संजय कनौजिया की कलम”
बाबा साहब ने वर्ष 1935 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के ओला तहसील में अपने एक सार्वजनिक सम्बोधन में कहा था “में हिन्दू धर्म में पैदा हुआ हूँ, हिन्दू मरूंगा नहीं”..इस पर चारों और से विवाद होना शुरू हो गया था..यह भाषण इस कदर उकसाने वाला समझा गया, कि कई नेता उनके विरोध में आ गए..देश की 20 फ़ीसदी से ज्यादा आबादी को भड़काने के आरोप बाबा साहब पर लगे, लेकिन उन्होंने साफ़ कहा “जो शोषित हैं उनके लिए धर्म नियति का नहीं बल्कि चुनाव का विषय है”..महात्मा गांधी तक ने उनकी बातों पर एतराज जताया..गांधी ने कहा “धर्म ना तो कोई मकान है और ना ही कोई चोला, जिसे उतारा या बदला नहीं जा सकता है”..गांधी का विचार था कि समाज सुधार के रास्ते और सोच बदलने के रास्ते चुनना ही एक बेहतर है, धर्म परिवर्तन नहीं..लेकिन बाबा साहब अपनी बात पर अडिग थे और शोषितों के हर तरह से शोषण कर रहे, हिन्दू धर्म से इस कदर मुख़र हो चुके थे, कि उनकी नज़र में समानता लाने के लिए धर्म बदलना ही सही रास्ता था..वर्ष 1940, में बाबा साहब ने “द अनटचेबल्स” में लिखा, “भारत में जिन्हे अछूत कहा जाता है, वो मूल रूप से बौद्ध धर्म के अनुयायी थे, ब्राह्मणो ने इसी कारण उनके साथ नफरत पाली”..इस थ्योरी के बाद बाबा साहब ने वर्ष 1944, में मद्रास में एक भाषण में कहा कि “बौद्ध धर्म सबसे ज्यादा वैज्ञानिक और तर्क पर आधारित धर्म है”..कुल मिलाकर बौद्ध धर्म के प्रति बाबा साहब का झुकाब और विश्वास बढ़ता रहा..!
14 अक्टूबर, 1956 में, महाराष्ट्र के नागपुर स्थित, दीक्षा भूमि में विधिवत अपने, 3.85 लाख के लगभग (बड़ी तादात में “महार” जाति एवं कुछ अन्य जातियों) अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म में धर्मांतरण किया था..लेकिन तभी एक गंभीर मसला खड़ा हो गया..म्हार जाति ने बौद्ध धर्म तो स्वीकार किया और बौद्ध धर्म में जाति होती नहीं बल्कि सभी बौद्धिष्ट कहलाते हैं..और म्हार जाति या अन्य और दलित, सोशली और आर्थिक आधार पर पिछड़ें है, तो उनके हक़-अधिकार और आरक्षण का क्या होगा ?
..तभी अगले दिन ही 15 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में, बाबा साहब ने अपने भाषण द्वारा वचन दिया, कि “आप लोगों को अपने आरक्षण की चिंता नहीं करनी चाहिए, आपका आरक्षण मेरी कोट की जेब में है”..इससे पहले की बाबा साहब, बोद्धिष्टों को भी आरक्षण की परिधि में लाते, कि 6 दिसंबर, 1956 को उनका परिनिर्वाण हो गया..और बाद में इस आंदोलन में स्थिलता आ गई..हालांकि अब भी देश में जगह-जगह से दलित वर्गों के बौद्ध धर्म स्वीकार करने की ख़बरें आतीं हैं..बाद में वर्ष 1960 में, केवल महाराष्ट्र सरकार ने बोद्धिष्टों को आरक्षण दिया और बौद्धों को जो प्रमाण पत्र दिया उसमे, “कन्वर्टेड बौद्धिष्ट” लिखा होता गया..लेकिन वो प्रमाणपत्र केंद्र सरकार में नहीं चलता..वर्ष 1957 में इसी विषय पर रिपब्लिकन पार्टी का अधिवेशन हुआ और उसके बाद महाराष्ट्र के बौद्धों ने जन-आंदोलन करना शुरू कर दिया..डॉ० भदन्त आनंद कोशल्यानी, बाबा साब गायकवाड़, प्राशु गौरी, इनके नेतृत्व में आंदोलन होते रहे, और समय-समय पर नेहरू-इंद्रा-मोरारजी से भी मिले..आंदोलनकारियों को मोरारजी देसाई का बड़ा कड़वा अनुभव रहा, उन्होंने कहा “तुम्हे बौद्ध बनने को किसने कहा था ?”..मोरारजी की इस बात को लेकर भी खूब आंदोलन हुए थे..उसके कुछ समय पश्चात इस आंदोलन को प्रकाश अंबेडकर ने आगे बढ़ाया..बाद में सामाजिक न्याय के प्रेणता, उपेक्षितों के उन्नायक, विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने 1990 में इस ओर गंभीरता से विचार कर बौद्धों को भी आरक्षण दिलाने का मार्ग तलाशा..जिस कानून के तहत यह अधिकार मिलता है वह “कांस्टीट्यूशन शेडयूलकास्ट ऑर्डर 1950” है और इसमें सिर्फ हिन्दू धर्म और सिख धर्म को ही आरक्षण के अधिकार का प्रावधान सुनिश्चित किया हुआ है..परन्तु वी.पी. सिंह सरकार ने कानून में संशोधन कर उसमे बौद्ध धर्म के आरक्षण का प्रावधान रख बौद्धों के आरक्षण को सुरक्षित किया..लेकिन संसदीय प्रणाली के तहत कुछ तकनीकि बिंदुओं को और पूरा किया जाता..तब तक “मंडल-कमंडल” के मुद्दों पर भाजपा ने वी.पी सिंह की सरकार को गिरा दिया..और बौद्धों को लगा उन्हें भी आरक्षण मिल गया है..!
इसका खुलासा तब हुआ जब महाराष्ट्र के 2012 या 13, के एक अखबार में यह खबर छपी कि डॉ० विजय गायकवाड़ को “यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन” (UPSC) की परीक्षा पास और साक्षात्कार पास करने के बाद जब उनके जीवन से जुड़े डॉक्यूमेंट्स दिखाने की बात आई तो उन्होंने सभी उचित दस्तावेजो सहित अपना बौद्धिष्ट प्रमाणपत्र भी पेश किया..चूँकि डॉ० गायकवाड़ ने आरक्षण के आधार पर (UPSC) में प्रवेश किया था, अतः (UPSC) ने सीधा बोला कि आपके सर्टिफिकेट में बौद्धिष्ट लिखा हुआ है..इसमें अनुसूचित जाति का म्हार नहीं लिखा हुआ है और सैन्ट्रल गवर्मेंट की सूची में बौद्ध अनुसूचित जाति की लिस्ट में नहीं है..और उन्होंने उसे आधिकारिक रूप से सुधारकर लाने को कहा..स्वाभिमानी डॉ० विजय गायकवाड़ ने ऐसा नहीं किया, बाद में (UPSC) ने पत्र लिखकर सूचित किया कि आप अनुसूचित-जाति में नहीं गिने जाने के कारण आपका चयन नहीं होगा..बाद में महाराष्ट्र में इसपर अध्ययन हुआ तो बहुत सी चीजें निकलकर सामने आईं….
*धारावाहिक लेख जारी है*
(लेखक-राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)