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अर्थतंत्र : जानिए मुद्रा का आधार और यथार्थ 

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      पुष्पा गुप्ता 

पहले पदार्थ का प्रयोग होता था तो सामाजिक रूप से सामुहिक उत्पादन होता था । जब लुटेरे , क्रूर शासकों ने सोने को बलपूर्वक क्रूरता के साथ  उपयोगी पदार्थों की लूट के लिए सोना , पत्थर (हीरा , पन्ना) आदि को चमकदार और लुभावने स्वरूप के चलते धन के रूप में स्थापित किया । कुछ मूर्ख इस दिखावे के चक्कर में तथा राजा की क्रूरता से बचने के लिए राजा के पक्ष में हो गया । सामाजिक उत्पादकों को अपना उत्पादन इस आभासी किंतु अनुपयोगी धातु और पत्थर के बदले देने के लिए दिखावे या डर के कारण क्रूर सत्ता को देना पड़ा जो बाद में ये लूट बेचने की पद्धति में परिवर्तित कर दी गई।

      बेचने और खरीदने की पद्धति को विस्तार दिया गया। पढ़ाई या अन्य तरीकों से समाज पर थोपकर या लाभ दिखाकर भ्रमित करके सभी को ग्राहक बनाने का कार्य किया गया । एक तरफ शिक्षा के जरिए सामाजिक और सामुहिक उत्पादन से दूर किया और उधोगों के मजदूर बनाकर सत्ता उपयोगी उधोग बढ़ाये जाने लगे । जैसे जैसे व्यापार बढ़ा तो धातु के सिक्के उसके अनुपात में बढ़ाना संभव नहीं था तथा सिक्के जब उधोगपति और व्यापारियों के पास इकट्ठा होने लगे तो सत्ता का धातु मुद्रा भंडार कम पड़ने लगा । दूसरी तरफ ब्रिटिश साम्राज्य को अपनी राजधानी और आसन बचाने का डर सताने लगा।

       क्योंकि यदि किसी उधोगपति समूह ने किसी और योद्धा को नयी मुद्रा छापने के लिए मना लिया तो सिंहासन और साम्राज्य समाप्त हो जायेगा।

इसलिए एक ऐसी सामग्री बनाई गई जो रिसाईकल ना हो सके और नकल को रोका जा सके इसलिए कागज का शपथ पत्र नोट बनाया गया । सिक्कों को वापस कब्जे में लेने तथा सिक्के के स्थान पर कागज के नोट को धन के रूप में स्थापित के लिए बैंक खोले गए । उस वक्त भी इस रूपांतरण के विरुद्ध व्यापारियों ने हो हल्ला किया तथा रिकार्ड से बाहर के सिक्के जमीन में दबाये गये जो व्यापारियों और बड़े अधिकारियों की पुरानी हवेलियों की खुदाई में आज भी कहीं-कहीं निकलते हैं । सेना पुलिस से जबरन तलाशी करके सभी  खातों में अंकित सिक्के ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा वापस लिये गये। 

      इस प्रक्रिया के बाद व्यापार में सरकार की ताकत की सहायता होती ही है । इसी मजबूरी के चलते व्यापारियों और सरकारी कर्मचारियों ने कागज के नोट को धन स्वीकार कर लिया । उनकी देखा देखी पढ़ें लिखे उधोगों के मजदूरों ने भी स्वीकार कर लिया । फिर वही खेल चला कुछ लोग कागज के नोट के चलते सरकार के पूरे नियंत्रण से बाहर रह गये जिन्हें सत्ता भ्रष्टाचारी की संज्ञा देती है । इन्होंने अपना अलग साम्राज्य खड़ा करने का प्रयास किया।

      अब सत्ता पर शत प्रतिशत नियंत्रण के लिए कागज के नोट को बंद करके डिजिटल मुद्रा लाई जा रही है । कुछ मुद्रा पर निर्भर सत्तालोभी लोग सत्ता के आदेश पर हो हल्ला कर रहे हैं। किंतु बिना मुद्रा और सत्ता इनका गुजारा नहीं है इसलिए कैशलैस होते ही उसे स्वीकार कर लेंगे।

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