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देश और दुनिया के लिये समर्पित एक मुकम्मल इंसान डा.एस.एन.सुब्बराव 

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(भाई जी के जन्म दिवस पर बिशेष)
(जगदीश शुक्ला)

”भाई जी“ तीन अक्षरों का यह संयोजन नाम है उस स्पंदन का जो सदैब देश और दुनियां,सदभाव एवं भाईचारे के लिये धड़कता रहा। जिसने सदैब सामाजिक सरोकार और देश के लिये सिद्दत से सोचते हुए देश की नौजवान पीढी को देशप्रेम,सद्भाव नैतिक संस्कारों से दीक्षित कर उसे जिम्मेवार नागरिक बनाया। भाई जी महज एक संबोधन नहीं अपितु उस किरदार का नाम है जिसने जीवन भर गांधीवादी विचारों को आत्मसात ही नहीं किया अपितु महात्मा गांधी के आदर्शों को जीवन में उतार कर दिखाया। यह तीन अक्षर उन भावों को झंकृत करते है ंजिसमें से देशप्रेम,सत्य,अहिंसा,सद्भाव एवं संस्कार के मधुर संगीत की सरसता निसृत होती है। यही तीन अक्षर हैं जो जेहन में आते ही उस अनूठी प्रतिमा को आकार देने लगते हैं, जिसे किसी जाति,धर्म,संप्रदाय से परे वंचित समुदाय के मसीहा की छवि को साकार करते हैं। यही तीन अक्षर हैं जो एक एसे अनूठे रिश्ते का निर्माण करते हैं जिसमें अनंत आत्मीयता,अनंत बिश्वास,गहरी संबेदनायें और असीम प्रेम निहित हैं। बागी समर्पण का इतिहास रचकर चम्बल घाटी में सदियों पुरानी बागी समस्या का समाधान कराकर गांधी के अहिंसा के मंत्र की शक्ति को प्रमाणित करने बाले श्रृ़द्वेय डा.एस.एन.सुब्बराव भाई जी सचमुच कोई साधारण इंसान नहीं थे। सुदूर दक्षिण से आये उस समय के युवा भाई जी ने चंबल में बागी समर्पण जैसा असाधरण काम करने बाले भाई जी ने चंबल की धरती से जो रिश्ता बनाया उसे अपने जीवन भर निबाहा। चंबल की धरती के लिये यह कम गौरव की बात नहीं कि भाई जी देश और दुनियां में अपना परिचय चंबल के बेटा के रूप में दिया।


