अग्नि आलोक
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*ध्यान : आलसी भी मोक्ष का अधिकारी*

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          ~ नीलम ज्योति 

तमस से भरे हुए व्यक्ति को व्यर्थ के दौड़— धूप में नहीं पड़ना चाहिए। उसे पहले तो अपने तमस को स्वीकार कर लेना चाहिए कि यह मेरा भाग्य इस जन्म में।

      अनंत जन्मों में मैंने इसे कमाया। यह मेरा है। इसका मुझे उपयोग करना है; इससे लड़ना नहीं है। जो भी आपके पास है, ध्यान रखें, उसका उपयोग करना है, उससे लड़ना नहीं है।

      उससे लड़कर आप टूटेंगे और नष्ट होंगे। उसका उपयोग करें; उसका सेतु बनाएं, मार्ग बनाएं।

अगर आलस्य आपके पास है, तो आलस्य ही मार्ग बन सकता है। तब निक्रियता आपकी साधना होगी। तब आप आलस्य को ही साधना बना लें।

     तब आप सिर्फ आलस्य में पड़े ही मत रहें, आलस्य बाहर घेरे रहे, और भीतर आप आलस्य के प्रति जागे रहें। आलस्य को देखें और साक्षी हो जाएं।

     पड़े—पड़े भी, बिस्तर पर पड़े—पड़े भी मोक्ष तक पहुंचा जा सकता है। लेकिन तब आलस्य को साधना बना लेना जरूरी है।

     तब आलस्य के प्रति सजग हो जाना जरूरी है। भीतर साक्षी जग जाना चाहिए।

साक्षी के लिए न तो कर्म की जरूरत है, न अकर्म की; जो भी हो रहा है, उसके प्रति साक्षी होने की जरूरत है, विटनेसिंग की जरूरत है। तो आप अगर आलसी हैं, तो आलस्य के प्रति सजग हों, उसे देखें।

     ऐसा जरूरी नहीं है कि आप अगर तमस से आज भरे हैं, तो कल भी तमस से ही भरे रहेंगे। ऐसा कुछ जरूरी नहीं है। क्योंकि प्रतिपल चीजें बदल रही हैं।

    प्रतिपल आपके भीतर के तमस, रजस और सत्व की मात्रा बदल रही है।

     बचपन में जो व्यक्ति तामसिक हो, जरूर नहीं कि जवानी में भी तामसिक रह जाए। हो सकता है, राजसी हो जाए; क्योंकि सब हार्मोन बदल रहे हैं।

 शरीर एक सतत प्रवाह है। शरीर के सारे केमिकल्स बदल रहे हैं, रासायनिक व्यवस्था बदल रही है। जवान होते—होते दूसरी स्थिति हो सकती है। प्रोढ़ होते—होते फिर तीसरी स्थिति हो जाएगी। यह प्रतिपल बदलाहट हो रही है।

      आज आप आलसी हैं, तो जरूरी नहीं कि कल भी आलसी होंगे। और अगर आप आलस्य के प्रति सजग हो गए, तो निश्चित आप में बदलाहट आएगी।

      वह साक्षी एक नया तत्व है, जो आपके प्रत्येक रासायनिक ढंग को भीतर से बदल देगा। आप दूसरे आदमी होने लगेंगे।

       आप धीरे— धीरे पाएंगे कि आलस्य की उतनी जकड़ नहीं रही आपके ऊपर, जैसी पहले थी। आलस्य अब कोई बोझ नहीं रहा; एक हलका विश्राम हो गया।

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