अग्नि आलोक
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मतकर तू अभिमान रे बंदे

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शशिकांत गुप्ते

आज सीतारामजी को शोले फिल्म के कुछ संवाद का स्मरण हुआ,अब तेरा क्या होगा रे कालिया।
मैने पूछा आज आप गब्बर सिंह को क्यों याद कर रहे हो?
सीतारामजी ने जवाब की जगह गब्बर सिंह का संवाद सुनाया, पचास पचास कोस दूर जब कोई बच्चा रोता है,तो उसकी मां कहती है,बेटा सो जा नहीं तो गब्बर सिंह आ जाएगा।
मैने कहा इतना बड़ा नाम गब्बर सिंह और डराता है सिर्फ नन्हे बच्चों को,मतलब कुख्यात होने के बाद भी नन्हे बच्चों को आतंकित करता है।
सीतारामजी को जोर से हंसी आ गई और कहने लगे,फिल्मों में सब काल्पनिक होता है।
वैसे गब्बर सिंह का अभिनय करने वाले की पिताजी भी खलनायक का ही अभिनय करते थे।
मैने कहा मतलब परिवार वाद?
सीतारामजी पुनः ठहाका लगाया और कहने गले व्यंग्यकर हर एक बात में व्यंग्य ढूंढ ही लेता है।
सीतारामजी ने कहा आज मुझे सन 1965 में प्रदर्शित फिल्म
जोहर मेहमूद इन गोवा में गीतकार क़मर जलालाबादी के लिखे गीत पंक्तियों का स्मरण हो रहा है।
न कोई रहा है न कोई रहेगा
हलाकू रहा है न हिटलर रहा है
मुसोलिनी का ना वो लश्कर रहा है
नहीं जब रहा रूस का जार बाकी

(रूस के तानाशाह स्टालिन को जार कहते थे।)
तो कैसे रहेगा सालाजार बाकी
(सालाजार पोर्तुगीज का तानाशाह था)
ये सारे तानाशाह लगभग 18 वी सदी और उसके पूर्व हुए हैं।
आज भी कुछ लोग तानाशाह प्रवृत्ति का अनुसरण करते हैं।
देशी फिल्मों में तो खलनायक का आतंक दर्शाने की मानो परिपाटी ही विद्यमान है।
अहंकार होना,विलासिता पूर्ण जीवन यापन करना
ऐनकेनप्रकारेण हुकूमत को प्राप्त करना, तकरीबन ये सारे लक्षण तानाशाह प्रवृत्ति के ही हैं।
अंत में यही कहना है।
इतना सब होने पर आम आदमी के पास क्या है? जो है वह बहुत मजबूत अहिंसक शस्त्र नहीं शास्त्र है। जवाब प्रसिद्धि शायर दुष्यंत कुमार के निम्न शेर में है।
सामान कुछ नहीं है फटे-हाल है मगर
झोले में उस के पास कोई संविधान है

शशिकांत गुप्ते इंदौर
( 20 जुलाई 2023 )

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