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‘ख़त्म करो पूंजी का राज़’….‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ का पहला सम्मलेन

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‘फ़ासीवाद का एक ईलाज़ – ख़त्म करो पूंजी का राज़’ के नारे के साथ 2 अक्टूबर को, मज़दूर बस्ती ‘आज़ाद नगर’ स्थित, सामुदायिक भवन में, ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ (इसके बाद ‘संगठन’) द्वारा आयोजित सेमिनार, ‘गहराता फ़ासीवादी अंधेरा और हमारा फ़र्ज़’ तथा पहला सम्मलेन शानदार तरीक़े से संपन्न हुए. सभा स्थल परिसर तथा वहां जाने वाली सड़क, लहराते लाल झंडों तथा क्रांतिकारी नारों से सुसज्जित बैनरों से सजे हुए थे. मज़दूरों की चहल-पहल और उत्साह, मज़दूरों के उत्सव होने का अहसास करा रहे थे.

मज़दूर नगरी, फ़रीदाबाद अथवा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ही नहीं, बल्कि मुंबई, कुरुक्षेत्र, जींद और मेरठ से भी, मज़दूर आंदोलन में सक्रिय, अनेक मज़दूर नेताओं ने कार्यक्रम में शिरक़त की. 2 अक्टूबर के कार्यक्रम की तैयारियां, संगठन के कार्यकर्ता अगस्त महीने से कर रहे थे. सेमिनार के लिए, संगठन ने अपना दस्तावेज़ भी 1 महिना पहले ज़ारी कर दिया था. ‘मज़दूरों का ऐसा सम्मलेन, फ़रीदाबाद में पहले नहीं हुआ’, पिछले 25 साल से, मज़दूर आंदोलन से जुड़े साथी दिनेश का ये फीडबैक, दिल को छू गया.

मज़दूरों के जीवन के कष्ट, उस बिन्दू को छू चुके कि अपने परिवार को किसी तरह जिंदा रखने के लिए, उन्हें साप्ताहिक छुट्टी के दिन भी काम तलाशना होता है. यही वज़ह है कि वे 2 अक्टूबर जैसी आवश्यक छुट्टी के दिन सुबह थोडा देर तक सुस्ताते हैं. इसीलिए कार्यक्रम, निर्धारित समय 10 बजे की जगह 11 बजे शुरू हो पाया.

सेमिनार की कार्यवाही का संचालन

सेमिनार की कार्यवाही का संचालन, संगठन के अध्यक्ष, कामरेड नरेश ने किया. सबसे पहले, संगठन के महासचिव, कामरेड सत्यवीर सिंह ने, ‘गहराता फ़ासीवादी अंधेरा और हमारा फ़र्ज़’ विषय पर, संगठन द्वारा ज़ारी दस्तावेज़ का सार, सभा के सम्मुख प्रस्तुत किया. कोई भी जनवादी-संवैधानिक अधिकार, अब ‘अधिकार’ नहीं रहा, सब जिल्लेइलाही की मर्ज़ी पर है. सारे जनवादी इदारे, खोखले और निष्प्राण होकर, फ़ासीवादी परियोजना को लागू कराने के औज़ारों में तब्दील हो चुके हैं. ‘फ़ासीवाद, सड़ता हुआ पूंजीवाद है’, लेनिन का ये कथन, शत-प्रतिशत हकीक़त बनता नज़र आ रहा है. व्यवस्था की सड़ांध हर रोज़ सघन और ना-काबिले बरदास्त होती जा रही है.

