लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दलों के गठबंधन में सीट शेयरिंग की शुरुआत हो गई है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश-मध्यप्रदेश की सीटों पर समझौता किया है। समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ी हैं। जबकि मध्यप्रदेश की 29 सीटों में से कांग्रेस ने एक खजुराहो सीट समाजवादी पार्टी को दी है। अभी इस पर भाजपा का कब्जा है। खजुराहो लोकसभा सीट से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा सांसद हैं। पिछले चार लोकसभा चुनावों से कांग्रेस लगातार इस सीट पर हार रही है। समाजवादी पार्टी के हिस्से में यह सीट आने के बाद से ही प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई कि क्या मध्यप्रदेश की इकलौती खजुराहो सीट पर समाजवादी पार्टी चुनाव लड़ क्या भाजपा को टक्कर दे पाएगी। इसी बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 25 फरवरी को खजुराहो पहुंच रहे हैं। शाह आम सभा को संबोधित करेंगे, इसमें 2293 बूथों की 11 सदस्यीय समितियों के 25223 कार्यकर्ता शामिल होंगे। वे लोकसभा के बूथ समिति सम्मेलन में शामिल होंगे।
दरअसल, मप्र के चंबल, बुंदेलखंड और विंध्य का इलाका उत्तर प्रदेश से सटा हुआ है। यूपी की सीमा से सटे मप्र के बुंदेलखंड में सपा का प्रभाव रहता है। समाजवादी पार्टी खजुराहो में मध्यप्रदेश का प्रदेश कार्यालय बनाने जा रही है। इसके लिए सपा ने जमीन भी खरीद ली है। ऐसे में सपा इस सीट पर ओबीसी कैंडिडेट उतारकर कांग्रेस के साथ चुनावी मुकाबले में जीत हासिल करने का प्लान बना रही है। खजुराहो लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा उत्तर प्रदेश की सीमा से लगा हुआ है। हाल ही में विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पत्नी सांसद डिंपल यादव ने छतरपुर, पन्ना, निवाड़ी, टीकमगढ़, शिवपुरी जिलों की विधानसभा सीटों पर चुनाव पर प्रचार किया था। प्रचार के दौरान सपा प्रमुख ने अपना ठिकाना खजुराहो ही बनाया था।
पिछले चार लोकसभा चुनावों के परिणामों पर नजर डालें, तो कांग्रेस यहां से लगातार चुनाव हार रही है। 1999 में कांग्रेस से आखिरी बार सत्यव्रत चतुर्वेदी यहां से सांसद चुने गए थे। इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, विद्यावती चतुर्वेदी, लक्ष्मी नारायण नायक, पंडित राम सहाय, रामकृष्ण कुसमरिया, जितेंद्र सिंह बुंदेला और नागेंद्र सिंह चुनाव लड़ चुके हैं। 2019 में खजुराहो सीट पर वीडी शर्मा चुनाव मैदान में उतरे और करीब पांच लाख के वोटो के अंतर से जीते। फिल्हाल खजुराहो लोकसभा क्षेत्र में आने वाली सभी 8 विधानसभाओं चंदला, राजनगर, पवई, गुन्नौर, पन्ना, विजयराघवगढ़, मुड़वारा और बहोरीबंद में भाजपा के विधायक हैं।
इस उम्मीदवार के होने से कांग्रेस को भी मिलेगा फायदा
प्रदेश के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि एक सीट सपा के लिए छोड़ने से कांग्रेस को कोई नुकसान नहीं है। कांग्रेस और सपा दोनों की स्थिति खजुराहो में ठीक नहीं है। लेकिन इस सीट से सपा अगर खजुराहो के पूर्व सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी को अपना उम्मीदवार बनाती है, तो पार्टी को इसका फायदा मिल सकता हैं। पूर्व कांग्रेसी होने के नाते कांग्रेस भी चतुर्वेदी के उम्मीदवारी का खुलकर समर्थन करेगी। कांग्रेसी कार्यकर्ता भी डटकर सपा के लिए काम और प्रचार करेगे। इससे माहौल भी बनेगा। कांग्रेस भी खुश रहेगी कि इस सीट से कोई पूर्व कांग्रेसी ही मैदान में है। ऐसे में इस सीट पर रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है। चतुर्वेदी पहले भी इस सीट से सांसद रह चुके हैं और उनका लोगों के बीच संपर्क और संबंध अच्छे हैं।
