डॉ. विकास मानव
माया और स्त्री में अन्योन्याश्रित संबंध है. मूलतः दोनों एक हैं.
स्त्री में कई प्रकार के हार्मोन्स पर सिर्फ विचारों से नियंत्रित किया जा सकता है। रामायण में कई जगह लिखा है मां कौशल्या कई बार जब राम को याद करती थी तो राम की याद में उनकी छाती से दूध आने लग जाता था। मतलब जब कोई भी मां चाहे जो मर्जी आयु की हो जब उसमे अपनी संतान की बहुत याद आती है या उस पर मां को बहुत प्रेम उमड़ता है तो मां की छाती में दूध छलक जाता है। शायद कई मांओं ने इसका अनुभव भी किया हो।
वैज्ञानिक या मेडिकल आधार पर देखा जाए तो किसी स्त्री की छाती में दूध तभी बनता है और निकलता है जब उसकी दिमाग में स्थित पिप्यूटरी ग्लैंड से प्रोलेक्टिन हार्मोन्स रिलीज होते है तब अवलोवेली में दूध बनता है और जब पिट्यूटरी ग्रंथि से ऑक्सीटोसिन हार्मोन्स निकलते हैं तभी यह दूध छाती से बाहर निकलता है। अगर ये हार्मोन्स न हों तब ना दूध बनेगा ना दूध रिलीज होगा।
इसी प्रकार से जब कोई स्त्री जली भुनी बैठी हो तो भी कई ऐसे हार्मोन्स रिलीज होते हैं जो उसके शरीर में तरह तरह की समस्याएं उत्पन करते हैं।
इसीलिए जो स्त्री सबके प्रति अपने परिवार में पॉजिटिव विचार रखती हो उसे कम ही स्वास्थ्य संबधी समस्याएं आती हैं।
जो स्त्री अपने परिवार में जलन, नेगेटिव विचार रखती है उसे ज्यादा स्वास्थ्य समस्याएं आने की संभावना होती है। लेकिन आजकल ज्यादातर स्त्रियां यही चाहती हैं की सारे उसकी केयर करे सभी उसकी भावनाओं का आदर करे। अब कोई किसी स्त्री को यह सब दे या ना दे लेकिन हर स्त्री अपने आप पॉजिटिव विचार रख कर अपने सारे हार्मोनल संतुलन को बना रख सकती है जिससे वह अपने को स्वस्थ और सुंदर बनाए रख सकती है।
अगर कोई स्त्री किसी बच्चे को बहुत प्रेम करे तो उसमे ऑक्सीटोसिन हार्मोन्स रिलीज होगा और आपको पता है की जैसे ही किसी के शरीर में ऑक्सीटोसिन लेवल बढ़ता है तो वह उर्जावान सुंदर कामुक मस्त मूड हो जाता है।
लेकिन अगर कोई स्त्री किसी और के बच्चे को आगे बढ़ता देख कर जलन करे तो सारी बातें इससे उल्टी होती हैं।
इसी प्रकार अगर कोई स्त्री किसी पुरष के प्रति प्रेम का अनुभव करे तो उसमे सेक्स हार्मोन्स रिलीज होते हैं जिससे उसमे एस्ट्रोजन ज्यादा रिलीज होता है और जिस स्त्री में एस्ट्रोजन हार्मोन्स की मात्रा अधिक होती है उसमे स्त्री गुण अधिक होते हैं। जैसे लंबे स्वस्थ बाल, स्किन ग्लो आदि। जबकि एस्ट्रोजन कम होने पर किसी स्त्री में अनचाहे बाल ज्यादा होते हैं। आपने देखा ही होगा कि बहुत ज्यादा आयु में स्त्री की दाढ़ी मूंछ आना शुरू हो जाती है। या पुरषों से घृणा भाव रखने वाली या ब्रम्हचर्य रखने वाली स्त्रीयों में यह दाढ़ी मूंछ की समस्या उत्पन हो जाती है।