रोज़गार देना, मंहगाई कम करना, लोगों के जीवन-मरण के ये मुद्दे, सरकार के असल एजेंडे में अब रहे ही नहीं. मज़दूर-मेहनतक़श किसानों की एकता तोड़कर, उनके संभावित आक्रोश से, सड़ते पूंजीवाद की वर्त्तमान अवस्था, ‘कॉर्पोरेट राज़’ को बचाना ही, मोदी सरकार का एक मात्र एजेंडा है. कितना भी क्यों ना सड़ जाए, निज़ाम, ख़ुद-ब-ख़ुद चरमराकर, कभी नहीं गिरता. मज़दूरों और मेहनतक़श किसानों की फ़ौलादी एकता के बलबूते पर ही, इस मानव-विरोधी, कमेरों का खून चूसकर, फूलने वाली इस सरमाएदार व्यवस्था को दफ़न किया जा सकता है.

फ़ासीवाद विरोधी क्रांतिकारी संघर्षों का इतिहास, हमें ये ही सिखाता है. सत्ता द्वारा फैलाए जा रहे, झूठ-पाखंड का भंडाफोड़ करना, कट्टर हिन्दुत्ववादी, नाज़ी टुकड़ियों द्वारा निशाने पर लिए जा रहे, अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज के साथ डटकर खड़े होना, मोदी सरकार द्वारा की जा रही अडानी-अंबानी की निर्लज्ज ताबेदारी की हकीक़त को जन-मानस तक ले जाना ही, आज फ़ासीवादी अंधेरे को मिटाने के लिए, हमारी ज़िम्मेदारी है.

‘समाजवादी लोक मंच’ की ओर से, गाज़ियाबाद से पधारे, कामरेड धर्मेन्द्र आज़ाद ने कहा कि 80 करोड़ लोग, दो जून की रोटी का जुगाड़ करने लायक़ भी नहीं बचे, ये है आज की कड़वी सच्चाई. इसके बावजूद भी, लेकिन, वैसा जन-आक्रोश कहीं नज़र नहीं आ रहा, जैसा अपेक्षित है. चूंकि सुप्रीम कोर्ट, अभी भी सरकार की बांह मरोड़ता रहता है, इसलिए ये नहीं कहा जा सकता कि सत्ता का चरित्र पूरी तरह फ़ासीवादी हो चुका है. वर्त्तमान मुख्य न्यायाधीश से, उन्हें, काफ़ी उम्मीदें हैं.

हैदराबाद स्थित, पुलिस अकादमी के डायरेक्टर जैसे वरिष्ठतम पुलिस ओहदे से रिटायर तथा अडिग सामाजिक सरोकार से प्रतिबद्ध, हमेशा संगठन के कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने वाले, फ़रीदाबाद के प्रतिष्ठित नागरिक, श्री विकास नारायण राय, अस्वस्थता के बावजूद, कार्यक्रम में शरीक हुए.

अपने संक्षिप्त उद्बोधन में, राय साहब ने कहा, ‘मुझे ख़ुशी है कि संगठन के कार्यकर्ताओं का चरित्र, उनके विचारों के अनुरूप है. समाज के सबसे विपन्न हिस्से तक पहुंचना ज़रूरी है. विदेशी क्रांतिकारी विचारकों के साथ ही, हमारे देश के क्रांतिकारी योद्धाओं की तस्वीरें और कथन भी नज़र आने चाहिएं. साथ ही, मज़दूरों के बच्चों की शिक्षा की ज़िम्मेदारी भी संगठन को लेनी चाहिए तब ही तो वे ये क्रांतिकारी विचार समझ पाएंगे’.

मज़दूरों में चहेते, प्रतिष्ठित साप्ताहिक, ‘मज़दूर मोर्चा’ के संपादक, सेमिनार के अध्यक्ष मंडल के सदस्य, कामरेड सतीश कुमार, संगठन क्या कर रहा है, इस पर हमेशा नज़र रखते हैं, और कोई भी चूक नज़र आते ही, बहुमूल्य सलाह देने से नहीं चूकते. ‘आपने पानी, शौचालय और मज़दूर अधिकारों के लिए संघर्ष किए, ये बहुत अच्छी बात है, लेकिन आरएसएस का असल चरित्र क्या है, इस ज़हरीली बेल ने, अपने जन्म से ही समाज को कैसे बांटा, किसकी सेवा की, यह बताया जाना भी उतना ही ज़रूरी था, लेकिन इस काम को उतनी तवज़्ज़ो नहीं मिली. इसी का नतीजा है, कि इस ज़हरीली विचार धारा ने, समाज के बहुत बड़े हिस्से को अपनी जकड़बंदी में ले लिया है. आज जो हालात बने हैं, ये हमारी उसी नाकामी का परिणाम है’, सतीश जी ने, हमेशा की तरह, कड़वी हकीक़त बिना लाग-लपेट के सभा के सम्मुख रखी.

