साधु संतों का सत्ता लोभ उचित नहीं , नारी चेतना मंच की कॉल कॉन्फ्रेंसिंग संपन्न
रीवा 6 जून . वर्तमान दौर में राजनीति और धर्म के घालमेल से उत्पन्न चुनौतियां विषय पर एक कॉल कांफ्रेंसिंग नारी चेतना मंच के तत्वावधान में संपन्न हुई .परिचर्चा में वक्ताओं ने कहा कि राजनीति और धर्म का उद्देश्य कमोबेश एक जैसा है लेकिन उनका कार्यक्षेत्र अलग-अलग है . धर्म का काम है अच्छाई को स्थापित करना और राजनीति का काम है बुराई के खिलाफ लड़ना है . समाजवादी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया ने राजनीति को अल्पकालीन धर्म और धर्म को दीर्घकालीन राजनीति कहा था . यह भारी विडंबना है कि आज धार्मिक क्षेत्र में पाखंड और आडंबर को बढ़ावा मिल रहा है वहीं राजनीति में नैतिक मूल्यों के गहराते संकट के चलते भ्रष्टाचार और कलह को बढ़ावा मिला है . राजनीति और धर्म के घालमेल से देश और समाज का वातावरण प्रदूषित और जहरीला हुआ है
कॉल कांफ्रेंसिंग में प्राध्यापक सुनीता त्यागी बिजनौर उत्तरप्रदेश , सामाजिक कार्यकर्ता विभा जैन जयपुर राजस्थान , मध्यप्रदेश भोपाल से माधुरी लाल , इंदौर से लीला पंवार , ग्राम इटमा कोठार सतना से सुधा सिंह बघेल , रीवा से नजमुन्निशा एवं अजय खरे ने अपने विचार रखे .
सुनीता त्यागी ने कहा की वर्तमान राजनीति में धार्मिक क्षेत्र की दखलअंदाजी अत्यंत खतरनाक साबित हो रही है . धर्म की आड़ में पूंजीवादी ताकतें देश और समाज का वातावरण खराब कर रही हैं . इधर राजनीति के क्षेत्र में काफी गंदगी देखने को मिल रही है . चुनाव काफी खर्चीली हो गए हैं . सामान्य आदमी की चुनाव में भागीदारी संभव नहीं है . विधानसभा लोकसभा के चुनाव करोड़ों रुपए में लड़े जाते हैं . चुनाव जीतने के लिए धर्म का सहारा लिया जाता है जो सरासर गलत है . धार्मिक मान्यताओं को ताक पर रखकर जहरीला वातावरण निर्मित किया जा रहा है इसे हर हाल में रोका जाना चाहिए .
विभा जैन ने कहा कि यह बराबर देखने में आ रहा है कि राजनीति में सन्यासी वेश धारण करने वाले लोग सत्ता में भागीदारी कर रहे हैं जबकि सन्यास में राजनीति की मनाही है . धार्मिक क्षेत्र में संन्यास के बाद मोक्ष ही है लेकिन यहां सन्यासी भोगवादी व्यवस्था को बढ़ावा दे रहे हैं और राजनीति को धार्मिक अखाड़ा बना रहे हैं . जब से धार्मिक क्षेत्र के लोग राजनीति के मैदान में उतरने लगे हैं तभी से राजनीति का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ है यह बात देश के लिए किसी रूप में अच्छी नहीं है .राजनीति का उद्देश्य लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को प्रभावी बनाना है लेकिन यहां देखने को मिलता है कि निहित स्वार्थी तत्व अपने कल्याण में लगे हुए हैं .
माधुरी लाल ने कहा कि धर्म और राजनीति समाज की बड़ी जरूरत है लेकिन इनका कार्य क्षेत्र अलग-अलग है . जब लोग अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए धर्म और राजनीति को गलत तरीके से इस्तेमाल करने लगते हैं तब दोनों क्षेत्रों में टकराव की स्थिति बनने लगती है . किसी राजनीतिक दल का यह काम नहीं कि वह धार्मिक संगठन की तरह काम करें . जब राजनीति में धार्मिक संगठन घुसपैठ करने लगते हैं तब राजनीति अपने उद्देश्य से भटक जाती है .धर्म का काम लोगों में अच्छी बातों का प्रचार प्रसार करना एवं जीवन मूल्यों के प्रति लोगों की निष्ठा बनाना है . मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे गिरजाघर सत्संग स्थल हैं . यह भारी विडंबना है कि स्वार्थी लोग इन्हें आपस में लड़ाने और नफरत पैदा करने के लिए इस्तेमाल करते हैं .
