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नाटक : खुदीराम

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मीना राजपूत

नेपथ्य से—-

शहीद खुदीराम बोस देश के लिये वंदेमातरम कहते हुए 19 वर्ष की अवस्था में 19 अगस्त 1908 को प्रातः 6 बजे हंसते-हंसते फाँसी चढ़ गये। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए उनके जीवन पर एक नाटक प्रस्तुत किया जा रहा है।

        अमर शहीद खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसम्बर 1889 को बंगाल के मेदिनीपुर जनपद के बहुबेनी नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम त्रैलोक नाथ बोस और माता का नाम लक्ष्मीप्रिया था।

       पहला दृश्य—    

     पर्दा खुलता है—-

( एक चारपाई पर एक नव प्रसूता स्त्री लेटी है। दाई बच्चे को उसके पास लिटाती है)

दाई—लो अपने लाल को सम्हालो।

लक्ष्मीप्रिया बच्चे को अपने पास लिटाते हुए —-दाई मैया तुम जानती हो कि मेरे लाल जिंदा नहीं रहते हैं। तुम मुझ पर एक कृपा करो। मंदिर के पंडित जी के घर की ओर से निकल जाओ। उन्हें बता देना कि उन्हें पूजन के लिये बुलाया है।

दाई—ठीक है । मैं जाकर उन्हें तुरंत बताती हूँ। (बाहर निकल जाती है।)

    दूसरा दृश्य—

पंडित जी देवी की मूर्ति के सामने बैठे हैं।

दाई—पालागन पंडित जी। त्रैलोकनाथ बोस और लक्ष्मीप्रिया के बेटा हुआ है। उन्होंने आपको पूजा के लिये बुलाया है।

पंडित जी—मैं कल सुबह मंदिर की आरती करके चला जाऊंगा।

दाई—पंडित जी लक्ष्मीप्रिया बहुत भली स्त्री है। देवी की भक्त है। उसके पुत्र पैदा होते हैं पर मर जाते हैं।  आप कोई उपाय बता दो न।

पंडित जी— मैं सोचता हूँ और कल बता भी दूँगा।

दाई पंडित जी को प्रणाम करके चली जाती है।

     तीसरा दृश्य—

(बोस और लक्ष्मीप्रिया बैठे हैं। बच्चा मां की गोद में है। पंडित जी पत्रा लिये प्रवेश करते हैं।)

पंडित जी को देखकर लक्ष्मीप्रिया आंचल से आँसू पोंछते हुए पंडितजी को प्रणाम करती है।

लक्ष्मीप्रिया—पंडित जी हम पर कृपा करो। कोई उपाय बताओ कि मेरा लाल स्वस्थ रहे।

पंडित जी –बच्चे की पूजा तो छठी के दिन ही होगी। आज मैं पत्रा देखकर कुछ उपाय बताता हूँ। (चश्मा लगाकर पत्रा में देखते हैं। शुभ मुहूर्त बताते हैं और फिर पूछते हैं)—   उपाय बहुत कठिन है। क्या तुम लोग उपाय कर पाओगे?

पति-पत्नी एक साथ बोल पड़े— क्या उपाय है पंडित जी? आप बताइये तो । अपने लाल को बचाने को हम कुछ भी करेंगे।

पंडित जी— उपाय कठिन है। शास्त्र बताते हैं कि  जिसके बच्चे नहीं बचते हैं वे यदि उसे किसी को बेच दें तो दूसरे के भाग्य से बच्चा बच जाता है।

पति-पत्नी विचार में पड़ गये तभी उनकी पुत्री अनरूपा और दामाद अमृतलाल ने प्रवेश किया और पंडित जी के चरण स्पर्श किये।

पंडित जी—ये लोग कौन हैं?

त्रैलोकनाथ बोस—पंडित जी यह मेरी पुत्री अनरूपा और मेरे दामाद अमृतलाल हैं।

पंडित जी—अरे भाई तुम चिंता क्यों करते हो? अपने बच्चे को अपनी पुत्री और दामाद को बेच दो। बाद में चावल देकर उसे खरीद लेना।

सबके चेहरे खिल उठते हैं।

पंडित जी—बेटी अनुरूपा क्या तुम लोग अपने भाई की जान बचाने के लिये उसे कुछ धन देकर खरीदोगे?

