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क्या केंद्र के पास है महाराष्ट्र कर्नाटक का सीमा विवाद का हल ?

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अनिल गलगली


महाराष्ट्र और कर्नाटक सीमा विवाद इन दिनों चरम पर हैं। पिछले 66 वर्षों से 865 गांवों को महाराष्ट्र में शामिल होने की मांग हो रही है तो कर्नाटक सरकार इन गांवों को अपना हिस्सा मान रही है। पिछले दिनों महाराष्ट्र से कर्नाटक जाने वाली बसों और ट्रकों पर हमले की खबरें आईं, तो महाराष्ट्र ने कर्नाटक जाने वाली बसों पर रोक लगा दी।

फिर क्यों बढ़ा विवाद

यह विवाद और बढ़ा, जब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने जत तहसील के प्रतिनिधिमंडल को म्हैसल सिंचाई योजना के विस्तार के लिए 2000 करोड़ रुपये आवंटित करने का आश्वासन दिया। इसके बाद कर्नाटक सरकार में हलचल मच गई। पिछले 41 वर्षों से पानी को तरस रहे जत के लोगों को आनन फानन कर्नाटक सरकार ने पानी उपलब्ध कराया। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने वरिष्ठ मंत्री चंद्रकांत पाटील और शंभूराजे देसाई की एक बॉर्डर कोऑर्डिनेशन कमिटी बनाई, जो बेलगांव जाकर बातचीत करनेवाली थी। लेकिन कर्नाटक सरकार ने एक चिट्ठी लिखकर दोनों को आने से मना कर दिया। अब दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक से भी कोई हल नहीं निकल रहा है।

है क्या विवाद

1948 में बेलगांव नगरपालिका ने अनुरोध किया कि मुख्य रूप से मराठी भाषी आबादी वाले जिले को प्रस्तावित महाराष्ट्र राज्य में शामिल किया जाए। हालांकि, 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम ने बेलगांव और बॉम्बे राज्य के 10 तालुकों को तत्कालीन मैसूर राज्य का एक हिस्सा बना दिया। मौजूद विवाद उसी भाषा-वार क्षेत्रीयकरण की उपज है। बेलगांव में आज भी तीन चौथाई आबादी मराठीभाषी है। 1 मई 1960 को मुंबई के साथ संयुक्त महाराष्ट्र बना, तब भी 865 मराठी भाषी गांवों को महाराष्ट्र में शामिल नहीं किया गया।

क्या हुआ अब तक

1948 में मैसूर भारत का पहला राज्य बना। 1 नवंबर 1973 को मैसूर का नाम बदलकर कर्नाटक हो गया। उससे पहले 1956 में बीजापुर, धारवाड़, गुलबर्गा, बीदर के साथ बेलगांव जिले को तत्कालीन मैसूर राज्य में शामिल किया गया था। इससे भी पहले जब बेलगांव तत्कालीन बॉम्बे राज्य में था, तब केंद्र सरकार ने पाटस्कर सिद्धांत के अनुसार भाषाई बहुमत, भौगोलिक निकटता, गांवों का तत्व और लोगों की इच्छा के आधार पर सीमा मुद्दे का समाधान किया था। मगर आज भी बेलगांव को भाषिक बहुसंख्यकता के मुद्दे से बाहर रखने का आरोप लग रहा है।

आंदोलन का इतिहास 

महाराष्ट्र और कर्नाटक सीमा विवाद में सबसे पहले भाई दाजीबा देसाई के नेतृत्व में बेलगांव में ‘महाराष्ट्र एकीकरण समिति’ की स्थापना हुई। 22 मई, 1966 को सेनापति बापट और उनके साथियों ने मुख्यमंत्री आवास के बाहर भूख हड़ताल की। शिवसेना के भी कई नेता बेलगांव में घुसे थे। फिर इस मुद्दे को इंदिरा गांधी के सामने नाथ पई लाए। सेनापति बापट की भूख हड़ताल का संज्ञान लेते हुए तत्कालीन केंद्र सरकार ने पूर्व न्यायमूर्ति महाजन की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग नियुक्त किया। मैसूर के तत्कालीन मुख्यमंत्री एस. निजालिंग्पा, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंतराव नाइक के साथ हुई बैठक में आयोग के गठन के लिए तैयार हुए थे।

महाजन आयोग : आयोग ने अगस्त 1967 में सिफारिश की थी कि निप्पानी, खानापुर और नंदगड़ सहित 264 गांवों को महाराष्ट्र में स्थानांतरित कर दिया जाए, बेलगांव और 247 गांव कर्नाटक के पास रहें। महाराष्ट्र ने महाजन आयोग को पक्षपाती और अतार्किक बताते हुए रिपोर्ट को खारिज कर दिया और समीक्षा की मांग की। वहीं कर्नाटक सरकार ने तभी से इस पर कार्यान्वयन के लिए जोर देना जारी रखा है। हालांकि इसे केंद्र ने औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया है। कर्नाटक सरकार ने कन्नड़ बोलने वाले 260 गांवों के साथ महाराष्ट्र की सीमा पर दावा ठोका है। वहीं महाराष्ट्र सरकार कर्नाटक के नियंत्रण वाले 80 फीसदी गांवों पर अधिकार चाहती है।

बहरहाल, यह मामला 2004 से ही सुप्रीम कोर्ट में है। इसकी अंतिम सुनवाई इसी साल मार्च में हुई थी। अब यह मामला जिस तरह का का हो गया है, उसे देखते हुए अदालत कैसे इसे हल करती है यह देखना महत्वपूर्ण होगा। वैसे बेहतर होगा कि केंद्र सरकार ही अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए दोनों राज्यों को लचीला रुख अपनाने के लिए तैयार करे और कोई मध्यम राह निकाल दे।

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