लीला पंवार ने कहा कि यह भारी विडंबना है कि देश का विभाजन सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के चलते हुआ . राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी सर्व धर्म समभाव की राजनीति करते थे . उनके लिए सभी बराबर थे लेकिन कुछ सांप्रदायिक लोगों को यह बात अच्छी नहीं लगती थी और उन्होंने उनकी हत्या करवा दी . आज उसी हत्यारी विचारधारा के लोग काफी मजबूत हो गए हैं . देश का संकट गहराता जा रहा है .सांप्रदायिकता और जातिवाद ने देश को हमेशा कमजोर किया है . देश की राजनीति को अच्छा बनाने की जरूरत है . वहीं धार्मिक जगत में भी आडंबर रूढ़ियों का खात्मा बहुत जरूरी है
सुधा सिंह बघेल ने कहा कि इस समय धर्म नहीं , अधर्म का बोलबाला है . महज धार्मिक चोला पहन लेने से कोई अच्छा नहीं हो जाता है . वर्तमान समय में राजनीति और धर्म दोनों क्षेत्र में काफी गिरावट देखने को मिली है . राजनीति में धर्म का सहारा लेकर चुनाव लड़ना अत्यंत खतरनाक बात है . इसके चलते सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिलता है . धार्मिक लोगों का काम है कि वह उपासना स्थलों के अलावा सार्वजनिक तालाब , धर्मशालाएं , सड़क किनारे वृक्षारोपण गरीबों को भोजन आदि लोक कल्याण के काम कराएं . जब से राजनीति में धर्म की आड़ में गलत लोग घुस गए हैं तब से वातावरण बहुत विषाक्त हो गया है .
नजमुन्निशा ने कहा कि किसी भी धर्म का अच्छा व्यक्ति नफरत को बढ़ावा नहीं देता है . जहां इंसानियत नहीं है , वहां धर्म भी नहीं है . राजनीति और धर्म में जब परमार्थ की भावना का अभाव हो जाता है तब वहां बुराइयों को बढ़ावा मिलने लगता है . इसे रोकने का काम सभी को मिलकर करना चाहिए . देश सभी का है , धर्म भले अलग अलग हो . भारत की एकता और अखंडता के लिए सभी धर्म के लोगों को आपसी भाईचारे को बढ़ावा देना होगा . अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए धार्मिक आधार पर भेदभाव उचित नहीं है . कोई भी धर्म गलत राह नहीं बताता है लेकिन गलत राह पर चलने वाले लोग धर्म की गलत व्याख्या करके आपस में लड़ाने का काम करते हैं जो किसी भी दृष्टि से सही नहीं कहा जा सकता है .
समाजवादी जन परिषद के नेता अजय खरे ने कहा कि धर्म और राजनीति समाज के लिए है . राजनीति जो अच्छे मूल्य स्थापित करती है कालांतर में वह धार्मिक मूल्य बन जाते हैं . मनुष्य को जन्म से ही अलग-अलग धर्मों में बांट दिया गया है दुनिया में अभी इसी तरह का धार्मिक बटवारा चल रहा है . राजनीतिक दलों की तरह धार्मिक क्षेत्र में भी अपने को बढ़-चढ़कर बताने की भावना देखने को मिलती है . सभी धर्मों में अच्छाई की बात होती है लेकिन उसका पालन कितना होता है यह सबसे महत्वपूर्ण बात है . धर्म नितांत निजी आस्था की बात है इसे किसी पर थोपा नहीं जाना चाहिए . वर्तमान दौर में राजनीतिक क्षेत्र में जिस तरीके से धर्म की आड़ में सांप्रदायिक खेल हुआ है उसके चलते राजनीति कलही और जहरीली हो गई है . देश को अच्छी राजनीति की जरूरत है . इसके लिए यहां धार्मिक वातावरण भी अच्छा होना चाहिए . धर्म को लेकर राष्ट्र की अवधारणा किसी रूप में सही नहीं है . राष्ट्र एक राजनीतिक इकाई है और धर्म मनुष्य की आस्था से जुड़ा हुआ सवाल है . एक देश में जिस तरह कई राजनीतिक दल होते हैं उसी तरह कई धर्म मानने वाले लोग भी होते हैं लेकिन उन सभी की राष्ट्रीयता एक होती है . धर्म और राजनीति के घालमेल ने देश की अखंडता और एकता को हमेशा कमजोर किया है . धर्म और राजनीति क्षेत्र में काम करने वालों को अपनी सीमाएं समझनी होंगी .