गौरव पाठक
रत में छोटे-छोटे कजों का दायरा लगातार बढ़ भा रहा है। इसकी प्रमुख बजार हरला क हाथ में नकदी का अभाव। इसकी कमी वे लोन लेकर करते हैं। चूंकि अधिकांश बैंक और वित्तीय संस्थानों में कर्ज प्राप्ति के लिए ढेर सारी औपचारिकताएं होती हैं, इसलिए लोग लोन एप्स का आसरा लेते हैं और यहीं पर कई लोग फंस जाते हैं। आइए जानते हैं कि इस तरह के एप्स पर लोन लेने के संबंध में उपभोक्ताओं के हक में किस तरह के प्रावधान हैं और गड़बड़ी होने पर ग्राहक क्या कर सकते हैं।
उपभोक्ता संरक्षण के लिए आरबीआई के क्या हैं निर्देश?
लोन एप की अनेक घटनाएं सामने आने के बाद आरबीआई ने एक मास्टर निर्देश जारी किया था, जिसमें कहा गया कि नॉन बैकिंग फाइनेंशियल कंपनियां (एनबीएफसी) कर्जदाताओं को परेशान करने के लिए बाहुबल का इस्तेमाल करने जैसे अनुचित उत्पीड़न का सहारा नहीं ले सकतीं। आरबीआई ने यह भी कहा था कि एनबीएफसी के पास ग्राहकों की शिकायत का समाधान करने के लिए एक निवारण तंत्र होना जरूरी है। साथ ही कहा कि एनबीएफसी द्वारा किसी भी गतिविधि को आउटसोर्स करने से उनके दायित्व कम नहीं होते हैं, क्योंकि नियामक निर्देशों के अनुपालन की जिम्मेदारी पूरी तरह से उन पर ही है।
धोखाधड़ी मिलने पर ग्राहक के पास क्या हैं विकल्प ?
1. यदि कोई व्यक्ति धोखाधड़ी वाले लोन एप का शिकार हो गया है और उसके अवैध कार्यों का सामना कर रहा है तो उसके पास कई विकल्प उपलब्ध हैं। इसके पहले कदम के तौर पर राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल पर या 1930 पर कॉल करके जानकारी प्रस्तुत की जानी चाहिए। आप इस संबंध में एफआईआर भी दायर कर सकते हैं। यदि लोन एप द्वारा दी जाने वाली धमकी में मॉर्ड तस्वीरें साझा करना शामिल है तो एफआईआर में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के प्रासंगिक प्रावधान शामिल होंगे।
2. यदि उपभोक्ता को किसी ऐसे एप से ऋण लेने के बाद उत्पीड़न या धोखाधड़ी का सामना करना पड़ रहा है, जिसका स्वामित्व किसी बैंक या एनबीएफसी के पास है या उस एप का बैंक या एनबीएफसी के साथ गठजोड़ है तो ग्राहक आरबीआई लोकपाल से भी संपर्क कर सकता है। इस संबंध में आरबीआई इससे पहले दो एनबीएफसी के लाइसेंस रद्द कर चुका है, जो उसके निर्देशों का पालन नहीं कर रही थीं। 3. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत सेवा में कमी, अनुचित व्यापार व्यवहार (अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस) और भ्रामक विज्ञापन के लिए उपभोक्ता शिकायत दर्ज करा सकता है। यह प्रक्रिया ‘ई-दाखिल प्लेटफॉर्म’ के माध्यम से ऑनलाइन होती है। उपभोक्ता मानसिक प्रताड़ना और शारीरिक नुकसान के लिए भी मुआवजे का दावा कर सकते हैं।
ग्राहक के पास उपभोक्ता आयोग में जाने का भी है अधिकार
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 34 के अनुसार 50 लाख रुपए तक के उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता आयोग में दर्ज करवाए जा सकते हैं। यदि निर्णय उपभोक्ता के पक्ष में होता है तो इसी अधिनियम की धारा 39 (1) (सी) के तहत आयोग अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए भुगतान किए गए अतिरिक्त शुल्क को वापस करने का निर्देश दे सकता है। इसके अलावा आयोग अधिनियम की धारा 39(1) (डी) के माध्यम से उपभोक्ता को हुए किसी भी नुकसान के लिए मुआवजा दे सकता है। धारा 39(1) (एम) के तहत मुकदमे की लागत भी प्रदान की जा सकती है।
(लेखक जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल में असिस्टेंट प्रोफेसर और सीएएससी के सचिव हैं।)