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नरेंद्र मोदी के भाषणों में निराशा, कुंठा, खीझ और गाली-गलौज!

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अनिल जैन

वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हर भाषण एक तरह से चुनावी भाषण ही होता है, मौका चाहे जो हो। देश हो या विदेश हो और संसद हो या लाल किले की प्राचीर, हर मौके पर वे चुनावी रैली जैसा भाषण ही देते हैं। लेकिन औपचारिक रूप से चुनावी भाषण देने के लिए वे साढ़े तीन महीने के बाद मैदान उतरे। लोकसभा का चुनाव सम्पन्न होने के बाद पहली बार प्रधानमंत्री ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र और जम्मू कश्मीर के डोडा में चुनावी रैली को संबोधित किया।

उम्मीद की जा रही थी कि मोदी लोकसभा चुनाव में दिए गए भाषणों से आगे बढ़ेंगे और कुछ नई बातें कहेंगे। गठबंधन की सरकार चलाने के अपने अनुभव के बारे में बताएंगे और दोनों चुनावी राज्यों के विकास का कोई रोडमैप पेश करेंगे। लेकिन उनका भाषण मोटे तौर पर अखबारों में पिछले कुछ दिनों में छपी खबरों के आधार पर तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर प्रतिक्रिया देने वाला और विपक्षी नेताओं के भाषणों में उठाई गई बातों को लेकर जवाबी हमला करने वाला था। इसके अलावा लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी को बहुमत न मिलने की खीझ और हताशा भी साफ उनके भाषण में साफ झलक रही थी।

लोकसभा चुनाव के बाद पहली बार चुनावी रैली करने मोदी यह सोच कर मैदान में उतरे कि कांग्रेस की ऐसी-तैसी कर देनी है। सो, उन्होंने कांग्रेस पर जबरदस्त हमला किया। हरियाणा में कांग्रेस को मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी मान कर नहीं, बल्कि घनघोर दुश्मन मान कर उस पर हमला किया।

राज्य में लगातार 10 साल से भाजपा की सरकार है और इतने ही समय से केंद्र में भी भाजपा की सरकार ही है। यानी मोदी के शब्दों में हरियाणा में 10 साल से डबल इंजन की सरकार चल रही है। इतने समय में तो हरियाणा जैसे छोटे राज्य की सारी समस्याएं हल हो जानी चाहिए थी और हरियाणा दुनिया को दिखाने वाला मॉडल राज्य बन जाना चाहिए था। लेकिन विकास के मानकों पर हरियाणा आज देश के सबसे पिछड़े प्रदेशों में शुमार होता है। केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक बेरोजगारी में, अपराध में और दलितों पर अत्याचार के मामलों ने शीर्ष पर है।

हरियाणा की बदहाली की हकीकत यह भी है कि जिस दिन प्रधानमंत्री कुरुक्षेत्र में भाषण कर रहे थे उसी दिन एक बहुराष्ट्रीय बैंक के दो अधिकारियों के फरीदाबाद के एक अंडरपास में भरे पानी में गाड़ी सहित डूब कर मर जाने की खबर आई और यह भी खबर आई कि एक दिन पहले शुक्रवार को गुरुग्राम में जलभराव की वजह से लोग चार-चार घंटे जाम में फंसे रहे।

बहरहाल, प्रधानमंत्री ने डबल इंजन सरकार की उपलब्धियों और आगे के विकास के रोडमैप की चर्चा करने के बजाय अपने भाषण में सिर्फ कांग्रेस पर हमला किया। विपक्ष पर हमला करते हुए मोदी आमतौर पर यह भूल जाते हैं कि वे भाजपा के नेता होने के साथ ही प्रधानमंत्री भी हैं, सो यहां भी उन्होंने भाजपा के एक औसत नेता की तरह ही भाषण दिया। जितने तरह के आरोप हो सकते हैं, वे सारे आरोप उन्होंने कांग्रेस पर लगाए।

