। इससे न सिर्फ किसान, अपितु छोटे कारोबारी भी बर्बाद होने से बच सकते हैं।
– वीरेंद्र भदौरिया