मुनेश त्यागी
भारत के अगले राष्ट्रपति के रूप में भाजपा ने राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू का नाम प्रस्तावित गया है और उनकी जीत भी पक्की लग रही है। भारत के इतिहास में किसी जनजाति की औरत को भारत का राष्ट्रपति बनाया जा रहा है, यह बहुत खुशी की बात है। राष्ट्रपति भारतीय संविधान का सबसे बड़ा पद और सबसे बड़ा रक्षक होता है। देश का शासन प्रशासन, संविधान के प्रावधानों और कानून के शासन के अनुसार चले, यह सुनिश्चित करना, राष्ट्रपति की सबसे पहली और सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
भारत में समता, समानता, न्याय, आजादी और भाईचारे का साम्राज्य कायम हो, यह सुनिश्चित करना राष्ट्रपति की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। इसी के साथ भारत में संप्रभुता, धर्मनिरपेक्षता, प्रजातांत्रिक, समाजवादी, गणराज्य का विस्तार हो और सारी जनता को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय और आजादी मिले, यह सुनिश्चित करना भी भारत के राष्ट्रपति की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। इसी के साथ भारतीय समाज में धर्म, सम्प्रदाय, जाति, रंग और लिंग के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा, देश में आर्थिक असमानता नहीं बढ़ेगी, सबको सस्ता और सुलभ न्याय मोहिया कराया जायेगा और पूरे समाज में अंधविश्वास, धर्मांधता और पाखंडों का विनाश किया जायेगा और वैज्ञानिक संस्कृति का बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार किया जायेगा, यह देखना और सुनिश्चित करना भी राष्ट्रपति की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
मगर यहां पर सबसे बड़ा सवाल यही पैदा होता है कि क्या हमारी निर्वाचित होने जा रही राष्ट्रपति इन सब जिम्मेदारियों को पूरा कर पाएंगी ? उपरोक्त सब बातों पर खरा उतर पाएंगी? हमारा पूरा विश्वास है कि वे ऐसा नहीं कर पाएंगी और सिद्धांतों और संवैधानिक कर्तव्यों को नहीं निभा पाएंगी।
राष्ट्रपति के पद पर उनका नाम आने के बाद देखा गया कि वे मंदिर में झाड़ू लगा रही हैं, किसी मूर्ति के कान में फुंसफुसा रही है। यह सब क्या दर्शाता है? यह सब दर्शा रहा है कि वे अंधविश्वासी हैं, उनका विवेक और लॉजिक में विश्वास नहीं है। वे भगवान का शुक्रिया अदा कर रही हैं संविधान का नही।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, वे दो बार विधायक रह चुकी हैं, एक बार मंत्री रह चुकी हैं एक बार राज्यपाल भी रह चुकी हैं। वे आर एस एस की विचारधारा में रची बसी और पली-बढ़ी हैं मगर वे किसी क्षेत्र के विशेषज्ञा नहीं हैं। यह भी पता चला है कि उनके गांव में अभी तक बिजली नहीं पहुंच पाई है। तो यहीं पर सवाल उठता है कि जब वे अभी तक अपने गांव में बिजली नहीं पहुंचवा पाई हैं तो इतने बड़े भारत का विकास कैसे कर पाएंगी और विकास को सही रास्ते पर कैसे ले जा पाएंगी? यह एक बहुत बड़ा यक्ष प्रश्न है।
इस पृष्ठभूमि से वे सरकार के कामकाज को प्रभावित नहीं कर सकतीं, सरकार को जन कल्याणकारी नीतियों पर चलने को बाध्य नहीं कर सकतीं, क्योंकि वे जिस दल की उम्मीदवार हैं वह सांप्रदायिक है, धर्मनिरपेक्षता उसके विचारों और नीतियों में रची बसी नहीं है, वह किसी भी तरीके से राज्यों की सत्ता को प्राप्त करना चाहता है। मध्य प्रदेश, कर्नाटक, असम और अब महाराष्ट्र में उसका संविधान विरोधी चेहरा देखा जा सकता है।
वे सरकार द्वारा अपनाई गई जन विरोधी, मजदूर विरोधी, किसान विरोधी, नौजवान और छात्र विरोधी नीतियों को बदलवाने की स्थिति में नहीं हैं। सरकार की नीतियों की वजह से जो आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है और धन कुछ लोगों के हाथों में संकेंद्रित होता जा रहा है, वे उसे नहीं रोक सकती और सरकार द्वारा अपनाई गई नीतियों की वजह से महंगाई अपने चरम पर पहुंचकर लोगों की कमर तोड़ रही है, रोजगार रसातल में चला गया है, बेरोजगारी आज तक के अपने चरम पर है। वे इन जन विरोधी नीतियों को बदलवाने की स्थिति में नहीं है। वर्तमान सरकार अमीरों की तिजोरी भरने का काम कर रही है। राष्ट्रपति की उम्मीदवार सरकार की इन नीतियों को नहीं बदलवा सकती।
यही पर एक और तथ्य देखा जा सकता है कि जब राष्ट्रपति राम कोविंद को राष्ट्रपति बनाया गया था तो उस समय बहुत सारे लोगों ने सोचा था कि अब दलित लोगों की दशा में कुछ सुधार होगा, मगर पिछले 5 सालों में क्या हुआ? पिछले 5 सालों में दलितों के हालात भारत के इतिहास में सबसे ज्यादा बिगड़े हैं। सरकार की नीतियों के कारण सबसे ज्यादा दलित बेरोजगार, गरीब, शिक्षा विहीन और जीवन के हर क्षेत्र में पिछड़ते चले गए हैं। रामगोविंद कुछ नहीं कर पाए, क्योंकि जिस दल से वे सम्बंधित हैं, उस दल का दलितों के विकास और कल्याण में कोई विश्वास नहीं है। यही सब कुछ भारत में किसानों,मजदूरों और नौजवानों के साथ हुआ है, वे सब आज तक के सबसे निचले पायदान पर खड़े हैं।
द्रौपदी मुर्मू को लेकर कुछ लोग कह रहे हैं कि उनके आने से जनजातियों के जीवन में कुछ सुधार आएगा, इस क्षेत्र में जनजातियों की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सड़क और दूसरी बुनियादी सुविधाओं में कुछ सुधार आएगा। इस क्षेत्र में द्रौपदी मुर्मू ने क्या किया है? जनजातियों की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और विकास के लिए क्या किया है? यहां उनका रिकॉर्ड जीरो ही है। हां अब द्रौपदी मुर्मू की आड़ में सरकार को जनजातियों के क्षेत्र में पूंजीपतियों के हितों को आगे बढ़ाने के और मौके मिल जाएंगे। अब वह इन क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधनों का और भयंकर दोहन करके चंद पूंजीपतियों की तिजोरियों को भरने का काम करेगी।
उपरोक्त के आलोक में हम यही कह सकते हैं कि द्रौपदी मुर्मू सरकार की नीतियों का केवल मुखौटा और मोहरा बनकर रह जाएंगी वे सरकार की रबड़ स्टांप बनकर रह जाएंगी और वे देश की जनता के विकास के लिए वांछित कुछ भी नहीं कर पाएंगी।