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प्रेस की नैतिकता और स्वतंत्रता

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योगेश कुमार गोयल

राष्ट्रीय प्रेस दिवस वास्तव में प्रेस की स्वतंत्रता तथा समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारियों का प्रतीक है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 में भारतीयों को दिए गए अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार से देश में प्रेस की स्वतंत्रता भी सुनिश्चित होती है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जहां प्रेस ने लोगों में राष्ट्रीय चेतना की भावना जागृत करने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई, वहीं स्वतंत्रता के बाद भी अनेक अवसरों पर सिद्ध होता रहा है कि प्रेस के बिना भारतीय लोकतंत्र अधूरा है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकरार रखने तथा उसका सम्मान करने की प्रतिबद्धता व्यक्त करने के लिए प्रतिवर्ष 16 नवम्बर को देश में ‘राष्ट्रीय प्रेस दिवस’ मनाया जाता है। वास्तव में यह दिवस एक वैधानिक और अर्ध-न्यायिक प्रतिष्ठान के रूप में भारतीय प्रेस परिषद को स्वीकार करने तथा सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है, जो देश में एक स्वतंत्र और जिम्मेदार प्रेस की उपस्थिति का प्रतीक है और इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना है।

पत्रकारिता की नैतिकता और प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए भारत में प्रथम प्रेस आयोग ने 1956 में एक समिति की कल्पना की थी, जिसने 10 वर्ष बाद 4 जुलाई 1966 को भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना की, जिसने 16 नवम्बर 1966 को अपना कार्य शुरू किया और उसी के बाद से प्रतिवर्ष 16 नवम्बर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। भारतीय प्रेस परिषद देश में स्वस्थ लोकतंत्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के अलावा विश्वसनीयता बरकरार रखने के लिए एक नैतिक प्रहरी के रूप में सभी पत्रकारिता गतिविधियों की निगरानी करती है तथा यह भी सुनिश्चित करती है कि देश में प्रेस किसी बाहरी मामले से प्रभावित न हो।

राष्ट्रीय प्रेस दिवस वास्तव में प्रेस की स्वतंत्रता तथा समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारियों का प्रतीक है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 में भारतीयों को दिए गए अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार से देश में प्रेस की स्वतंत्रता भी सुनिश्चित होती है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जहां प्रेस ने लोगों में राष्ट्रीय चेतना की भावना जागृत करने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई, वहीं स्वतंत्रता के बाद भी अनेक अवसरों पर सिद्ध होता रहा है कि प्रेस के बिना भारतीय लोकतंत्र अधूरा है। पत्रकार को समाज का ऐसा आईना माना जाता रहा है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी सच्चाई को सामने लाता है।

भारत में प्रेस को जनता की एक ऐसी ‘संसद’ की उपाधि दी गई है, जिसका कभी सत्रावसान नहीं होता और जो सदैव जनता के लिए कार्य करती है। इसे समाज में परिवर्तन लाने अथवा जागृत करने के लिए जन-संचार का एक सशक्त माध्यम माना गया है। प्रेस को समाज की चिंतन प्रक्रिया का एक ऐसा अनिवार्य तत्व माना गया है, जो उसे दिशा व गति देने में सक्षम हो। इसे जनता की ऐसी आंख माना गया है, जो सभी पर अपनी पैनी और निष्पक्ष दृष्टि रखे। प्रेस को जनता की उंगली माना गया है, जो गलत कार्यों के विरोध में स्वतः ही उठ जाती है। प्रेस को समाज के प्रति पूर्ण समर्पण के रूप में देखा जाता है। इसे केवल एक पेशा न मानकर जनसेवा का सबसे बड़ा माध्यम माना गया है।

प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व को दुनिया की कई महान् हस्तियों ने अपने-अपने शब्दों में रेखांकित किया है। पूर्व राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा के शब्दों में कहें तो प्रेस पर लोकतांत्रिक परम्पराओं की रक्षा करने और शांति व भाईचारा बढ़ाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने प्रेस की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि प्रेस का प्रथम उद्देश्य जनता की इच्छाओं और विचारों को समझना तथा उन्हें सही ढ़ंग से व्यक्त करना है जबकि दूसरा उद्देश्य जनता में वांछनीय भावनाओं को जागृत करना और तीसरा उद्देश्य सार्वजनिक दोषों को निर्भयतापूर्वक प्रकट करना है। संयुक्त राज्य अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन के मुताबिक हमारी स्वतंत्रता प्रेस की स्वतंत्रता पर निर्भर करती है, जिसे खोये बिना सीमित नहीं किया जा सकता।

