अखिलेश
नरेंद्र दामोदर दास मोदी। भारत के प्रधानमंत्री। बीजेपी और उनके अंधभक्तों की नजर में मोदी इस देश के सबसे महान, दिव्य, ईमानदार, जनप्रिय, साधक, वैरागी, तपस्वी बलिदानी और अनुशासन के पुजारी हैं। भक्त लोग मानते हैं कि मोदी जैसा मानव न कभी इस धरती पर जन्म लिया है और न लेगा। कई भक्त तो उन्हें ईश्वर का अवतार तक मानते हैं, ऐसे भक्त देश के चहुंदिशा में विराजमान है। भक्ति का आलम ये है कि भक्त भले ही अपने माता-पिता और परिजनों के खिलाफ रहते हों, गालियां तक देते हों लेकिन मोदी के प्रति उनकी आस्था अटल है। भक्त मानते हैं कि मोदी है तो राष्ट्र है। अब से पहले भारत राष्ट्र नहीं था।
इन बगुला भगतों में अधिकतर वे लोग हैं जो दुनिया के सारे आपराधिक कृत्यों में शामिल होते दिखते हैं, लेकिन ज्ञान के अभाव और पाखंड के नाम पर समाज के ही ख़ास समुदाय पर वार करने से बाज नहीं आते। इनका राष्ट्रवाद एक ख़ास समुदाय को टारगेट करना है और समाज में विभाजन पैदा करना है। ये भक्त संविधान को नहीं मानते और मानते भी हैं तो उसकी व्याख्या अलग तरीके से करते हैं। पिछले सात साल का इतिहास बता रहा है कि जबसे मोदी राजनीति के शीर्ष पर बैठे तब से बगुला भगतों की लंठई, नंगई सामने आने लगी। देश की सीमा पर एक के बाद एक घटनाएं घटती गईं, देश लज्जित होता रहा, हमारे जवान शहीद होते रहे, लेकिन भक्तों की थेथरई जारी रही। उनके झूठ और फरेब से देश परेशान होता रहा।
भेस और अंदाज बदलना पीएम मोदी का शगल है। इसमें उनको महारथ भी है। वक्त और जगह के साथ ही अवसर के मुताबिक़ वे काया बदल देते हैं और उस बदली काया की मार्केटिंग भी कर लेते हैं। इधर मोदी का एक नया भेस सामने आया। लंबी दाढ़ी और मूछें रखे मोदी जब पहली दफा सामने आए तो लगा कि यह सब कोरोना काल की उपज है। सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर भला नाई के पास कैसे जाते हमारे पीएम। सबने इसकी प्रशंसा की। गीत गाए और जयकारा भी लगाया।
भक्त तो भक्त होते हैं। भला उन्हें कौन कुछ कहने से रोक सकता है। किसी ने उन्हें बढ़ी दाढ़ी-मूछों में भीष्म पिताहम कह डाला तो कइयों ने शिवजी कहने की चेष्टा की। फिर तो भक्तों में रेस लग गई। पीएम मोदी की दाढ़ी-मूछों को देखकर भक्तों की कल्पनाएं दौड़ने लगीं। उसके पंख लग गए। भक्तों की एक कतार ने उन्हें परम तपस्वी तक कहा तो कइयों ने महान त्यागी, बलिदानी, तपस्वी और सात्विक से नवाजा।
मोदी समय के साथ अपना अंदाज बदलने में माहिर हैं| एक चतुर राजनेता की पहचान यही होती है कि वो हर हाल में जनता का ध्यान आकर्षित करे। मोदी न सिर्फ अपनी बातों से, अपने हाव-भाव और लुक से भी लोगों को आकर्षित करते हैं। मोदी को विदेशियों की जमात में भी खुदको गिर के जंगल के शेर की तरह चमकना आता है। उम्र बढ़ने के साथ सफेद हुई दाढ़ी उनकी चमक को बढ़ाती है। मोदी अपनी दाढ़ी-मूंछ के नए लुक से जनता के बीच में क्या संदेश देना चाहते हैं यह तो वही जानें। सबकी अपनी अपनी सोच और दृष्टिकोण है इसी से वो मोदी की दाढ़ी और मूंछ का आकलन करता है।