सीपीआई (एमएल) क्रांतिकारी पहल, के दो वरिष्ठ कामरेड्स, उमाकांत तथा विमल त्रिवेदी, सेमिनार में शरीक़ हुए. विमल जी के भाषण का सार ये था, कि संगठन ने फ़ासीवाद पर, जो दस्तावेज़ ज़ारी किया है, उसके निष्कर्षों से वे सहमत हैं लेकिन विवेचना पर, सघन बातचीत की ज़रूरत है, बखिया उधेड़ी जानी ज़रूरी है. संयुक्त मोर्चा बनना, निहायत ज़रूरी है लेकिन उसके कई आयाम हैं जिन पर आवश्यक बहस, सभा में नहीं हो पाएगी. संगठन ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे को, मज़दूर आंदोलन में चर्चा के लिए प्रस्तुत किया, इसके लिए उन्होंने, संगठन को बधाई देकर उत्साह बढ़ाया.

मज़दूर आन्दोलन की धड़कन को शिद्दत से महसूस करने वाले, साथी राजेश उपाध्याय ने, कहा कि ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ नारे का मतलब ही है, व्यवस्था को पलट डालना. सत्ता से सवाल पूछ रहे पत्रकारों, लेखकों, यहाँ तक कि कार्टूनिस्टों तक को जेल में डाल देना घोर अन्यायपूर्ण है. यह नंगा फ़ासीवादी हमला है और इस अन्याय को मज़दूरों की संगठित शक्ति के द्वारा ही पलटा जा सकता है.

नोएडा से तशरीफ़ लाए, ‘श्रमिक संग्राम समिति’ के कॉमरेड, शुभाशीष ने अपने वक्तव्य में, इस बात की ओर ध्यान खींचा कि जिस कारणों से मज़दूर आंदोलन कमज़ोर हुआ और ये नौबत आई कि प्रतिक्रियावादी शक्तियां हावी हो गईं, उनकी सघन मीमांसा होना निहायत ज़रूरी है, जो नहीं हो पाई. धर्म-जाति के आधार पर, सत्ता द्वारा खेले जा रहे विघटनकारी खेल को, मज़दूरों की संगठित शक्ति के दम पर ही शिक़स्त दी जा सकती है. रूस और चीन में हुई प्रतिक्रांतियों ने, सड़ते पूंजीवाद को बचाने वाली सत्ताओं को इतना मज़बूत बनने में मदद की है.

इस सदी के सबसे शानदार, मारुती मज़दूर आंदोलन का गहन अध्ययन कर, एक शानदार दस्तावेज़, ‘फैक्ट्री जापानी, प्रतिरोध हिन्दुस्तानी’ की सह-लेखिका, साथी अंजली देशपांडे को अपने कार्यक्रम में उपस्थित देखकर, संगठन के सभी कार्यकर्ता खुश हो गए. जर्मन पादरी, मार्टिन निमोलर की कालजयी कविता का उल्लेख करते हुए, अंजली जी ने कहा कि मौजूदा निज़ाम, प्यार के खिलाफ है और नफ़रत के साथ है. उसे नफ़रत चाहिए, इसीलिए हर तरफ़ नफ़रत फैला रहा है. फ़ासीवाद के उद्भव को समझाते हुए उन्होंने कहा कि ‘फासी’ शब्द का ग्रीक भाषा में अर्थ होता है, ‘कुल्हाड़ी’. मतलब जो आपकी बात मानने से इंकार करे, उसका सर कुल्हाड़ी से क़लम कर दो. महिलाओं, सम-लिंगियों को भी, फ़ासीवाद में, ज़ुल्मो- ज़बर झेलना पड़ता है.

