मप्र में जब भी विधानसभा चुनाव होते हैं उस समय त्योहारों का मौसम होता है। इस बार भी दिवाली के पांच दिन बाद मतदान होना है। उससे पहले विजयादशमी और छठ पर्व है। ऐसे में राजनीतिक पार्टियों और नेताओं को डर सता रहा है कि तीज-त्योहार के कारण कार्यकर्ता तो व्यस्त रहेंगे ही मतदाता भी पूजा-पाठ में लीन रहेंगे। ऐसे में प्रत्याशी चुनाव प्रचार कैसे कर पाएंगे। ऐसे में चुनाव के नजदीक आने के साथ ही टिकट के दावेदारों और प्रत्याशियों की धडक़नें बढऩे लगी हैं। इसकी वजह चुनाव प्रचार के लिए प्रत्याशियों को वक्त कम मिलना है।
गौरतलब है कि नामांकन की आखिरी तारीख (30 अक्टूबर) के बाद नेता और प्रत्याशी धुआंधार प्रचार करेंगे। चुनाव प्रचार के लिए समय कम मिलने की दो मुख्य वजह हैं। पहली, चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद पिछली बार के मुकाबले इस बार 14 दिन पहले वोटिंग हो रही है। पिछली बार चुनाव आयोग ने 6 अक्टूबर को चुनाव की तारीखों की घोषणा की थी और 28 नवंबर को वोटिंग हुई थी। इस तरह पिछली बार चुनाव की घोषणा के 53 दिन बाद वोटिंग हुई थी। इस बार 9 अक्टूबर को चुनाव की तारीखों की घोषणा हुई और वोटिंग 17 नवंबर को होगी । इस तरह चुनाव की घोषणा के 39 दिन बाद वोटिंग होगी। दूसरा, चुनाव से पहले बड़े त्योहार पड़ने के कारण प्रत्याशियों को प्रचार के लिए कार्यकर्ता मिलना मुश्किल हो जाएंगे। दुर्गा अष्टमी से दशहरा तक और मतदान की तारीख से ठीक पहले धनतेरस से भाईदूज तक चुनाव प्रचार एक तरह से ठप रहेगा। इससे पहले नामांकन भरने आदि में समय जाया होगा। यही वजह है कि, प्रत्याशियों ने अभी से प्रचार में ताकत झोंक दी है, लेकिन जिन सीटों पर अब तक टिकट फाइनल नहीं हुआ है, उन सीटों पर टिकट के दावेदार अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं। वे अभी खुलकर प्रचार भी नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि कई ऐसे नेता हैं, जिन्हें टिकट दिए जाने का आश्वासन दिए जाने के बाद वे साल भर से फील्ड में सक्रिय हैं, फिर भी उन्हें टिकट नहीं दिया गया।
चुनावी दौर में त्योहारों की धूम
मप्र के विधानसभा चुनाव और त्योहारों का गहरा नाता रहा है। इस बार भी दिवाली के पांच दिन बाद मतदान होना है। विजयादशमी, दिवाली और छठ के जश्न के बीच नेता प्रचार करते नजर आएंगे। चुनाव आयोग ने राजस्थान में विधानसभा चुनाव के मतदान की तारीख को बदला है। 23 नवंबर को देवउठनी एकादशी के दिन राज्य में मतदान होना था। देवउठनी एकादशी को विवाह अधिक होते हैं। इस बात को मद्देनजर रखकर अब मतदान 25 नवंबर को होगा। भारत एक त्योहार प्रधान देश है, पूरे वर्ष भर किसी न किसी तिथि का एक विशेष महत्व है। आजादी के बाद ज्यादातर चुनाव फरवरी माह में हुए, तो उस माह में बसंत पंचमी या शिवरात्रि किसी न किसी तारीख को रहती ही है, यदि मार्च माह में हों तो होली, रंगपंचमी या लोहड़ी पर्व रहते हैं, जाहिर भारत की सांस्कृतिक विरासत इन पर्वों से जुड़ी है। मध्य प्रदेश के चुनावों का भी