अनुप्रिया—पंडित जी मैं अपने भाई की जान बचाने के लिये जो आप कहेंगे, करने को तैयार हूँ।

पंडित जी—बेटी! कुछ धन देकर अपनी माँ से अपने भाई को खरीद लो।      (लक्ष्मीप्रिया अपने बच्चे को भगवान को साक्षी मानकर अपनी पुत्री अनरूपा को कुछ धन लेकर बेच देती है।)

चौथा दृश्य—

पंडित जी बच्चे की छठी का पूजन कराते हैं। सबके हाथ में कलावा बांध कर कहते हैं—लक्ष्मीप्रिया! अब तुम भगवान को साक्षी मानकर  अपने पुत्र को खुद्दी देकर खरीद लो।

     ( लक्ष्मीप्रिया बच्चे को अपनी बेटी से चावल के बदले खरीद लेती है।)

पंडित जी– बच्चे को चावल के बदले खरीदा गया है। चावल को खुद्दी कहते हैं अतः इसका नाम खुदीराम बोस रक्खा जाता है।

( नेपथ्य में उद्घोषणा होती है—– खुदीराम बोस के माता-पिता की 6 वर्ष की आयु में मृत्यु हो जाती है। उनकी बहिन अनरूपा और जीजा अमृतलाल उनका पालन-पोषण करते हैं। खुदीराम बोस कक्षा दो तक पढ़ते हैं। अंग्रेज़ों के अत्याचार देखकर उनका खून खौलता था और बचपन से ही उनके मन में अंग्रेज़ों के प्रति विद्रोह की भावना पनपने लगी थी। वह आनंदमठ उपन्यास बहुत मन से पढ़ते थे और वंदेमातरम गीत बड़े प्रेम से गाया करते थे। उनका पंद्रह वर्ष की आयु में ही क्रांतिकारियों से परिचय हो गया और वह उनके आर्य कलापों में सम्मिलित होने लगे। वह भीड़ वाले स्थानों पर अंग्रेज़ों के विरुद्ध पर्चे बाँटते थे। एक बार मना करने के बावजूद पर्चा बांटने पर पुलिस वाले ने उन्हें गिरफ्तार करना चाहा तो वह उसकी नाक पर घूँसा मार कर भाग गये।)

पाँचवां दृश्य—

     पर्दा खुलता है —

मंच पर कई क्रांतिकारी नवयुवक  बैठ कर सभा कर रहे हैं।

एक युवक— इस समय बंगाल में आंदोलन तेज हो गया है।

दूसरा युवक— हाँ भाई लोग जागरूक हो गये हैं  और खुले आम वंदेमातरम गाते हुए हुए घूमते हैं।

तीसरा युवक— ब्रिटिश सरकार बौखला गई है और वंदेमातरम बोलने पर लोगों को सज़ा देने लगी है।

चौथा युवक–  क्या तुमने सुशील सेन के विषय में  कुछ सुना है?

खुदीराम बोस- हां कुछ लोग अँग्रेज़ों के प्रति विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। सुशील सेन पकड़ा गया है।

सौमित्र घोष — अरे भाई सुशीलसेन को पंद्रह बेंत मारने की सज़ा दी गई है।

पहला युवक —ये बड़े ज़ालिम हैं,  बच्चा है या बड़ा कुछ भी नहीं देखते।

दूसरा युवक—सज़ा देने वाला जज कौन था? उसे तो मैं मार डालूँगा।

प्रफुल्ल कुमार — किंग्स फोर्ड ने सुशील सेन को सजा दी है। वह बहुत निर्दयी है मैं उसे मार डालूँगा—(क्रोध के आवेश में प्रफुल्ल कुमार चाकी ने कहा।)

खुदीराम बोस— नहीं। किंग्स फोर्ड को मैं मारूँगा।

सब लोग एक साथ—ठीक है पर प्रफुल्ल कुमार चाकी भी तुम्हारे साथ इस मिशन में काम करेगा।

      सब क्रांतिकारियों ने समर्थन किया।

छठा दृश्य—

(खुदीराम बोस और प्रफुल्ल कुमार चाकी किंग्स फोर्ड के बंगले के पास झाड़ी में छिप कर बैठे हैं।)

खुदीराम बोस—रोज फोर्ड आठ बजे के बाद बंगले से बाहर निकलता है । आज क्या बात हो गई? कहीं दिखाई नहीं देता।

प्रफुल्लकुमार चाकी— आज साड़े आठ बजने वाले हैं और उसका अता–पता नहीं है। कहीं कार्यक्रम रद्द तो नहीं कर दिया।

खुदीराम बोस— ऐसे तो वह इस समय रोज़ जाता है। शी ई ई ई– चुप-चुप किसी गाड़ी की आवाज़ सुनाई दे रही है।

