अग्नि आलोक
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*डरो नहीं कोतवाल ही सँया है

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शशिकांत गुप्ते

आज मैं सीतारामजी से मिलने गया तो मुझे बहुत अचरज हुआ।
अचरज का कारण सीतारामजी के हाथ में समाचार पत्र था और सीतारामजी वर्गीकृत विज्ञापनो के पृष्ठ पर विज्ञापन पढ़ रहे थे। विज्ञापनों की गिनती कर रहे थे
मैने पूछा क्या कर रहें हो?सीतारामजी ने कहा बाबाओं के विज्ञापनों की गिनती कर रहा हूँ।
कोई बाबा जनसामान्य की समस्याओं को मात्र तीन घण्टे में हल करने का दावा कर रहा है कोई दो घण्टों में, कोई मिनिटों में कोई बाबा तो फोन पर ही समस्या हल करने का दावा करता है।
मैने कहा क्या आपको आज व्यंग्य लिखने के लिए यही विषय मिला है?
सीतारामजी ने कहा मै व्यंग्यकार की मानसिकता में कतई नहीं हूँ।
मै तो विज्ञापनों की गम्भीरता पर चिंतन कर रहा हूँ।
मैने सीतारामजी के विचारों से सहमति प्रकट की और विषयांतर करने के लिए सीतारामजी के हाथ से समाचार पत्र लेकर समाचार पत्र के पेज पलट कर ख़बर पढ़ने लगा।
एक खबर यह भी है,विदिशों में नौकरी दिलाने के बहाने लाखों लोगों को लूटा। दूसरी खबर लोन दिलवाने के नाम पर हाजरो लोगों से लाखों रुपयों की धोखाधड़ी।
तीसरी ख़बर सस्ते में मकान दिलवाने के बहाने भोली जनता से लाखों रुपयों की लूट।
मै और भी ख़बर पढ़ता इसके पूर्व ही सीतारामजी ने समाचार पत्र मुझसे छीन लिया और कहने लगे आप भी इन ठगों की ख़बर पढ़ने लग गए हो।
मैने पूछा आप जिन बाबाओं की ख़बर पढ़ रहे थे,वे कौन है?
सीतारामजी ने मुस्कराते हुए विषय को पूर्ण विराम दिया और कहने लगे इनदिनों मै एक नाटक लिख रहा हूँ। नाटक का नाम है जब सँया भए कोतवाल तो डर काहे का
मैने पूछा आपने,नाटक का यही नाम को चूना?
सीतारामजी ने कहा पहले अपना व्याकरण सुधारों, आपने चुना की जगह लगाने वाला चूना लिख दिया है।
मैने कहा क्षमा करना यह तो टाइप मिस्टेक है।
सीतारामजी ने कहा सब जानता हूँ, यह किस टाइप की मिस्टेक है अंतः आप व्यंग्यकार ही हो।
सीतारामजी चूने के विषय में बताने लगे गए।
पत्थर, कंकड़ आदि को फूँककर बनाया जानेवाला तीक्ष्ण और दाहक क्षार जो पलस्तर आदि के काम आता है। यह तो लगाने वाले चूने की बात हुई।
खाने वाला चूना तैयार करने की प्रक्रिया बताते हुए कहते हैं कि पहले साधारण चूने को पानी के साथ मिलाकर बड़ी-बड़ी टंकियों में रखा जाता है. फिर चूने से पानी निकालने के लिए उसे महीन कपड़े के थैलों में बंद कर दिया जाता. धीरे-धीरे इससे पानी निकाल जाता है और गीला चूना थैलों में रह जाता है
खाने का चूना सुरती के साथ और पान पर लगा कर खाया जाता है।चूना शब्द पुर्लिंग है। खैनी,तंबाकू, और पान स्त्रियां भी खाती हैं।
चूना का एक अर्थ टपकना या रिसना भी होता है।
जो भी चूना तीक्ष्ण और दाहक क्षार है।
यह तो हुआ चूना शब्द का अर्थ।
मैंने ( सीतारामजी) तो सँया भए कोतवाल तो डर काहे का नाटक का नाम वर्तमान में हरएक क्षेत्र में उपस्थित परिदृश्य को देखकर चुना है।
मैने सीतारामजी को बीच में टोकते हुए पूछा चुनने को आंग्ल भाषा में Choose कहतें है न?
सीतारामजी गुस्सा होकर कहने लगे आपको हरएक बात में व्यंग्य ही सूझता है। हॉ choose का मतलब चुनना ही होता है,लेकिन आपके Choose करने मतलब आपके द्वारा चुनने की कोई एहमियत नहीं है। आप अपनी भावनाओं से जिसे चुनते हो वह जीतने के बाद किस भाव बिकेगा यह कह पाना असम्भब है।
इनदिनों चुने हुओं की मंडी भी पाँच सीतारा होटलों में लगती है।
मैंने पुनः सीतारामजी को बीच में टोका और पूछा आपको पुरोत्तर राज्य में बाढ़ से मरने वालों की संख्या और बाढ़ से पीड़ित जनता की संख्या पता चली?
सीतारामजी को जोर से हँसी आ गई। मैने कहा यह तो गमगीन बात है इस पर आपको हँसी क्यों आ गई। कहने बाढ़ पीड़ितों, बेरोजगारों,कुपोषितों और चिकित्सा के अभाव में मरने वालों की चिंता किसी को नहीं है।
अभी तो संख्याबल को अपने माफ़िक बनाने के लिए धनबल मुहैया करने के लिए तिजोरी को खोल दिया जाता है।
मेरी बात सुनकर सीतारामजी ने कहा मुझे यकायक सियासी तूफान का स्मरण हो हुआ। यह तूफान प्राकृतिक तूफान से एकदम भिन्न है, यह प्रायोजित तूफान है। इस तूफान को प्रायोजित करने वालों का एक ही प्रयोजन है, एनकेनप्रकारेण सिंहासन पर विराजमान होना?
इतना सुनकर मैने सीतारामजी से विदा लेतें हुए कहा आप तो बाबाओं के जो विज्ञापन पढ़ रहे थे, वे विज्ञापन ही पढ़िए।
सीतारामजी ने गहरी सांस लेतें हुए, पुनः नाटक का शीर्षक दोहराया जब सँया भए कोतवाल तो डर काहे का?

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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