अमेरिका के जाने-माने समाचार प्रस्तोता और विख्यात पत्रकार वाल्टर क्रोनकाइट का कहना था कि प्रेस की स्वतंत्रता केवल लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि यह लोकतंत्र है। अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी कहते थे कि एक राष्ट्र, जो अपने लोगों को एक खुले बाजार में सच्चाई और झूठ का न्याय करने से डरता है, वह एक ऐसा राष्ट्र है, जो अपने लोगों से डरता है।

ब्रितानी कंजर्वेटिव पार्टी के राजनेता, लेखक तथा दो बार प्रधानमंत्री रहे बेंजामिन डिसरायली का कहना था कि प्रेस न केवल स्वतंत्र है बल्कि शक्तिशाली भी है और वह शक्ति हमारी है। नेल्सन मंडेला ने भी एक स्वतंत्र प्रेस को लोकतंत्र के स्तंभों में से एक बताया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने प्रेस की स्वतंत्रता को एक ऐसा अनमोल विशेषाधिकार बताया था, जिसे कोई भी देश नहीं छोड़ सकता।

आज के पूर्ण व्यावसायिकता के दौर में पत्रकारिता को अव्यावसायिक बनाए रखने की बात करना बेमानी है लेकिन पत्रकारिता के मानदंडों को ताक पर रखने की प्रवृति से हर हाल में बचना चाहिए। कुछ पत्रकार या मीडिया हाउस आज यह कुतर्क देते हैं कि यदि कोई राजनीतिक पार्टी तथा कोई पेशेवर संस्थान अपनी आचार संहिता का पालन नहीं करता तो केवल प्रेस से ही आचार संहिता के पालन की उम्मीद क्यों की जाए? दरअसल प्रेस से जुड़े लोगों के कंधों पर समाज में स्वस्थ मानक स्थापित करने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है और चूंकि प्रेस को समाज का दर्पण माना गया है, अतः उस दर्पण में हम जनता को जो कुछ दिखाएंगे, वही उसे नजर आएगा। इसलिए प्रेस जगत के लोगों से समाज के हर वर्ग को यही उम्मीद होती है कि उनका चरित्र अच्छा हो, उनके लेखन में निष्पक्षता और पारदर्शिता हो तथा वे ऊंचे आचार सिद्धांतों को अपनाएं।

कानून व्यवस्था की खामियों को प्रकाशित-प्रसारित करना, अपने प्रयासों से शासन को सुव्यवस्थित करना व लोक हितकारी बनाना, पथभ्रष्टों को सन्मार्ग पर लाना, भ्रष्ट तंत्र को चौकन्ना बनाना, असामाजिक तत्वों पर कड़ी नजर रखना, समाज के विभिन्न क्षेत्रों में पर्दे की ओट में होने वाले दुष्कृत्यों, अत्याचारों व अन्याय का जनहित में पर्दाफाश करना, समाज व मानवता के गुनाहगार चेहरों पर पड़े नकाब नोचकर जनता के सामने लाना, निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए धार्मिकता एवं राजनीति की आड़ लेने वालों के राज पर्दाफाश करना, समाज में स्वस्थ मानक स्थापित करना, लोक चेतना जागृत करना इत्यादि प्रेस के निम्नलिखित प्रमुख दायित्व माने गए हैं लेकिन यदि पत्रकार स्वयं भ्रष्ट व गैर जिम्मेदार होंगे तो न वे निष्पक्षता के साथ अपनी बात कहने में सक्षम होंगे और न ही समाज के सामने कोई आदर्श तस्वीर प्रस्तुत कर सकेंगे। पत्रकार जनता का ऐसा प्रतिनिधि होता है, जो जनता द्वारा चुना तो नहीं जाता लेकिन उसकी समस्याओं को उसके चुने गए प्रतिनिधियों के सामने समाधान के लिए प्रस्तुत करने का बड़ा माध्यम होता है। बहरहाल, राष्ट्र की स्वतंत्रता की रक्षा, समृद्धि व विकास, राष्ट्रीय अखंडता तथा जन जागरण की ओर अग्रणी रहने हेतु प्रेस को अपनी बहुआयामी भूमिका का निर्वहन करते रहना होगा।

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