‘जनाधिकार संघर्ष मंच’ के साथी, अश्वनी कुमार ने समझाया कि हमें लोगों को समझाने का अपना तरीका बदलना होगा. मालिकों का मुनाफ़ा कहाँ से आता है, मज़दूरों को ये समझाना होगा. संघ परिवार द्वारा एक क़िस्म का वायरस तैयार किया जा रहा है. मणिपुर को फ़ासीवाद की भट्टी में झोंक दिया गया है. बच्ची स्वाती ने, ‘पढ़ना-लिखना सीखो, ओ मेहनत करने वालो’, सफ़दर हाशमी का लिखा ये गीत, और बालक स्नेह ने नागार्जुन की लिखी कालजयी कविता, ‘कई दिनों तक चूल्हा रोया चक्की रही उदास’ पढ़कर सभा का दिल जीत लिया.

निशांत नाट्य मंच के सूत्रधार, दिल्ली विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर शमशुल इस्लाम, अस्वस्थ होने के कारण उपस्थित नहीं हो पाए. उनकी टीम के, फ़रीदाबाद निवासी प्रख्यात आर्टिस्ट, साथी लालबहादुर सिंह, कार्यक्रम में ना सिर्फ उपस्थित हुए बल्कि बहुत ही सुंदर गीत, ‘सहते-सहते मरने से अच्छी है लड़ाई; ओ भाई हाथ उठा, ओ बहाना हाथ उठा’ तथा गदरी बाबाओं का मक़बूल गीत, ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’, रूपांतरित कर सुनाया और क्रांतिकारी समां बांध दिया. साथी लालबहादुर सिंह ने, संगठन की सांस्कृतिक टीम का मार्गदर्शन करने की ज़िम्मेदारी भी ली है.

अध्यक्ष मंडल के सदस्य, कुरुक्षेत्र से पधारे, ‘जन संघर्ष मंच, हरियाणा’ के वरिष्ठ नेता, साथी सोमनाथ जी ने अपने उद्बोधन में, बताया कि कैसे राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और हिन्दू महासभा ने, विवेकानंद द्वारा, हिन्दू राष्ट्र बनाने के बोए, ज़हरीले बीज को खाद-पानी दिया और उनके आज के वारिसों ने उस ज़हरीली बेल को सारे देश में फैला दिया है. मज़दूर एकता नहीं बन पाती, इसीलिए, देश स्तर पर, शोषित-पीड़ित वर्ग की सही क्रांतिकारी नहीं बन पाई. मज़दूर वर्ग की इसी नाकामी का फ़ायदा, विश्व हिन्दू परिषद तथा बजरंग दल जैसे फ़ासिस्ट संगठन उठा रहे हैं. पूंजी की नंगी तानाशाही अपने पूरे ख़ूनी रूप में मज़दूरों को ललकार रही है. हमें ये चुनौती स्वीकार करनी होगी.

युवा साथी, प्रकाश ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वक्ताओं की भाषा इतनी सरल होनी चाहिए, जिससे मज़दूर आसानी से समझ सकें. साथी प्रकाश, संगठन के छात्र एवं युवा मोर्चे के निर्माण की ज़िम्मेदारी भी लेने वाले हैं. प्रख्यात साहित्यकार, गजेन्द्र रावत की दो कविताओं, ‘अहिंसा’ और ‘क्रांति’ पर उपस्थित लोगों ने ज़ोरदार दाद दी. जींद से आए, ‘जन संघर्ष मंच हरियाणा’ के वरिष्ठ साथी पाल सिंह ने, संगठन के कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने वाला, सबसे संक्षिप्त भाषण दिया.

