डॉ.अभिजित वैद्य
पूरे देश में राममंदिर की प्राणप्रतिष्ठा उत्सव का रूप धारण कर रही थी l हर मकान पर भगवा झंडा लहरा
रहा था l अंधभक्त बौखला गए थे l अंधभक्तों के आसमान को छूने वाले विश्वगुरु रामलल्ला की उँगली
पकड़कर मंदिर की ओर ले जा रहे थे l किसी का रामराज्य का, किसी का अखंड भारत का, तो किसी का
हिंदू राष्ट्र का सपना पूरा हो रहा था l देश के बच्चों से लेकर बूढों तक, गरीबगुरबा, राजा और रंक धर्म की
नशा में मशगूल थे l भाजपा को ‘इस बार चारसौ पार’ दिखाई देने लगे थे l इतने में ही ‘ऑक्सफॅम’ ने विश्व
के और भारत में बढ़नेवाली विदारक निर्धनता का अहवाल प्रसिध्द किया l युध्दपिपासु नेताओं का हठधर्मी
और शस्त्रास्त्र उत्पादन करनेवाले उद्योगपतियों के लालच हेतु युध्द में उलझे हुए विश्व को इस अहवाल की
ओर ध्यान देने की फुर्सत नहीं थी l रामनाम के उदघोष में दंग भारतीयों को भी इस वास्तव की ओर ध्यान
देने के लिए समय नहीं था l
विश्व में अमीरी और निर्धनता दोनों भी दो ध्रुवों की ओर जा रहे हैं l विश्व के सबसे अमीर पाँच
अरबोंधिपतियों की संपत्ति गत दशक में पाँच गुना बढ़ गई तो दूसरी ओर विश्व के ६०% लोगों की दरिद्रता
में वृध्दि हो गई l विश्व के १% उच्च अमीरों के पास विश्व की कुल संपदा में से ४३% संपदा है l लेकिन ये
१% अमीर लोग विश्व के दो तिहाई लोगों जितना कार्बन प्रदूषण करते हैं l इन अब्जाधिशों में से समझिए
किसी एक ने हररोज दस लाख डॉलर्स खर्च करना तय किया तो भी उनकी तिजोरी में खडखडाहट होने में
४७६ वर्ष लगेंगे l विश्व के सबसे रईस लोगों में १० में से ७ कॉर्पोरेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी या कम
से कम एक शेअर धारक अब्जाधिश है l गत दशक में इन महाकंपनीयों के मुख्यकार्यकारी अधिकारीयों का
वेतन १२००% ने बढ़ गए लेकिन कर्मचारियों को सब्ज बाग दिखा दी l इन दस कंपनीयों की कुल संपदा
१०.२ ट्रिलियन डॉलरर्स अर्थात १४० करोड़ भारतीयों की कुल संपदा से बहुत ज्यादा है l संपत्ति का यह
केंद्रीकरण अधिकाधिक बढ़ रहा है l यहाँ भी ज्यादातर संपत्ति पुरषों के हाथ में और श्वेतवर्णीय लोगों के
हाथ में है l अमेरिका में श्वेत परिवार की तुलना में कृष्णवर्णीय परिवार के पास केवल १५.८% संपत्ति है l
अमेरिका में ८९% शेअर्स श्वेतवर्णीय लोगों के पास है तो कृष्ण वर्णीय लोगों के पास केवल १.१% l बडी
कंपनियाँ ज्यादातर मालामाल होते समय वहाँ के कर्मचारीयों की आर्थिक स्थिति अपितु ढह रही है l विश्व
की सबसे बड़ी और ताकतवर जैसे १६०० कॉर्पोरेशन्स में से केवल 0.४% कॉर्पोरेशन अपने कर्मचारियों को
किमान वेतन देने की अनिवार्यता का पालन करती हैं l कोविड महामारी के बाद २०२० से परिवेश की
आपत्तियाँ बढ़ रही है और साथ साथ रोजमर्रा जिंदगी के खर्च भी l विश्व की अनेक देशों की सरकार को