क्योंकि उन में स्त्री गुण प्रदान करने वाला एस्ट्रोजन हार्मोन बहुत कम होता है। इसीलिए स्त्रीयों को चाहिए कि वह अपने पति या बॉयफ्रेंड के लिए अपने मन में प्रेम भाव जगाए रखे इससे उसको थ्रेडिंग कराने का खर्चा भी कम हो सकता है। आपका मन और विचार ही आपका मेकअप किट बन सकती है।
*माया/स्त्री और हार्मोन्स का नियंत्रण विचारों से :*
हमारे शरीर के सारे हार्मोन्स का रिलीज होना और नियंत्रित होना हमारे विचारों से पिट्यूटरी ग्लैंड से रिलीज हुए हार्मोन्स पर ही निर्भर करता है. यही बात आधुनिक मेडिकल साइंस भी कहती है और वेद, पुराण, ज्योतिष भी।
इन बातों का ज्यादा प्रभाव स्त्रियों पर होता है। स्त्री चाहे तो अपनी ममता मयी विचारों से जब चाहे किसी भी आयु में चाहे अपनी छाती से दूध उत्पन कर सकती है जैसा मां कौशल्या का रामायण में कई बार जिक्र है।
लेकिन आज के कॉम्पिटिशन युग में इतना ज्यादा स्ट्रेस, स्ट्रेन और पद ऊंचा नीचा होने का अंहकार इतना ज्यादा है कि हम अपने प्रेम प्यार त्याग तपस्या आदर की बातों को भूल चुके हैं। अगर जैसे किसी प्राइमरी अध्यापक के पास पढ़ा कोई पुराना छात्र आज आर्मी में बड़ा अफसर है या किसी और बड़े पद पर है तो आज वह उस सहज बालपन में उस अध्यापक के साथ पेश नहीं आ सकता जैसे वह अपने स्कूल या कॉलेज टाइम में था। क्योंकि पद प्रतिष्ठा मान सम्मान का अंहकार सबको खा जाता है।
चलो अब कुछ इमोशनल बाते करते हैं :
जिस किसी के साथ वह प्रेम प्यार करता था जिसके लिए जीता मरता था आज वह कई कारणों से अपने पुराने उस व्यक्ति के साथ बात भी नहीं करना चाहता।जबकि अगर वह ऐसा कर ले तो सिर्फ एक क्षण में उस ताजगी उसी ऊर्जा का अनुभव कर सकता है। क्योंकि जैसे ही उसके विचारों में वो हसीन पल रिप्ले होंगे उसकी पिट्यूटरी ग्लैंड उन्हीं यादों से जुड़े हार्मोन्स रिलीज कर देंगे और आप एक ही पल में मस्त खुश हो जाएंगे।
बजाय इसके कोई भी स्त्री या व्यक्ति इसी बात का ज्यादा रोना रोते रहते हैं कि कोई उनको नहीं समझता ना उनकी बात मानता ना उनसे प्रेम करता। तो याद कीजिए उन बीते पलों को हर व्यक्ति के जीवन में कोई ना कोई ऐसा व्यक्ति जरूर रहा होगा जो उसके लिए जीता मरता था। लेकिन अपनी सांसारिक इच्छाओं और आगे बढ़ने की इच्छा से आपने उसको पीछे छोड़ दिया और खुद आगे बढ़ गए।
और आज आपने अपने जीवन के वो सब सांसारिक और सामाजिक लक्ष्य प्राप्त कर लिए जिसके लिए आपने कभी अपने चाहने वाले को पीछे छोड़ दिया था।
अगर कभी भी आप उस पीछे छोड़े अपने साथी से बात कर के एक बार देख तो लें शायद आपकी वो पुरानी यादें आपमें वहीं हार्मोन रिलीज कर दें जिससे आपका सारा स्ट्रेस स्ट्रेन समाप्त हो जाए। लेकिन बिना कुछ पाने कि इच्छा के साथ।