अध्यक्ष मंडल पर विराजमान, ‘इंडियन पब्लिक स्रेर्विसस एम्प्लाई फेडरेशन’ के दिल्ली प्रदेश सचिव, साथी राकेश भदोरिया ने फासीवाद को बहुत सरल भाषा में समझाते हुए कहा कि हर तरह की ज़बरदस्ती फ़ासीवाद है, चाहे घर के अंदर हो, चाहे बाहर. इसका एक मात्र ईलाज है, वर्ग चेतना का निर्माण. सभी मज़दूर कार्यकर्ताओं को, इकट्ठे होकर मज़दूर वर्ग को संगठित कर, उन्हें वर्ग चेतना से लैस करना होगा. फ़ासीवाद से निज़ात पाने के लिए, पूंजीवाद को उखाड़कर फेंकना होगा.

गार्गी प्रकाशन मेरठ से, साथी विक्रम प्रताप सिंह, अपने दो साथियों के साथ उपस्थित हुए. उन्होंने बुक स्टाल भी लगाया था, लेकिन किसी ज़रूरी काम से उन्हें जल्दी लौट जाना पड़ा, और वे अपनी वक्तव्य नहीं रख पाए. गाज़ियाबाद से ही, साथी जे पी नरेला और बुद्धेश भी शामिल हुए, उन्हें भी जल्दी लौट जाना पड़ा, लेकिन सम्मलेन के लिए उन्होंने, फ़ासीवाद पर, अपना, 9 पन्नों का, लिखित दस्तावेज़ प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने वर्ग-संघर्ष के साथ ही, जाति-उन्मूलन आंदोलन के महत्त्व पर भी ज़ोर दिया है.

सेमिनार का समापन

सेमिनार का समापन, संगठन के अध्यक्ष, कॉमरेड नरेश ने, अपने चिरपरिचित बुलंद अंदाज़ में किया. ‘संगठन का हौसला, आज़ाद नगर के बहादुर मज़दूरों ने बढ़ाया है. हमें अंदाज़ भी नहीं था, कि इतनी बड़ी तादाद में आप लोग हमारे कार्यक्रम की शोभा बढ़ाएंगे. हम भी आपको संगठन की ओर से भरोसा दिलाते हैं, कि मज़दूरों के हर संघर्ष में, आख़री सांस तक, एकदम अगली कतार में रहेंगे. आपके भरोसे को डिगने नहीं देंगे. आपकी उम्मीदों पर खरा उतरेंगे, भले हमारी जान ही क्यों ना चली जाए’. संगठन की ओर से, मज़दूरों को ये भरोसा दिलाते हुए, उन्होंने सेमिनार वाले पहले सत्र की समाप्ति की घोषणा की, और सभी से दरखास्त की कि वे भोजन ग्रहण करने के पश्चात ही रवाना हों.

भोजन अवकाश 2 की जगह, 3 बजे शुरू हो पाया. सुखद आश्चर्य, सम्मलेन में उपस्थित साथियों की तादाद जानकर हुआ. लगभग 1000 लोगों के खाने की व्यवस्था में कुछ अव्यवस्था और देरी हुई, जिसके लिए संगठन के पदाधिकारियों ने खेद व्यक्त किया. आगे व्यवस्था को चाक-चौबंद किया जाएगा, भरोसा दिलाया.