अपनी अर्थव्यवस्था काबू में रखना कठिण होता जा रहा है l इन्हें सुधरने के लिए ये देश बडी मात्रा में कर्ज
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लेकर ॠणग्रस्त होकर लगान के बोझ के नीचे दब रहे हैं l जब ऐसा होता है तब वह देश सबसे पहले
सार्वजनिक खर्च कम कर देता है l इससे सबसे बडी हानि महिला एवं मागासवर्गीय लोगों को पहुँचती है l
लेकिन मजे की बात ऐसी है की जब पूरा विश्व संकट से गुजर जाता है तब धनवान लोगों की संपत्ति
शीघ्रगति से बढ़ जाती है l २०२७ तक अब्जाधिशों की संख्या ४४% से बढ़ जाएगी लेकिन आगे २३० वर्षों
तक विश्व की दरिद्रता नष्ट नहीं हो सकेगी l अति रईस लोग शासन की नीति एवं कानून को अपने आर्थिक
ताकत के बलबुते पर अपनी ओर खिंच लेते हैं और गरीबों को कुचलकर ज्यादा से ज्यादा धनवान हो रहे हैं l
विश्व की इस आर्थिक विषमता की पार्श्वभूमी पर भारत की स्थिति बहुत ही डरावनी है l कोविड महामारी
के पश्चात २०१९ से २०२० तक देश के निम्न स्तर के ५०% लोगों का उत्पन्न देश की उत्पन्न की तुलना में
१३% नीचे आ गया और देश की कुल संपदा से केवल ३% संपत्ति उनके हाथों में रह गई l इसके विरुध्द
उच्चस्तर के ३०% लोगों के पास देश की कुल में से ९०% से ज्यादा संपत्ति आ गई l लेकिन इन रईसों में भी
बहुत बड़ी विषमता है l इस ९०% संपत्ति में से ८०% संपत्ती इसमे से केवल १०% लोगों के हाथों में तो
८०% में से ७२% संपत्ती इन १०% में से अतिधनवान १% लोगों के पास है, तो अति-अति धनवान ऐसे
१% लोगों के पास ४०.६% संपत्ति है l अपने देश में २०२० में १०२ अब्जाधिश थे, २०२२ में यह संख्या
१६६ तक पहुँच गई l देश के १०० अब्जाधिशों के पास ५४.१२ लाख करोड़ रूपए संपत्ति है l इसमें १०
लोगों के पास २७.५२ लाख करोड़ रुपयों की संपत्ति है l इन १० लोगों में अदानी और अंबानी की
क्रमसंख्या सबसे ऊपरहै l इन सभी धनवानों ने देश के सत्ताधीशों को अपने वश में करके सभी कानून
कुचलकर यह अनैतिक संपदा इकठ्ठा की है l २०१९ में केंद्र सरकार ने कॉर्पोरेट कर ३०% से २२% पर
लाकर रखा l नई कंपनियों के लिए ज्यादा सहूलियत देकर यह महसूल १५% किया गया l २०२१-२२ इस
वर्ष में कॉर्पोरेट क्षेत्र का नफा ७०% बढ़ गया l इसके विपरीत ८४% परिवारों का उत्पन्न ८४% कम हो
गया l क्योंकि दूसरी ओर इन अब्जाधिशों ने निगले हुए अरबों रूपए जनता की ओर से वसूल करने के लिए
डीजल और पेट्रोल के दाम हमेशा बढाए गए l इससे महँगाई बढ़ती रही, जीवनावश्यक वस्तू, स्वास्थ्य ,
शिक्षा सब महँगा होता रहा l महँगाई का भाव आज भी ७% से अधिक है l ग्रामीण इलाके में यह भाव शहर
से अधिक है l लगान का दर भी बढाया गया है l इन सबकी आँच आम जनता सहती रही l आज भी करीबन
२३ करोड़ जनता दरिद्रता की शासकीय व्याख्या में राशन देने का दावा सरकार करती है l अर्थात इतनी
