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अमेरिका में दर्जनों राज्यों ने इंस्टाग्राम और फेसबुक की मूल कंपनी मेटा पर मुकदमे दर्ज किए

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राकेश गोस्वामी

अमेरिका में इन दिनों बिग टेक कंपनियों, विशेषकर सोशल मीडिया कंपनियों को लेकर खासी चिंता है। हाल ही में वहां दर्जनों राज्यों ने इंस्टाग्राम और फेसबुक की मूल कंपनी मेटा पर मुकदमे दर्ज किए हैं। इनमें आरोप लगाया है कि कंपनी के सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स से छोटे बच्चों और किशोरों को नशे की लत के लिए उकसाया गया है। इसने उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाला है। कैलिफोर्निया और न्यूयॉर्क सहित 33 अमेरिकी राज्यों के अटॉर्नी जनरलों ने कहा है कि मेटा ने अपने प्लैटफॉर्म्स के खतरों के बारे में जनता को बार-बार गुमराह किया।

अमेरिका में इंस्टाग्राम पर दर्जनों मुकदमे दर्ज हुए हैं। आरोप है कि इंस्टाग्राम और फेसबुक युवाओं में बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर नाम की मानसिक बीमारी को बढ़ावा दे रहे हैं

  • अमेरिका में दर्ज मुकदमों में कहा गया है कि मेटा ने युवाओं और किशोरों को लुभाने, इंगेज करने और आकर्षित करने के लिए शक्तिशाली और अभूतपूर्व तकनीकों का उपयोग किया है।
  • मुकदमों में यह भी कहा गया है कि इंस्टाग्राम और फेसबुक यंग यूजर्स में बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर नामक मानसिक बीमारी को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते हैं। बॉडी डिस्मॉर्फिया में व्यक्ति अपनी किसी शारीरिक खामी को लेकर इतना चिंतित रहता है कि वह समाज से खुद को काटने लगता है।
  • मेटा ने इन सभी आरोपों का खंडन किया है। टेक कंपनी के प्रवक्ता ने कहा है कि हम किशोरों और उनके परिवारों का समर्थन करने के लिए पहले ही 30 से अधिक उपकरण पेश कर चुके हैं।
  • इसके पहले, अमेरिकी राज्य यूटा ने मार्च में एक ऐसे कानून की घोषणा की जिसके तहत 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों को सोशल मीडिया साइट्स का उपयोग करने के लिए माता-पिता की सहमति की जरूरत होगी। यह कानून मार्च 2024 से लागू होना है। माना जा रहा है कि इससे सोशल मीडिया की बढ़ती लत और ऑनलाइन क्राइम जैसे जोखिमों से बच्चों को सुरक्षा मिलेगी।

इन मुकदमों में जो बातें हैं, कुछ ऐसे ही आरोप दो साल पहले मेटा की पूर्व कर्मचारी फ्रांसिस हाउगेन ने भी लगाए थे। उन्होंने इंस्टाग्राम पर किए गए एक आंतरिक अध्ययन का खुलासा करते हुए बताया था कि ऐप का उपयोग करने वाली कई युवा लड़कियां डिप्रेशन और बॉडी शेमिंग से पीड़ित थीं। इसी बीच यह सूचना भी सार्वजनिक हुई कि मेटा ने तीसरी तिमाही में उम्मीद से ज्यादा मुनाफा कमाया है। पिछली तिमाही (जुलाई, अगस्त, सितंबर) में मेटा के डेली एक्टिव यूजर (DAP) की संख्या में 7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, और ऐड इंप्रेशंस में 31 फीसदी की वृद्धि रेकॉर्ड की गई। सोचने वाली बात है कि क्या इन दोनों खबरों में कोई संबंध है। क्या सचमुच युवाओं में इन सोशल मीडिया प्लैटफॉर्मों की लत से टेक दिग्गज के मुनाफे में इजाफा हो रहा है?

सोशल मीडिया के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर चिंता कोई नई बात नहीं है।

  • अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के डेटा के अनुसार 9वीं से 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली 30 फीसदी अमेरिकी लड़कियों ने आत्महत्या करने पर गंभीर रूप से विचार किया।
  • अप्रैल 2021 में प्रकाशित प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वे के मुताबिक 18-29 साल के अधिकांश युवाओं ने कहा कि वे इंस्टाग्राम (71 फीसदी) या स्नैपचैट (65 प्रतिशत) का उपयोग करते हैं। इस आयु वर्ग के आधे उत्तरदाताओं ने कहा कि वे टिक टॉक का उपयोग करते हैं।
  • इसके अलावा दूसरे शोध भी हैं, जिनमें पाया गया है कि सोशल मीडिया का उपयोग एंग्जाइटी, डिप्रेशन और टेंशन से जुड़ा है।

अमेरिका की चिंता जायज है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अमेरिका से ज्यादा सोशल मीडिया उपयोगकर्ता वाले देश भारत में इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा है? आज दुनिया की लगभग 60 फीसदी जनसंख्या सोशल मीडिया यूजर है और ये लोग प्रतिदिन लगभग 2 घंटा 27 मिनट सोशल मीडिया पर बिताते हैं। भारत का डेली एवरेज इस ग्लोबल डेली एवरेज से कहीं अधिक है। ऐसे में साफ है कि भारत में सोशल मीडिया के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर ज्यादा चिंता होनी चाहिए। लेकिन सच यह है कि मेटा और गूगल जैसी टेक कंपनियों ने भारतीय डेटा संरक्षण अधिनियम का पालन करने के लिए भी 12-18 महीने का समय मांगा है।

(लेखक भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली में प्रफेसर हैं)

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