त्योहारों से गहरा नाता रहा है। देश में चुनावों में धर्मगुरुओं के मठों पर, मंदिरों में दर्शन को जाना और हवन पूजन करवाना हर उम्मीदवार चाहता है। बगुलामुखी नलखेड़ा हो या दतिया की पीतांबरा पीठ , वहां नेताओं का जमावड़ा आरंभ हो गया है। नवरात्रि में गरबा हो या माता पूजन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उम्मीदवार जुड़ा रहेगा और प्रचार करता रहेगा। यह एक फायदा होता है पर्वों का। विजयादशमी भी चुनाव से पूर्व है, इस बीच घर-घर संपर्क करना एक तरह से विजयादशमी मिलन हो जाएगा। मध्य प्रदेश में रहने वाले उत्तर प्रदेश और बिहार के नागरिकों ने छठ पूजा का उल्लेख कर तारीखों में बदलाव की बात कही है। इसके बाद भी मध्य प्रदेश में यह कोई पहला मौका नहीं है, जब त्योहार के वक्त चुनाव हो रहे हैं।
अब तक के सभी चुनाव त्योहारों के बीच
1957 से 2018 तक संपन्न विधानसभा चुनावों में मतदान की तारीख देखें तो, कोई न कोई त्योहार मतदान की तिथि के आसपास रहा है। फिर भी मतदान पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा। मतदाताओं ने मतदान प्रक्रिया में उत्साहपूर्वक भाग लिया। आरंभ के कुछ वर्षों में मतदान प्रतिशत जरूर कम रहा। कारण यह रहा कि उस वक्त लोगों में मतदान प्रति जागरूकता का अभाव था। पर धीरे-धीरे यह प्रतिशत बढ़ता गया। वर्ष 1962 में पांच मार्च को रंगपंचमी थी और 8 मार्च को मतदान। उस वर्ष भी प्रदेश की जनता ने मतदान में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और अपने मत का उपयोग किया था। इस वर्ष मतदान के पांच दिन पूर्व दीपावली है, फिर भाई दूज और छठ पूजा जैसे बड़े पर्व हैं पर, अब जनता काफी समझदार हो गई है और वह जोर-शोर से मतदान में हिस्सा लेगी और नए रिकॉर्ड बनाएगी। रोचक जानकारी वर्ष 1972 में मतदान के दिन शीतला सप्तमी थी पर मतदान में पूजन बाद महिलाओं ने हिस्सा लिया। 1957 में मतदान के दिन माघ पूर्णिमा थी। 1957 में देश के दूसरे और प्रदेश के जन्म के बाद पहले चुनाव थे उसमें 33.17 प्रतिशत मतदाताओं ने मत का उपयोग किया। वर्ष 2008 में अब तक का सर्वाधिक मतदान 74.97 प्रतिशत हुआ था।
शिवराज की रहेगी सबसे अधिक डिमांड
प्रदेश में चुनाव के दौरान सबसे अधिक व्यस्त मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रहेंगे। इसकी वजह यह है कि, उनकी हर विधानसभा सीट पर डिमांड रहेगी। सीएम शिवराज सिंह चौहान की प्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों पर प्रचार के लिए कम से कम एक बार पहुंचने की योजना है। उन्हें प्रचार करने के लिए औसत 20 से 25 दिन मिलेंगे। इस तरह सीएम शिवराज को एक दिन में औसत 10 विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार के लिए पहुंचना होगा। उनके चुनाव प्रचार का कार्यक्रम तैयार किया जा रहा है। अभी नवरात्र में वे मंडला, अलीराजपुर, बुधनी में बहना सम्मेलनों में शामिल होंगे और मंदिरों में दर्शन करने जाएंगे। साथ ही वे 21 अक्टूबर से प्रत्याशियों के नामांकन दाखिल करवाएंगे।