बडी जनता दरिद्रता में है ऐसा सरकार स्वीकृत करती है l आयुष्यमान भारत कार्ड असल में कहा उपयोगी
आता है यह किसी को मालूम नहीं l सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था तो पूरी तरह से ध्वस्त की जा रही है l दूसरी
ओर बैंकों ने उद्योगपतियों की करिबन ११ लाख करोड़ रुपयों के कर्ज माफ़ कर दिए l २०२२ -२३ इस वर्ष
में देश के कुल उत्पन्न में से ८८% उत्पन्न अर्थात १९.३४ लाख करोड़ रूपए महसूल से प्राप्त हुए l लेकिन
‘एक देश एक कर’ ऐसी घोषणा देकर जो ‘जीएसटी’ नामक महसूल लाद दिया उसके बाद प्रत्यक्ष महसूल में
से आनेवाला उत्पन्न ५% से, और कॉर्पोरेट महसूल से मिलनेवाला उत्पन्न ८% से कम हुआ l अप्रत्यक्ष
महसूल के कारण गरीब, बेरोजगार और निवृत्त लोगों का जिंदा रहना कठिण हो गया l १० में से ६
भारतियों को प्रतिदिन २६२.४ रूपए पर जिंदा रहना पड रहा है l यह आँकडा लज्जास्पद है l आर्थिक तौर
पर निम्न स्तर के ५०% लोग दैनंदिन वस्तुओं पर अपनी कुल आय से ६.७%, मध्यमवर्ग के ४०% लोग
३.३% और उच्चस्तर के १०% लोग सिर्फ 0.४% खर्च करते हैं l इसका अर्थ ऐसा है की गरीब जनता को
आर्थिक दृष्टिकोन से सधन लोगों की तुलना में अपनी आय में से बहुत बड़ा हिस्सा अर्थात ६ गुना हिस्सा
अप्रत्यक्ष महसूलों के लिए खर्च करना पड़ता है l लेकिन इन मह्सुलों का ६४.३% हिस्सा निम्नस्तर के ५०%
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लोगों से आता है l अर्थात हमारे लगान पर देश चलता है ऐसा धनवानों का कहना कितना झूठ है यह
दिखाई देता है l
बढ़ती हुई आर्थिक विषमता को यह अन्यायी महसूल प्रणाली जिम्मेदार है l इसलिए अति धनवान लोगों से
ज्यादा महसूल वसूल करना देश की सर्वांगीण प्रगतिहेतु आवश्यक है l देश के अब्जाधिशों की संपत्ति पर
अगर केवल ३% महसूल लागू किया तो राष्ट्र की ओर आनेवाला उत्पन्न देश की सार्वजनिक आरोग्य व्यवस्था
ठीक तरह से जारी रख सकेगा l फ़िलहाल सरकार देश की सार्वजनिक आरोग्य व्यवस्था पर बडी मुश्किल से
२.१% खर्च करती है l इस खर्च की जागतिकका औसतन है ६% l भारत में १० हजार जनसंख्या के लिए
अस्पताल में केवल ५ चारपाई उपलब्ध है l देश की ७५% जनता ग्रामीण इलाके में रहती है l लेकिन इन
ग्रामीण जनता के लिए देश में जितने भी अस्पताल है उनमें से केवल ३१.५% अस्पताल हैं l २१.८%
प्राथमिक आरोग्य केद्रों में डॉक्टर नहीं है l ६७.९६% आरोग्य केंद्रों में निष्णात डॉक्टर्स नहीं है l देश की
सार्वजनिक आरोग्य व्यवस्था को न्यूनतम सीमा पर लाने के लिए हमारे केंद्र सरकार को समूचे राष्ट्रिय
उत्पादन में से ३.८% अर्थात ५.५ लाख करोड़ रूपए खर्च करना आवश्यक है l १०० अब्जाधिशों की संपत्ति
पर केवल १०% महसूल अगर लागू किया तो यह सहज संभव है l भारतीय जनता उनके वैद्यकिय खर्च में
६३% खर्च निजी जेब से करती है l सार्वजनिक आरोग्य व्यवस्था की दारुण दशा के कारण जनता को यह