प्रफुल्ल कुमार चाकी— हाँ दोस्त तैयार रहो । अँधेरे में निशाना चूक न जाये।

खुदीराम बोस—ये लो वंदेमातरम और सामने आने वाली गाड़ी पर बम का प्रहार करते हुए वंदेमातरम—(ज़ोर से चिल्लाते हैं।)

गाड़ी के साथ उसमें बैठे हुए लोगों के बम के धमाके में परखचे उड़ जाते हैं। दोनों क्रांतिकारी वंदेमातरम का जयघोष करते भागते हैं।

सातवां दृश्य—

उद्घोषणा होती है—बेनीग्राम रेलवे स्टेशन पर भागते हुए खुदीराम बोस आते हैं। एक दुकान के पास बैठ कर सुस्ताते हैं।

       एक व्यक्ति —भैया तुमने सुना किसी ने किंग्स फोर्ड जज साहब की गाड़ी पर बम फेंक दिया है। गाड़ीवान सहित सब मर गये।

दुकानदार–चुप रहो भाई नहीं तो हम सब भी पकड़े जायेंगे।  देखो न पुलिस वाले कुत्तों की तरह सूँघते फिर रहे हैं।

तीसरा व्यक्ति—अरे वह ज़ालिम तो बच गया।

दूसरा व्यक्ति—कौन बच गया?

तीसरा व्यक्ति—और कौन वही किंग्स फोर्ड।

पहला—क्या कह रहे हो?

तीसरा व्यक्ति–मैंने उधर से आते समय सिपाहियों को बात करते सुना है। किसी ने बम फेंका था पर उस समय उसकी गाड़ी में सरकारी वकील की पत्नी और लड़की थीं। गाड़ीवान सहित वे दोनों मर गईं। गाड़ी के परखचे उड़ गये।

खुदीराम बोस—(आश्चर्य और क्षोभ से मुट्ठी भींचते हुए)— क्या किंग्स फोर्ड बच गया?

खुदीराम बोस की भाव भंगिमा देखकर दुकानदार को शक हो जाता है।

वह धीरे से पुलिस वालों को इशारा कर देता है और वे खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लेते हैं।

नेपथ्य से—

खुदीराम बोस को पकड़कर जेल में डाल दिया जाता है। ढाई महीने मुकदमा चलता है और उनको फाँसी की सज़ा दी जाती है।

आठवां दृश्य—

(खुदीराम बोस जेल में बंद हैं। वह मस्त होकर वंदेमातरम गाते रहते हैं। फाँसी से एक दिन पहले उनके मुख पर चिंता का कोई भाव नहीं है। इस किशोर को कल फाँसी होने वाली है यह सोचकर जेलर समेत सब कैदी और कर्मचारी दुःखी हैं।)

जेलर सुबह तीन आम खुदीराम बोस को देते हुए कहते हैं—बेटा! लो ये आम खा लो।

खुदीराम बोस—दादा! आम रख दो, मैं बाद में खा लूँगा।

जेलर प्लेट में आम रख कर चले जाते हैं।

खुदीराम बोस जेलर के जाने के बाद आम चूस कर खाते हैं। इसके बाद छिलकों में मुँह से हवा भरकर फुलाया और उन्हें सम्हालकर प्लेट में रख दिया।

(जब शाम को जेलर आते हैं तो आम वैसे ही रक्खे दिखाई देते हैं।)

जेलर—बेटा! तुमने आम क्यों नहीं खाये?

खुदीराम—दादा आप आम खिलाओ तब तो खाऊँ।

जेलर जाकर आम उठाते हैं—(आश्चर्य से) अरे यह क्या? (सब आम फटे हुए हैं पिचक जाते हैं।)

खुदीराम बोस ठठाकर हँस पड़ते हैं— मैंने दादा को बेबकूफ बना दिया, मैंने दादा को बेबकूफ बना दिया।

जेलर और अन्य कर्मचारियों की आँखें नम हो जाती हैं।

नवाँ दृश्य—

अधिकारी—खुदीराम तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है बताओ?

खुदीराम बोस—“ मेरे हाथ में भरी हुई पिस्तौल दे दो और किंग्स फोर्ड को मेरे सामने कर दो।“

जल्लाद खुदीराम बोस के मुँह पर काली टोपी ढंकता है और फांसी का बटन दबाता है।

“वंदेमातरम। भारत माता की जय”  कहते हुए खुदीराम बोस फाँसी के फंदे पर झूल गये।

   “ खुदीराम बोस अमर हैं। भारत माता की जय।”(समवेत स्वर गूँजता है।)

     पर्दा गिरता है।

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