पहले वार्षिक सम्मलेन की शुरुआत 5 बजे ही हो पाई. ‘जन संघर्ष मंच हरियाणा’ से साथी सोमनाथ और इप्सेफ़ से साथी राकेश भदौरिया, पर्यवेक्षक की हैसियत से मौजूद रहे. सबसे पहले संगठन के महासचिव, कॉमरेड सत्यवीर सिंह ने जनरल सेक्रेटरी रिपोर्ट प्रस्तुत की. संगठन की पिछले साल की उल्लेखनीय उपलब्धियों की जानकारी दी. सदस्यों ने, ज़ोरदार नारों और तालियों की गड़गड़ाहट से, एक साल में इतनी शानदार उपलब्धियों पर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर की. सभी सदस्यों ने बहुत सक्रिय रूप से सारी कार्यवाही में शिरक़त की. अगले दो साल के लिए, 5 महिलाओं समेत, 15 सदस्यीय कोर कमेटी चुनी गई, जो इस तरह है;

अध्यक्ष, कॉमरेड नरेश; उपाध्यक्ष, कॉमरेड मुकेश कुमार; महासचिव, कॉमरेड सत्यवीर सिंह; सह-सचिव, कॉमरेड चंदन कुमार; कोषाध्यक्ष, कॉमरेड अशोक कुमार; सदस्य, कॉमरेड विजय सिंह; सदस्य, कॉमरेड विनोद कुमार; सदस्य, कॉमरेड सुभाष; सदस्य, कॉमरेड रजनीश; सदस्य, कॉमरेड प्रदीप कुमार; सदस्य, कॉमरेड रिम्पी; सदस्य, कॉमरेड वीनू; सदस्य, कॉमरेड कविता; सदस्य, कॉमरेड सीमा; सदस्य, कॉमरेड रेखा.

पारित प्रस्ताव

सम्मलेन के अंत में ये 4 प्रस्ताव भी पारित हुए –

  1. संगठन, भाजपा के एक मवाली सांसद द्वारा, पूरे मुस्लिम समाज को अपमानित करने के बयान और उस घृणित बकवास पर, खिलखिलाकर हंसने वाले, उसके सह-अपराधियों को, सामाजिक विद्वेष फ़ैलाने, और शांति भंग करने के अपराध के लिए, गिरफ्तार करने की मांग करता है, तथा फ़ासिस्टों द्वारा निशाने पर लिए जा रहे, मुस्लिम समाज के साथ अपनी एकजुटता- सॉलिडेरिटी व्यक्त करता है. साथ ही फासिस्ट हमले का मुंहतोड़ जवाब देने, उसे निर्णायक शिकस्त देने के संघर्ष में, सभी फ़ासीवाद विरोधी शक्तियों को एकजुट होने का आह्वान करता है.
  2. बेलसोनिका मज़दूर यूनियन की मान्यता रद्द करने के, हरियाणा सरकार के हिटलरी फ़रमान का, ये सम्मलेन तीव्र विरोध करता है. इस मज़दूर विरोधी क़दम का विरोध करने, ठेका मज़दूरों को संगठित करने और सबसे अहम, ठेका मज़दूर भी इंसान हैं, हुकूमत को ये स्वीकार कराने के लिए, तीव्र जन आंदोलन छेड़ने का आह्वान करता है.
  3. सुप्रीम कोर्ट, हिन्दू कट्टरपंथियों की, समाज की एकता को खंडित करने वाली, विघटनकारी गतिविधियों, अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के प्रति विद्वेष्कारी, ज़हरीली गतिविधियों पर, स्वयं संज्ञान लेते हुए सख्ती से रोक लगाए.
  4. 3 अक्टूबर को, संयुक्त किसान मोर्चा, केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों तथा औद्योगिक फेडरेसनों ने मिलकर, लखीमपुर खीरी के शहीद किसानों को न्याय दिलाने, किसान हत्याकांड के मुख्य षडयंत्रकारी, केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री, अजय मिश्र टेनी को बरखास्त कर, गिरफ्तार करने में मोदी सरकार की नाकामी के लिए, ‘काला दिवस’ मनाया. संगठन, इस फ़ैसले का, तहेदिल से समर्थन करता है, तथा इस आंदोलन के साथ, अपनी एकजुटता, सॉलिडेरिटी रेखांकित करता है.
  • फरीदाबाद से साथी सत्यवीर सिंह की रिपोर्ट
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