बोझ सहना पडता है l वैद्यकिय खर्च के कारण प्रतिवर्षी ६.३ करोड़ लोग अर्थात ७% लोग गरीबी में ढकेल
दिए जाते हैं l सार्वजनिक आरोग्य व्यवस्था के लिए जीडीपी के ३% रकम उपलब्ध हो गई तो जनता की
जेब से आरोग्य पर होनेवाला खर्च ३०% पर आ जाएगा l इसके लिए १ लाख ६ हजार ६६० करोड़ रुपयों
की आवश्यकता है l उच्च स्तर के १०० अति रईस लोगों पर २% लगान लागू किया तो भी बात बन जाएगी
l आज देश में ४२% आदिवासी बच्चे कुपोषित हैं l केवल १० अब्जाधिशों पर ५% लगान लागू किया तो भी
देश के आदिवासी लोगों के आरोग्य के लिए ५ वर्षों का प्रावधान किया जाएगा l सभी अब्जाधिशों पर केवल
२% महसूल लागू किया तो देश के सभी कुपोषित बच्चों के तीन वर्षों तक के पोषण के लिए ४२,०३३ करोड़
रूपए उपलब्ध होंगे l
शिक्षा पर किया जानेवाला खर्च हर साल नीचे लाया जा रहा है l ३.३०% से आज २.३५% पर लाया गया
है l पहली से आठवीं तक की शिक्षा का खर्च पूरा नहीं पड़ता इस लिए पाठशाला छोड़ देने का प्रमाण दुगना
हो गया, तो आठवीं के बाद १५.६% है l मागासवर्गीयों के लिए यह प्रमाण करीबन २३% है l १० करोड़
छात्र पाठशाला से बाहर होने की स्थिति में है l सार्वजनिक शिक्षण व्यवस्था के लिए १० अब्जाधिशों पर
केवल १% आवश्यक है l
अति धनवानों की संपत्ति पर १% इतना न्यूनतम महसूल लागू किया तो भी देश की अनेक समस्याएँ दूर
होगी l लक्षाधीश, करोडपति और अब्जाधिश इस तरह महसूल का उभरता रखना उचित होगा l लेकिन देश
के अमीर लोग ऐसा होने नहीं देते l सत्ताधीशों के साथ मिलीभगत करके वे न केवल ज्यादा से ज्यादा
सहूलियत हासिल करते हैं अपितु अपने कर्ज भी माफ़ करवा लेते हैं l ऐसा पहले होता नहीं था ऐसी बात
नहीं है लेकिन मोदी सरकार ने इसकी सीमा पार कर दी l इतना नहीं अपितु देश की जनता के पसीनों के
पैसों पर निर्माण हुई सार्वजनिक संपत्ति और देश की नैसर्गिक साधनसंपत्ति मुठ्ठीभर उद्योगपतियों को निगल
देने की निरंतर कोशिश जारी है l इतना सबकुछ करने पर भी मोदी सरकार ने देश के माथे पर २०५ लाख
करोड़ रुपयों का कर्ज का पहाड़ निर्माण कर रखा है l दूसरी ओर देश में २३ करोड़ जनता दरिद्रता में है l
भूख निर्देशांक में विश्व के १२५ देशों में भारत का क्रमांक १११ है l प्रतिव्यक्ति उत्पन्न की तुलना में १९७
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देशों में भारत का क्रमांक १४२ है l ये आँकडे ‘ट्रिलियन डॉलरर्स अर्थव्यवस्था’ का दावा कितना झूठ है यह
दर्शानेवाली है l यह सब सत्य छिपाकर २५ करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर लाया है ऐसा दावा किया जा
रहा है l यह फरेबी दावा करने के लिए सरकार ने चालाकी करके ‘एम.पी.आय.’ अर्थात ‘मल्टीडायमेंशनल
पॉव्हर्टी इंडेक्स’ की रचना ही बदल डाली l आरोग्य शिक्षा और जीवन का स्तर इसके साथ माता आरोग्य
