मतदान से पहले
कुछ समय के लिए
निलंबित हो जाते हैं
शासकों के सभी अधिकार !
इस दौरान
दीन-हीन प्रजा
दाता हो जाती है !
और शासक
भिखारी !
मतदान के तुरंत बाद
वोटों के शिकारी !
पुनः शासक हो जाते हैं !
और प्रजा के
सभी अधिकार
फिर से निलंबित कर दिए जाते हैं !
और फिर
अगले पांच वर्षों तक
शासकों और प्रजा के बीच
कोई संवाद नहीं होता !
इस दौरान
संसद में जारी रहते हैं
अर्थहीन
हस-मुबाहिसों के
अंतहीन और उबाऊ सिलसिले !
और उधर
एक तानाशाह की दाढ़ी की तरह
बढ़ते ही जाते हैं
जनता के दुख
और उसकी तक़लीफें !
- अशोक कुमार,संपर्क अनुपलब्ध
प्रस्तुतकर्ता - डॉक्टर आसिफ जमाल,इलाहाबाद, उप्र,संपर्क - 80522 48523
संकलन-निर्मल कुमार शर्मा,गाजियाबाद