डा० लोहिया का बड़ा व दीर्घकालिक राजनीतिक प्रभाव कई दशकों तक बेशक हिंदी राज्यों में पड़ा हो लेकिन गोवा अकेला ऐसा राज्य है जहॉं औसतन व अपेक्षाकृत ज्यादा लोग उनसे लगाव महसूस करते हैं और मानते हैं कि गोवा को पुर्तगाली साम्राज्य से मुक्त कराने में सबसे अहम भूमिका डा० लोहिया की ही रही।
तमाम भारतीय राज्यों के सोशलिस्ट कार्यकर्ता नेता गोवा की पुर्तगाली जेलों में रहे , बुरी तरह पीटे गये – सिर फटे – अंधे हुये , कई शहीद भी हुये । कांग्रेसी तब सरकारी मलाई का सेवन कर रहे थे , सत्तानशीन थे । एक ही काम था कि आंदोलन का चौतरफ़ा प्रभाव न पड़े। महात्मा गांधी के अलावा किसी नेता और एक भी कांग्रेसी और सर्वोदयी नेता झाँकने तक को गोवा नहीं आया बल्कि महाराष्ट्र ( सौराष्ट्र) के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई तो भीतरघात भी करते रहे। पंडित नेहरू तरह तरह से टालमटोल करते रहे और सरदार पटेल के लिये तो गोवा भारत का हिस्सा ही नहीं था। इस तथ्य को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता कि सोशलिस्टों के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और फ़ॉरवर्ड ब्लॉक के कार्यकर्ता शामिल हुये। गोवा के स्थानीय नर नारी साहित्यकार लेखक सामाजिक नेता तो जुड़े ही हुये थे।
डा० लोहिया द्वारा १८ जून १९४६ को मडगाँव में हुई प्रतिरोध सभा के बाद पणजी समेत पूरे प्रांत में क्रांति की लहर फैल गई। मडगाँव में लोहिया मैदान में प्रतिमा व स्मारक ही नहीं हैं बल्कि अलग अलग स्थानों पर भी है। पणजी में मुख्यमार्ग को १८ जून मार्ग कहा जाता है और १८ जून को ही गोवा में आज़ादी का उत्सव होता है। अग्वाड की जिस जेल में लोहिया , एनजी गोरे , मधु लिमये , जगन्नाथ राव जोशी आदि क़ैद रहे वह आज गोवा मुक्ति के ६० साल बाद राष्ट्रीय स्मारक घोषित हुआ। 
आज म्हापुसा के मुख्य चौराहे पर डा० राममनोहर लोहिया पार्क देखा तो मेरा दिन बन गया।
रमाशंकर सिंह की पोस्ट
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