और बैंक खाता – इन दो कसौटी का भार डाल दिया गया l
प्रत्यक्षरूप में दरिद्रता बडी मात्रा में बढ़ रही है l विषमता उच्च कोटि पर पहुँच रही है और देश धर्म की नशा
में चूर है l कहते है की पाचसौ वर्षों तक राम बनवास में थे l उस राम को मोदी ने घर दिया l वास्तव में
ईश्वर को घर देनेवाला महान राजा के रूप में मोदी का नाम केवल इतिहास में नहीं अपितु पोथी-पुराणों में
जाना चाहीए l हमें केवल इतनाही प्रश्न सताता है की राम का गत पाचसौ वर्ष बनवास में था तो सैंकड़ों वर्ष
देश के गाँवगाँव के राम मंदिरों में कौन थे ? वहाँ अगर राम नहीं था तो भोली-भाली जनता पेट की भूख
भुलाकर किसके चरणों में श्रध्दा से माथा रखती थी ? इन मंदिरों के ब्राम्हणों को गत पाचसौ वर्ष बनवास में
है क्या यह मालूम नहीं था, या अगर मालूम होता तो क्या केवल लोभ हेतु जनता को लूट रहे थे ? बाबर ने
रामजन्मभूमि के स्थान पर मस्जिद का निर्माण करने से अगर राम बनवास में गया होगा तो गत पाचसौ
वर्ष देश की हजारों राममंदिर खड़ी होकर भी खाली रही थी ऐसा मानना पड़ेगा l राम अगर ईश्वर हैं तो
वह सर्वव्यापी होना चाहिए l अतः ऐसे प्रभू राम को बाबर जैसा मर्त्य राजा उसका मंदिर ध्वस्त करके उसे
बनवास में भेज देता है ऐसा मानना राम नामक भव्य कल्पना का अपमान करने जैसा है l हिंदुत्ववादी अपने
स्वार्थ के लिए प्रत्यक्ष प्रभू श्रीराम का अपमान करते आ रहे हैं l लेकिन जनता के सम्मुख ऐसे प्रश्न खड़े नहीं
होंगे ऐसी व्यवस्था की गई है l जनता की सामूहिक विवेकबुध्दी की हत्या करने में सत्ताधीशों को यश मिला
है ऐसा सद्यस्थिती में नजर आ रहा है l विवेक की लाश के नीचे जनता के सभी मूलभूत प्रश्न दफना दिए गए
है l एक और जनतंत्र का गला काटकर दूसरी ओर जनता को दरिद्रता की भूल पड़े ऐसी व्यवस्था करने में
सत्ताधीशों को यश प्राप्त हुआ है ऐसा महसूस हो रहा है l जनता के विवेक के कब्र पर खड़े रहकर मोदी अपने
ओर एक राजकीय विजय की पताका लहराना चाहता हैं l लेकिन भारत की जनता इतनी अविवेकी नहीं है l
भारतीय जनता ने समय आने पर अपनी रोटी को ठुकराकर स्वातंत्र्य का स्वीकार किया है l तो फिर
भारतीय जनता सैंकड़ों वर्ष विदेशियों की गुलामी में कैसी रही ? ऐसा प्रश्न किसी के मन में उठ सकता है l
भारतीय जनता मनुवादियों के गुलामगिरी में होने के कारण उसे विदेशियों के विरुध्द लडना संभव नहीं था
l मनुवादियों ने अपने स्वार्थ के आगे राष्ट्रहित को अगर प्रधानता दी होती तो अपना देश गुलामी में चला
नहीं जाता l लेकिन आज देश की सत्ता मोदी के हाथों में नही अपितु मनुवादियों के हाथों में है और देश फिर
एक बार धार्मिक गुलामी की दहलीज पर खड़ा है l भारतीय जनता स्वतंत्रता के विकल्प को स्वीकृत करेगी
ऐसा हमें विश्वास है l
पुरोगामी जनगर्जना संपादकीय