पश्चिम बंगाल के आगामी चुनाव को देखते हुए मोदी का नया लुक आलोचकों को रविंद्र नाथ टैगोर की तरह दिखने का जतन लगता है। आलोचक तो इसे मोदी का स्वांग कहते हैं, लेकिन भक्त जन इसे आदर्श राजा, प्रजापालक और करुणामय के रूप में देख रहे हैं। कह सकते हैं कि पीएम मोदी की बढ़ी दाढ़ी-मूंछ की खूब प्रशंसा भी हो रही है और आलोचना भी, लेकिन अगर उस मूंछ और दाढ़ी के पीछे कोई राज़ है और भविष्य की राजनीति है तो फिर आलोचना को कौन सुनता है! कम से कम पीएम मोदी तो नहीं।
कोई क्या पहनता है, चेहरे पर शेव रखता है या नहीं उसकी खुद की मर्जी होती है। प्रधानमंत्री की वेशभूषा और शेव को लेकर कोई प्रोटोकॉल नहीं है ऐसे में कोई भी वैधानिक सवाल खड़ा नहीं होता, लेकिन यहां सवाल भला करता कौन है। यहां तो भक्त लोग अपनी राय रख रहे हैं और मानव समाज को गुदगुदा रहे हैं।
आदि मानव काल से लेकर आधुनिक युग तक पुरुषों की दाढ़ी-मूंछ बहुत कुछ बताती और जताती रही है। कभी बढ़ी हुई मूंछ राजा-महाराजाओं और जमीदारों की आन-बान-शान का प्रतीक मानी जाती थी। साधु महात्मा भी अपनी बढ़ी हुई दाढ़ी-मूंछ को वैराग्य और सन्यास का प्रतीक मानते थे। बुद्धिजीवियों ने भी कुछ अलग दिखने की चाहत में दाढ़ी-मूंछ को अलग-अलग रूप देने की कोशिश की है। कभी समाजवादी जमात के लोग दाढ़ी-मूछों के साथ जनता के बीच होते थे, लेकिन अब तो दक्षिणपंथी पार्टियां भी दाढ़ी-मूंछों से लैस हैं।
देश के पीएम के अलावा गृह मंत्री से लेकर दर्जनों नेता दाढ़ी-मूंछ से लदे हुए हैं। इसी देश में बढ़ी हुई दाढ़ी गुंडई का प्रतीक है तो वैराग्य और संतत्व की छवि भी पेश करता है। मोदी शायद यह भी बताना चाहते हैं कि वे इस संकट की घड़ी में, एक तटस्थ ज्ञानी संत पुरुष की तरह, धैर्य साधना ज्ञान और संघर्ष के दम पर, देश को मुसीबत से बाहर निकालने में जी जान से लगे हुए हैं।
कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच शुरू हुए अनलॉक में सैलून खोल दिए गए हैं पर ऐसा लग रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी नाई की सेवाएं नहीं ले रहे हैं। कोरोना संकट के पिछले आठ महीने में उनकी दाढ़ी, मूंछ और बाल दोनों बढ़ गए हैं। इससे उनकी छवि में एक बड़ा बदलाव आया हुआ दिख रहा है। वे अब पहले की तरह चुस्त-दुरुस्त राजनेता के रूप में नहीं दिखते हैं, बल्कि एक धीर-गंभीर बुजुर्ग की तरह दिखने लगे हैं। तभी उनकी लंबी होती दाढ़ी की तुलना देश के अनेक दार्शनिकों, विचारकों या साहित्यकारों की दाढ़ी से होने लगी है और इसे लेकर तरह तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं।
उनके विरोधियों का कहना है कि बाल और दाढ़ी दोनों का बढ़ना संयोग नहीं है, बल्कि एक प्रयोग है, जो पश्चिम बंगाल के चुनाव को ध्यान में रख कर किया जा रहा है। मजाक करने वाले कहने लगे हैं कि आगामी बंगाल चुनाव तक पीएम की दाढ़ी टैगोर जैसी हो जाएगी। तो क्या टैगोर की शक्ल लिए पीएम मोदी बंगाल के चुनाव में भीष्म पितामह की तरह दौड़ते नजर आएंगे? यह सब एक संयोग मात्र हैं।
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)