उसको याद करके उससे बात करके तो देख लो सिर्फ वहीं तो था या थी जो आपकी सांसों को महका देता था आप में एक आग पैदा कर देता था। जिसको कभी आप कहते थे “छूने से जिसके सीने में मेरे लौ जाग सकती थी तू वही है” वो आज भी वहीं होगा जहां तुम उसको छोड़ आए थे एक बार बात करके देख लो क्या पता फिर से आपके जीवन में वही लौ जग जाए।
जिसके लिए आपने एक गाना गाया होगा कभी तेरे लिए हम हैं जिये हर आंसू पिए।
पर आप शायद ऐसा नहीं करोगे क्योंकि अब आप शांति के लिए कुछ योग साधना या किसी धर्म या गुरु के आगे जा चुके हैं। और उन बातों में जितना आगे जा रहें हैं दो पल की शांति के बाद फिर वही डिप्रेशन।
जबकि पीछे आपके सारी मधुर यादें जो आपमें वहीं आग वहीं ऊर्जा पैदा करने वाली चीजे मौजूद हैं पर पीछे मुड़ के ना देख क्योंकि आप का धर्म, ज्ञान, गुरु, पद, प्रतिष्ठा , प्रवचन आज आप पर हावी हो चुके हैं और वे सब आपसे कहते है पिछे मूड कर ना देखें जबकि आगे अधेंरों और डिप्रेशन के सिवा कुछ नहीं।
असल में हमारे हार्मोन्स का रिलीज होना अधिकतर स्त्रियों में सिर्फ भावनाओ के आधार पर ही होता है। क्योंकि स्त्री का निर्माण भगवान शिव ने ब्रम्हा जी के कहने पर सृष्टि को असेक्सुअल रिप्रोडक्शन से सेक्सुअल का जीवन शुरू करने के लिए किया था।
माया या स्त्री की रचना सिर्फ भावनाओ के आधार पर हुई थी। स्त्री का मन चन्द्रमा कि कलाओं पर निर्भर करता है। किसी भी स्त्री की भावना चन्द्रमा की कलाओं पर निर्भर करती है। जैसे किसी स्त्री का मंथली साइकिल 29.5 दिन या समझ लें लगभग 30 दिन का होता है अगर इनमे से आप पांच दिन मासिक धर्म के निकाल दें तो बाकी 25 दिन हर चंद्र कला 2.5 दिन के हिसाब से 25/2.5=10 प्रकार के मूड एक स्त्री हर माह दिखाती है।
यही दस रूप या दस शक्तियों के रूप हर स्त्री हर माह दिखाती है। हर स्त्री का मूड या हार्मोन्स का सिस्टम हर 2.5 ढाई दिन में बदल जाता है।
लेकिन अगर कोई स्त्री सिर्फ अपने विचारों पर नियन्त्रण पा ले तो वह अपने सुख और दुख या किसी शरीर कष्ट से मुक्ति प्राप्त कर सकती है।
जैसे किसी ने मुझे कॉमेंट में कहा था कि क्या सिर्फ भावनाओ के अधीन होकर मनुष्य को पशु समान जीवन व्यतीत करना चाहिए। तो मैं कहना चाहता हूं कि भावनाओं के बिना कोई मनुष्य जी ही नहीं सकता। भावनाएं ज्ञान के प्रभाव से सिर्फ दबाई जा सकती है समाप्त नहीं की जा सकती। भावनाएं सिर्फ उनको पूरा करके ही समाप्त की जा सकती है। दबी हुई भावनाएं कभी ना कभी विस्फोट करके हमारे सारे किए कराए पर पानी फेर सकती है।