आज जब गांधी सेवा आश्रम जौरा में इस रिश्ते को सिद्दत से समझने बाले देशभर से आये हजारों लोग भाई जी का 94 वां जन्म दिवस एक़ित्रत हुए तब इस बात का अहसास हुआ कि तीन अक्षर का यह आत्मीयता से भरा संबोधन कई जन्मों के उस गहरे रिश्ते का नाम है। जो जन्म जन्मांतर के किसी अटूट बंधन में बंधा है। गांधी सेवा आश्रम जौरा में 7 फरवरी 2022 को भाई जी का एसा पहला जन्मदिवस मनाया गया जब वह खुद उस दुनियां में नहीं थे। भाई जी की ना मौजूदगी की कसक के साथ उनके अधूरे कार्यों को गति देने की फिक्र हर किसी के चेहरे पर साफ देखी जा सकती थी। वहां मौजूद हजारों लोगों को भाई जी के अपने से दूर चले जाने का अहसास तो था,लेकिन यह दूरियां ही भाई जी के साथ उनके आत्मीय रिश्तों का अहसास करा रहीं थीं। कदाचित इन्हीं भावों की बेवसी को बयां करने के लिये ही किसी अनाम शायर को लिखना पड़ा।
“कुछ एसा अजब फलसफा है ये जिन्दगी का,
दूरियां करातीं है नजदीकियों का अहसास”
चम्बल अंचल से भाई जी का गहरा एवं आत्मीय रिश्ता रहा है। चंबल की धरती पर ्60 के दशक में पहली दस्तक के बाद सन 1970 में चम्बल क्षेत्र के केन्द्र जौरा जैसे छोटे स्थान पर स्थाई रूप से रहना एवं महज 2 बर्ष के अथक प्रयासों से बागी समर्पण का इतिहास लिखने के बाद यहीं के होकर रह जाना इस बात का संदेश है कि चम्बल से उनका गहरा एवं अटूट रिश्ता है। अंचल में शांति स्थापना के बाद भाई जी एक इंसान से इतर महामानव,मसीहा एवं संत की श्रेणी में शुमार हो गये। कदाचित यही उनका संतत्व था कि सब कुछ होते हुए भी यायावरी को अपना साध्य एवं कर्म को उन्होंने अपना साधन बनाया।
उनके इस दुनियां से जाने के साथ ही गांधीवाद के एक एसे युग का भी अवसान हो गया जो अपने कथ्य को दूसरों से अमल में लाने के उपदेश देने से पूर्व उसको अपने आचरण में उतारकर मुकम्मल करने में विश्वास करता है। एसे कर्मवीर योद्वा द्वारा चंबल को अपनी कर्मस्थली बनाने से शायद चंबल की धरती भी अपने आपको कृतार्थ मानती है। देश और दुनियां में गांधीवाद का अलख जगाते-जगाते भाई जी खुद चिर निद्रा में सो गये। उन क्षणों में जब देश और दुनियां को उनकी सर्वाधिक जरूरत थी उनका इस दुनियां से रूखसत हो जाना सचमुच गांधी विचारधारा एवं नैतिकता सम्पन्न देश गढ़ने के ख्वाहिशगारों के लिये बहुत बड़ी छति है। देश के युवाओं के चेतना पुंज,चंबल अंचल के एतिहासिक बागी समर्पण के सूत्रधार,अहिंसा के तीर्थ के रूप में देश और दुनियां को शांति,सद्भाव एवं अहिंसा का आलोक बिखेरता महात्मा गांधी सेवा आश्रम के संस्थापक गांधीवादी संत डा.एस.एन.सुब्बाराव के अवसान से देशभर के गांधी वादी आदर्शों के पहरूए आहत हैं वहीं चंबल अंचल का जर्रा-जर्रा व्यथित है। किसी को गुमान भी नहीं था कि मानव एवं राश्ट्र सेवा के लिये समर्पित गांधीवाद का यह अनूठा पथिक यूं अचानक अपना सामान समेट अपनी अनंत यात्रा के लिये रूखसत हो जायेगा।
सदैब जन्मभूमि से बढ़कर मानी कर्मभूमि
एक एसा मुकम्मल इंसान जिसने अपना समूचा जीवन चंबल अंचल की सेवा के लिये समर्पित कर उसे अपनी कर्मस्थली बनाकर उसे अपनी मातृभूमि से अधिक मान और प्रतिष्ठा दी। चंबल की धरती से उन्होंने अपना जो रिश्ता अपनी युवावस्था में बनाया उसे एक सच्चे सपूत की तरह अंतिम समय तक निबाहा। शायद भाई जी का यही महानता थी जिससे एक बार मिल लिये उसे सदैब के लिये अपना बना लिया। किसी से भी कितने ही अंतराल के बाद मुलाकात हो उसे नाम से पुकार कर घर गृहस्थी और आसपास के सभी लोगों की कुशल क्षेम पूछना उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति में शामिल था। भाई जी के यूं अचानक रूखसत होने के साथ ही
गांधीवादी आदर्शों को आत्मसात कर उन्हें अपना जीवन सहचर बनाने बाले एक मुकम्मल इंसान फिर से इस दुनियां में आने के लिये हमें कदाचित अभी लंबा इंतजार करना होगा। बागी समर्पण के सूत्रधार रहे आदरणीय भाई जी को चंबल की धरती का कोटि कोटि प्रणाम एवं आदरांजलि। हमारी इस बेबसी को किसी अनाम शायर ने कुछ इस तरह बयां किया है।
हजारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पर रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
जय जगत जय भारत
जगदीश शुक्ला
पत्रकार एवं स्वतंत्र लेखक जौरा जिला मुरैना

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