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गैर बराबरी, आर्थिक हिंसा है और आर्थिक हिंसा फैलाने का काम सरकारों द्वारा किया जा रहा है

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एड. आराधना भार्गव
आॅक्सफैम ने हर वर्ष की तरह विश्व आर्थिक फोरम के दावोस सम्मेलन की ठीक पहले बढती आर्थिक असमानता, उसके दुष्प्रभाव और निदान को लेकर अपनी रिपोर्ट जारी की है। प्रतिदिन अखबार में नवजवानों के अत्महत्या, आर्थिक तंगी से पीड़ित परिवारों में बढ़ती महिला हिंसा, डकैती, चैरी के नए नए तरीके देखने को और पढ़ने को मिलते हैं। कभी देश ने ऐसा नही सोचा था कि खदानों के अन्दर भी डकैती हो सकती है और खदान मजदूरों का जीवन संकट में हो सकता है। छिन्दवाड़ा जिले के तानसी खदान में तलवार और बन्दूक की नौक पर कामगारों को बन्धक बनाकर काॅपर वायर सहित अन्य समान डकैतों ने डकैती डालकर ले गये, परिणाम स्वरूप कामगारों ने रात की पाली में काम करने से इंकार कर दिया। आॅक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि आर्थिक असमानता के कारण प्रतिदिन 21 हजार लोग दुनिया में मरते है, जबकि दुनिया के 10 अमीरों की कोविड महामारी काल में हर रोज पूँजी 9 हजार करोड रूपये बढ़ती पाई गई।

आर्थिक असमानता का असर स्वास्थ्य सुविधाओं पर भी स्पष्टतौर पर भी दिखाई दे रहा है। आर्थिक हिंसा के परिणाम स्वरूप ही ग्रामीण क्षेत्र में छिन्दवाड़ा जिले के बिछुआ ब्लाॅक में 550 शालात्यागी बच्चे मिले, कारण बड़ा स्पष्ट है कि धीरे धीरे करके सरकार ने सरकारी स्कूलों को बन्द कर दिया। रोजगार के अभाव में लोग अपने बच्चों को निजी शाला में पढ़ाने में असमर्थ है और आर्थिक असमानता के परिणाम स्वरूप ही बाल मजदूरों की संख्या बढ़ती चली जा रही है। अनाज का उत्पादन पर्याप्त मात्रा मेें होने के पश्चात भी 80 प्रतिशत जनता एक समय का भोजन नही कर पाती, कहने को तो सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा गरीबों को राशन बांटने की बात कही जाती है, किन्तु राशन की दुकानों पर वितरित किया जाने वाला राशन जानवरों के खाने योग्य भी नही होता। आज की ही बात है, छिन्दवाड़ा जिले के आदिवासी ब्लाॅक के सुरलाखापा में राशन की दुकान से बांट दिया युरिया मिक्स चावल। महामारी गरीबों के लिए मौत बनकर आई है वहीं अमीरों के लिए यह वरदान साबित हुई क्योंकि उनकी सम्पत्ति पिछले 14 वर्षो से ज्यादा इन दो वर्षो में बढ़ी है । भारत के संदर्भ में रिपोर्ट ने इस असमानता के असर को विस्तार से बताते हुए कहा कि जहाँ एक और गरीबों पर बहु-आयामी मार पड़ी है, जिससे मौतें हुई है। आॅक्सफैम ने सलाह दी है कि भारत को इनकम टैक्स ढ़ाॅचे की पुर्नसंरचना करनी चाहिए ताकि बेसुमार सम्पत्ति अर्जित करने वाले छोटे से वर्ग पर टैक्स बढ़ाकर राजस्व में वृद्धि की जा सके। जिसे स्वास्थ्य, शिक्षा और गरीबों के कल्याण में लगाया जा सकें।
हमारी सरकारें शराब की बिक्री से प्राप्त होने वाले राजस्व पर निर्भर है। मध्य प्रदेश में नई शराब नीति लागू करके शराब सस्ती कर दी है ताकि अधिक से अधिक शराब बिक सके। नव जवान शराब पीकर सो जाए ताकि शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य की कोई मांग ना उठ सकें। महिला हिंसा होने के पश्चात् उन्हें मुआवजा देने की बात करके सरकार महिलाओं का मुँह बन्द करना चाहती है। सबसे अधिक सड़क दुर्घटना शराब पीकर वाहन चलाने पर होती है, किन्तु सरकार का ध्यान इस तरफ नही है। बढ़ते हुए प्राईवेट विधि महाविद्यालय और घटते हुए शासकीय विधि महाविद्यालय के परिणाम स्वरूप समाज में गरीबों तथा संविधान के हक में पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं की संख्या घट रही है। कम्पनीयाँ अपने हित में पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं की फौज तैयार करने में सफल हो रही है। स्वास्थ्य बीमा के नाम पर निजी अस्पतालों की लूट स्पष्टतौर पर दिखाई दे रही है, निजी अस्पताल में भर्ती होते ही बीमार व्यक्ति की बीमारी नही पूछी जाती पहले स्वास्थ्य बीमा की जानकारी डाॅ. लेते है और बीमा के आधार पर ही ईलाज शुरू होता है हमारी सरकारे पूँजीपतियों को छूट और गरीबों की लूट के सिद्धांत पर चलती है पूँजीपतियों के कर्ज माफ करना तथा किसानों के खेत तथा कृषि उपकरण नीलाम कर उन्हें खेती से बेदखल करती दिखाई देती है। 74 साल से यह सिलसिला अनवरत चल रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप भारत की जनता में अपनी ही चुनी हुई सरकार पर विश्वास घटने लगा है। देश की जनता सरकार एवं पत्रकारों पर भरोसा कम कर रही है जो लोकतंत्र को कमजोर बनाता है। आईये हम सब मिलकर गैर बराबरी के खिलाफ आवाज उठायें।
एड. आराधना भार्गव

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