दबी हुई भावनाएं ही हमारे विशुद्ध चक्र या थायरॉयड ग्लैंड या लेवल पांच को ब्लॉक कर देती है। यह अहसास आपको अपने गले से लेकर कान के निचले हिस्से तक महसूस होता है। आप एक बालक की भांति निश्चल मुस्कान अपने चेहरे पर नहीं ला पाते। एक बड़ी आयु का व्यक्ति जब भी मुस्कुराता है तो उसकी दबी हुई भावनाएं उसमे जरूर झलक कर सामने आ जाती है।
यह अहसास उसको अपने गले में महसूस होता है। अब जब गला विष से भरा हो तो आप कभी प्रसन्नता का अहसास नहीं कर सकते।
इसलिए आपको अपनी दबी हुई भावनाओं को हर समय याद करना चाहिए। उनसे दूर नहीं भागना चाहिए। जिस भी व्यक्ति से वे भावनाएं जुड़ी हों अच्छी या बुरी उसको कभी नहीं भुलाना चाहिए या भूलने का प्रयत्न करना चाहिए।
क्योंकि माया है ही ऐसी अगर इससे दूर भागोगे तो यह आपके पीछे भागेगी अगर इस के नजदीक जाने कि कोशिश करोगे तो यह दूर भाग जाएगी।
जब आप मान लें कोई भी काम करते है और बाद में वह काम गलत हो जाता है तब आप दुखी होते हैं। लेकिन अगर आप सफल व्यक्ति है तो उसी काम को बार बार करके उसमे यह देख कर की कहां कहां गलती हुई और अनुभव प्राप्त करके उस काम में सफलता प्राप्त कर लेते हैं।
लेकिन एक असफल व्यक्ति सिर्फ अपने असफल होने का रोना रोते रहते है और हमेशा के लिए उसी लेवल पर अटक कर रह जाते है।
इसी प्रकार से भावनात्मक रिश्तों में भी बार बार जुड़ कर अपने को सफल बनाना जरूरी है। अगर आप किसी के प्रवचनों के फेर में पड़ कर मुक्ति ज्ञान की बातें सोचने लगते हैं तो एक बात समझ लें कि आप भावनात्मक रिश्तों से हार मान कर अपनी भावनाओं को दबा कर बैठे हैं और कुछ नहीं।
रही बात ज्ञान और मुक्ति की तो मैं शास्त्रों के प्रमाण के साथ लिख चुका हूं कि ना तू कहीं से आया है ना कहीं तुझे जाना है तू भी इसी प्रकृति का अभिन्न अंग है तुझे बार बार यह शरीर बदल बदल कर यहीं रहना है।
जैसा कि मैने शास्त्रों के प्रमाण के साथ लिखा था कि जब देवताओं के युग इतने लंबे हैं कई मिलियन सालों के तो तू क्या समझता है कि 70-80 साल में तुझे कोई मुक्ति दिला सकता है।
रही बात इच्छाओं से मुक्ति की तो इच्छाएं तो भगवान की भी समाप्त नहीं हुई तो तेरी या तेरे गुरु या पैगम्बर या किसी और की क्या औकात। भगवान की भी इच्छा हुई की सृष्टि का निर्माण किया जाए और भगवान ने शून्य में विस्फोट करके इस सृष्टि का निर्माण किया। इस सृष्टि के निर्माण में भी भगवान की ही इच्छा थी।
जो भगवान को नही मानते और समझते है की सृष्टि खुद अपने आप बनी तो वे ये समझ लें की जैसा वैज्ञानिक मानते हैं कि सृष्टि का निर्माण बिग बैंग से हुआ। तू एक जैविक पदार्थों का समूह मात्र है और ये जैविक पदार्थ बार बार रीसाइकल होते रहते हैं।
*मिनिमम एनर्जी मैक्सिमम स्टेबिलिटी :*