प्रधानमंत्री ने अपने को आरक्षण का चैंपियन बताते हुए कहा कि कांग्रेस का शाही परिवार दलितों और पिछड़ों का आरक्षण खत्म करना चाहता है, लेकिन मोदी के रहते ऐसा नहीं हो पाएगा। प्रधानमंत्री के भाषण में यह बात भी प्रमुखता से आई कि अब तो गणपति को भी सलाखों के पीछे डाल दिया जा रहा है। यह बात उन्होंने मीडिया में आई कर्नाटक की एक घटना को आधार बना कर कर कही।

दरअसल कर्नाटक के मांड्या में गणपति विसर्जन के दौरान दो समुदायों में झगड़ा हो गया। इस घटना के विरोध में विश्व हिंदू परिषद के लोग गणपति की मूर्ति लेकर टाउन हॉल में प्रदर्शन करने पहुंच गए। वहां प्रदर्शन की इजाजत नहीं थी तो पुलिस ने मूर्ति जब्त करके पुलिस वैन में रख दी ताकि मूर्ति क्षतिग्रस्त न हो जाए। इस बात को लेकर प्रधानमंत्री ने सांप्रदायिक कार्ड खेलते हुए कांग्रेस को तुष्टिकरण करने वाली हिंदू विरोधी पार्टी बताया। उन्होंने इस घटना को इस तरह से पेश किया, जैसे कांग्रेस की सरकार लोगों को गणपति की पूजा नहीं करने दे रही है और गणपति को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे डाल रही है।

मोदी ने कांग्रेस को दलित विरोधी भी बताया और 15-20 साल पहले की घटनाओं का जिक्र किया। उन्होंने कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और कहा कि उसके राज मे नियुक्तियां खर्ची और पर्ची पर होती थीं। उन्होने कांग्रेस को अर्बन नक्सल बताया। यह भी कहा कि कांग्रेस का शासन आ गया तो वह हिमाचल प्रदेश की तरह राज्य को कंगाल कर देगी और वेतन देने के पैसे नहीं रहेंगे। यह सब बताते हुए उन्होंने इस बात की बिल्कुल चर्चा नहीं की कि हरियाणा में दस साल के भाजपा शासन में ऐसा क्या हुआ कि साढे नौ साल तक मुख्यमंत्री रहे मनोहर लाल खट्टर को लोकसभा चुनाव के ऐन पहले हटा कर नया मुख्यमंत्री बनाना पड़ गया?

प्रधानमंत्री मोदी अपने भाषणों में तथ्यों को लेकर जरा भी आग्रही नहीं होते हैं। इसकी वजह शायद यही है कि वे यह मानते हैं कि लोगों की याददाश्त बहुत कमजोर कमजोर होती है और इसलिए वे जो कुछ भी बोलेंगे लोग उस पर आंखें मूंद कर भरोसा कर लेंगे। इसके अलावा मोदी के साथ यह सुविधा भी है कि मुख्यधारा का मीडिया कभी उनकी किसी बात पर सवाल नहीं उठाता है। मोदी जो कुछ कहते हैं, मीडिया उसे पूरे भक्ति-भाव से अपने दर्शकों, श्रोताओं और पाठकों के आगे परोस देता है। इसीलिए मोदी जो मन में आता है, वह बोल कर निकल जाते हैं। जम्मू कश्मीर में चुनाव प्रचार की शुरूआत करते हुए मोदी ने ऐसा ही किया।

डोडा की चुनावी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी पर हमला किया। हालांकि वहां भी पिछले पांच साल से उप राज्यपाल के जरिए सीधे केंद्र की यानी नरेंद्र मोदी की सरकार चल रही है। प्रधानमंत्री ने इन तीन पार्टियों को तीन खानदान बता कर हमला किया और कहा कि आम लोगों का मुकाबला इन तीन खानदानों से है। अपने हमले को धार देने के लिए प्रधानमंत्री ने कहा कि इन तीन खानदानों ने कश्मीर के साथ जो किया है वह किसी पाप से कम नहीं है।

प्रधानमंत्री यह बोलते वक्त इस बात को भूल गए कि इन तीन खानदानों में से एक नेहरू -गांधी खानदान यानी कांग्रेस को छोड़ दे तो बाकी दोनों खानदानों यानी अब्दुल्ला और मुफ्ती खानदान के कथित पाप में तो भाजपा भी भागीदार रही है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा ने पीडीपी के साथ तीन साल से ज्यादा समय तक सूबे में सरकार चलाई है। 2014 के विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु विधानसभा बनने के बाद भाजपा ने मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व में सरकार बनाई और खुद भाजपा भी सरकार में शामिल हुई।

मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद भाजपा ने उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती को मुख्यमंत्री बनवाया और उनकी सरकार में भाजपा के निर्मल सिंह उप मुख्यमंत्री रहे। मोदी से पहले अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व वाली भाजपा ने जम्मू कश्मीर में फारुक अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री बनाया और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला को केंद्र की सरकार मे मंत्री बनाया। सो, अगर इन दोनों खानदानों ने जम्मू कश्मीर में जो किया, वह पाप से कम नहीं है तो उस पाप में भाजपा भी तो भागीदार है।

प्रधानमंत्री हताशा और खीझ का आलम यह रहा कि वे कांग्रेस को घेरने के लिए अपुष्ट खबरों या अफवाहों का सहारा लेने से भी नहीं चूके। जैसे डोडा में प्रधानमंत्री की रैली के दिन यानी शनिवार को ही एक खबर आई कि अमेरिका में भारतीय मूल के एक पत्रकार के साथ कांग्रेस के लोगों ने बदसलूकी की। वह पत्रकार ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा का इंटरव्यू करने गए थे। हालांकि बदसलूकी के वक्त वहां पित्रोदा नहीं थे और राहुल गांधी तो उस शहर में ही नहीं पहुंचे थे। लेकिन प्रधानमंत्री ने इस खबर को अपने भाषण का बड़ा मुद्दा बनाया और कहा कि अमेरिका में भारत के बेटे के साथ बदसलूकी हुई। कांग्रेस पर हमला करने के लिए बहुत से मुद्दे हैं, लेकिन क्या यह ऐसा मुद्दा था, जिस पर प्रधानमंत्री हरियाणा की सभा मे कांग्रेस पर हमला करे?

प्रधानमंत्री ने राहुल गांधी के अमेरिका में दिए भाषण को भी मुद्दा बनाया और कहा कि कांग्रेस का शाही परिवार दलितों और पिछड़ों का आरक्षण खत्म करने जा रहा है। हालांकि राहुल के कहने का मतलब इसका बिल्कुल उलटा था। उनसे पूछा गया था कि भारत में आरक्षण कब खत्म होगा तो उन्होंने कहा कि जब समानता आ जाएगी और सबको समान अवसर उपलब्ध हो जाएंगे, तब आरक्षण खत्म होगा। इसका सीधा मतलब है कि आरक्षण कभी खत्म नहीं होगा। लेकिन मोदी ने राहुल के बोले पूरे वाक्य में से अपनी सुविधा के मुताबिक सिर्फ दो शब्दों ‘आरक्षण’ और ‘खत्म’ का ही जिक्र किया और कहा कि वे आरक्षण खत्म करना चाहते हैं।

मोदी ने हरियाणा में बेहद सपाट और बूझे हुए अंदाज में कहा, मेरा पोलिटिकल सेंस कहता है कि भाजपा हरियाणा में जीत कर तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। यही दावा उन्होंने डोडा में जम्मू-कश्मीर को लेकर भी किया। सवाल है कि मोदी जी का पोलिटिकल सेंस तो लोकसभा चुनाव में भी कह रहा था कि अबकी बार चार 400 पार! लेकिन जब चुनाव नतीजे आए तो वह पोलिटिकल सेंस नॉनसेंस साबित हो गया।

कुल मिला कर मोदी के भाषणों से पूरी तरह हताशा, कुंठा और लोकसभा चुनाव में मनचाहे परिणाम न मिलने की खीझ और बनावटी आत्मविश्वास छाया रहा, जो इस बात का संकेत है कि वे जैसे-तैसे तीसरी बार प्रधानमंत्री जरूर बन गए हैं लेकिन महंगाई, बेरोजगारी, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मसलों पर लोगों में भरोसा पैदा करने की उनकी क्षमता पूरी तरह चुक गई है।जनचौक से साभार

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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