अग्नि आलोक
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विपत्तियों से हारें नहीं, उन्हें हराएं 

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       पुष्पा गुप्ता 

    विपत्तियाँ जीवन के साथ अभिन्न रूप से जुड़ी रहती हैं। यह हम पर निर्भर है कि उनसे भयभीत होकर स्वयं को कमजोर बनाते चले जायें या साहस और समझदारी के साथ उनका सामना करते हुए स्वयं को अधिक मजबूत बनाते जायें। विपत्तियों से घबराइये मत, उन्हें यों मात दीजिए।

  *समझदारी और हिम्मत दिखाएँ :*

    जिस विपत्ति से नहीं बचा जा सकता, उसे सहन करने की ताकत इकट्ठी कीजिए। उसे ग्रहण करने के योग्य शरीर और मन को बनाइये। समय को अवसर दीजिए कि वह आपको आने वाली नयी परिस्थिति से युद्ध करने योग्य बना दे।

    आप जिस बात से किसी प्रकार नहीं बच सकते, उसके विषय में चिन्ता करने से भला, आपको क्या लाभ होने वाला है? चिंता से तो आप अपनी कार्यशक्तियों को पंगुमात्र बनाकर ही रहेंगे। मृत्यु, हानि, विछोह, परीक्षा में फेल होना या और भी ऐसी परिस्थितियाँ जो अपरिहार्य हैं, उनके साथ मानसिक सामंजस्य स्थापित कर लीजिए।

     *समय की सत्ता समझें :*

    समय में बड़ी ताकत है। वह बड़े से बड़े मानसिक घाव, भयंकर हानियाँ, दुःख और तकलीफें कम कर देता है। अतः जो अपरिहार्य है, उसे समझदारी और साहस के साथ स्वीकार कीजिये और समय को मौका दीजिए।

      आप विपत्ति को जरूर पराजित कर सकेंगे। संकट की घड़ी बीत जाने पर हिम्मत और अनुकूलता स्वयं आने लगती है। व्यग्र होने से कोई लाभ नहीं है।

  *हताशा में समय न गँवायें :*

    कष्ट आने पर अपनी विवेक बुद्धि द्वारा उसे परास्त करने की कोई युक्ति सोचिए। यदि आपका कोई इष्ट मित्र या सच्चा स्नेही हो तो उससे सलाह लेकर उसके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही कीजिए। उससे कम से कम हानि किस प्रकार हो, यह विचारिये। 

     सच मानिये आप जरूर कोई न कोई समाधान खोज निकालेंगे। जो व्यक्ति कार्यवाही में तेजी और सतर्कता दिखाता है, वह अवश्य सफल होता है, कष्ट की घड़ी टल जाती है। 

 *मन को परोपकार पर एकाग्र करें :*

    जीवन बहुत लम्बा है। समय का क्षण-क्षण बहुमूल्य है। न जाने कब किस रूप में आपका भाग्य चमक उठे, अच्छे दिन आ जायें। प्रत्येक दिन नयी-नयी सम्भावनाओं से भरा पड़ा है। इसलिए निराश होने की आवश्यकता नहीं है।

    जीवन की सार्थकता इसी में है कि समय का अधिक से अधिक उपयोग संसार के उपकार के लिए किया जाए। दूसरों की सेवा में मनुष्य अपना दुःख दर्द भूल जाता है। अतः दूसरों की सहायता करने पर मन को एकाग्र कीजिए।

  *आप अभावग्रस्त नहीं :*

    आपको अच्छा स्वास्थ्य, प्यार करने वाला परिवार, सेवाभावी पत्नी, बन्घु-बान्धव, मकान, वस्त्र, व्यापार, यश, प्रतिष्ठा, यौवन, कीर्ति न जाने कितनी मंगलकारी वस्तुएँ प्राप्त हैं। असंख्य वस्तुएँ ऐसी हैं, जो दूसरों के पास नहीं है। 

    आप इन्हें गिनें और उन लोगों के जीवन की कल्पना करें, जिनके पास ये मंगलकारी वस्तुएँ नहीं हैं। फिर सोचिए कि विपत्ति के लिए शोक करना कितना व्यर्थ है।

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