फिजिक्स का यह नियम हमारी मानसिक ऊर्जा पर भी लागू होता है। जब किसी के प्रेम संबध बनते हैं। तो हायर लेवल वाले व्यक्ति की ऊर्जा लोअर लेवल वाले व्यक्ति की और जाती है। और जब भी ऊर्जा का प्रवाह महसूस होता है चाहे आने का चाहे जाने का बहुत आनंद महसूस होता है। लेकिन जो व्यक्ति ऊर्जा खोता है वह धीरे धीरे समय के साथ चिड़चिड़ा होने लगता है और जो ऊर्जा प्राप्त करता है वह समय के साथ साथ उर्जावान होने लगता है। जब दोनों का ऊर्जा लेवल एक समान हो जाता है तब उनके रिश्तों में उदासीनता आने लग जाती है।
अगर ऐसे लोग किसी सामाजिक रिश्ते जैसे पति पत्नी का से न जुड़े हों तो अलग हो जाते हैं।लेकिन अगर किसी कारण से कोई प्रेमी जोड़ा ऊर्जा लेवल बराबर होने से पहले ही बिछड़ जाए तो यह ऊर्जा प्रभाव या आकर्षण तब तक कायम रहता है जब तक वे दोनो किसी और के साथ संतान उत्पन न कर लें। यह मेरी बातें कई अनुभव और शास्त्रों के गूढ़ ज्ञान पर आधारित है।
अगर आप आज के युग में भी किसी को चमकता और नेचुरल मुस्कुराहट के साथ देख लो तो समझ लें की या तो वह कभी इन झमेलों में पड़ा ही नही या उसे कहीं से इस प्रकार की ऊर्जा मिल या उसकी ऊर्जा कहीं जा रही है। क्योंकि कोई व्यक्ति ऊर्जा के प्रवाह के बिना खुश मिजाज नही रह सकता।
सिवाय तब तक जब तक वह इन झमेलों में नही पड़ा हो। जब ऐसे झमेले में कोई भी मनुष्य एक बार पड़ जाए वह इससे मुक्त नही हो सकता। यह बात आज के हालात में सिर्फ बच्चों पर ही लागू हो सकती है।
इसीलिए नया नया इश्क मजा देता है चाहे जिससे आप इश्क कर रहे हैं उससे पिछले वाला या वाली बिल्कुल दुखी हो या बोर हो चुका या चुकी हों। आकर्षण या विकर्षण किसी व्यक्ति के कारण नही बल्कि दोनो की ऊर्जा लेवल में अंतर के कारण होता है।
इसीलिए ध्यान रखें जिससे आप आकर्षण महुसूस कर रहें है वह या ऊर्जा लेवल में आपसे उपर है या बहुत नीचे। जैसे ही अगर आपका मिलन हो जाए तो पहली बार तो छूने से भी करेंट की तरह वाइव्रेशन महसूस होगी लेकिन समय के साथ साथ इस करेंट के झटके की वोल्टेज कम होती जायेगी।
बाद में जब दोनो की वोल्टेज बराबर हो जायेगी तो दोनो के बीच बहने वाला करंट भी बहना बंद हो जायेगा फिर एक दूसरे को अपना ध्यान न रखने के ताने शुरू हो जाते है फिर लड़ाई फिर जुदाई।
सांसारिक बुद्धि के लोग सिर्फ इसी करेंट की वाइब्रेशन को महसूस करने और इसके मजे लूटने के लिए हर बार कोई नया इश्क विश्क करने के चक्कर में लगे रहते हैं अपनी बहुत सी ऊर्जा और धन इन्ही कार्यों के लिए समर्पित कर देते हैं।
यह बात सिर्फ उन रिश्तों पर लागू होती है जो मानसिक और शारीरिक होते हैं। जो लोग one night stand वाली बातों के पीछे भागते है वे रिश्ते सिर्फ वासनात्मक होते है उनसे भी कुछ ऊर्जा का आदान प्रदान होता है लेकिन उसके प्रभाव कुछ और प्रकार के होते है ऐसा व्यक्ति unstable दिमाग का हो जाता है।