दरअसल, पूर्व सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी को कांग्रेस पार्टी ने 2018 में ही निष्कासित कर दिया है। चतुर्वेदी 2018 के विधानसभा चुनाव में क्षेत्र की राजनगर सीट से बेटे नितिन के लिए टिकट की मांग कर रहे थे। जब बेटे को कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया, तो बेटा सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतर गया। इसके बाद चतुर्वेदी प्रचार में बेटे की खुले तौर पर मदद करने लगे। उनका कहना था कि वे एक बेटे के लिए उसके पिता का फर्ज निभा रहे हैं। ऐसे में पार्टी ने सत्यव्रत चतुर्वेदी के साथ उनके बेटे नितिन को छह वर्ष के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया था।
चतुर्वेदी की मां विद्यावती चतुर्वेदी भी इस क्षेत्र से लोकसभा सांसद रहीं, वे इंदिरा गांधी से काफी करीब थीं। जबकि सत्यव्रत के पिता बाबूराम चतुर्वेदी राज्य सरकार में मंत्री रहे है। विद्यावती-बाबूराम चतुर्वेदी ने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था। चतुर्वेदी की पहचान ऐसे नेता के तौर पर है, जो जिद्दी, हठी हैं और अपनी बात कहने से किसी से हिचकते नहीं है। यही कारण है कि उनकी वर्तमान दौर के नेताओं से ज्यादा पटरी मेल नहीं खाती है। चतुर्वेदी का राजनीतिक जीवन-उतार चढ़ाव भरा रहा है। अर्जुन सिंह की सरकार में उप-मंत्री थे, न्यायालय का फैसला उनके खिलाफ आया तो पद से इस्तीफा देना पड़ा, दिग्विजय सिंह से टकराव हुआ तो विधानसभा की सदस्यता त्याग कर संन्यास ले लिया और सोनिया गांधी के कहने पर संन्यास छोड़कर खजुराहो से लोकसभा का चुनाव लड़े और जीते, उसके बाद का चुनाव हार गए। अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह से उनका टकराव जगजाहिर रहा है।
क्या इस सीट पर नजर आएगा पीडीए फॉर्मूला
सियासी हलकों में चल रही चर्चाओं के अनुसार, सपा ने खजुराहो के साथ-साथ टीकमगढ़ लोकसभा सीट पर अपनी दावेदारी पेश की थी, क्योंकि दोनों ही लोकसभा सीटें यूपी से सटी हुई हैं। सपा का दावा है कि इस सीट पर उनकी पार्टी का जनाधार चुनावी हार-जीत में कारगर भूमिका निभा सकता है। एमपी के सपा नेताओं का कहना है कि खजुराहो लोकसभा सीट अखिलेश के पीडीए फॉर्मूले की झलक देखेगी। खजुराहो लोकसभा सीट पर चतुर्वेदी परिवार का हमेशा से दबदबा रहा है। साल 1984 में भी विद्यावती सांसद चुनी गई थीं। विद्यावती चतुर्वेदी के बाद इस सीट से उनके बेटे सत्यव्रत चतुर्वेदी सांसद चुने गए। मां-बेटे ने यहां से कई बार विधानसभा के साथ लोकसभा सीट पर जीत का परचम लहराया। इस सीट पर पिछड़ा वर्ग चुनावी नतीजे को प्रभावित करने में बड़ी भूमिका निभाता रहे हैं। अभी तक के चुनावी इतिहास के मुताबिक इस सीट से पिछडे़ वर्ग का उम्मीदवार आसानी से जीतता आ रहा है। ऐसे में अखिलेश यादव पीडीए फॉर्मूले के तहत चुनावी व्यूरचना तैयार कर रहे हैं। उम्मीद है कि खजुराहो सीट पर सपा पिछड़े समाज के किसी बड़े नेता को चुनावी मैदान में उतारकर चुनावी लड़ाई को रोचक बना सकती है।
लगातार कमजोर हो रहा है सपा का ग्राफ
सीट शेयरिंग में सपा ने कांग्रेस से खजुराहो से सीट ले तो ली, लेकिन यहां से कौन चुनाव लड़ेगा यह बड़ा सवाल है। सपा ने पिछली बार वीर सिंह पटेल को प्रत्याशी बनाया था। पटेल सपा और बसपा गठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी थे। वीर सिंह उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं। लोस चुनाव में भाजपा के वीडी शर्मा को 8,11,135 और कांग्रेस की कविता सिंह को 3,18,753 वोट मिले थे। जबकि सपा के वीर सिंह पटेल को 40,077 वोट मिले थे। 2014 में सपा से सिद्धार्थ सुखलाल कुशवाहा सपा प्रत्याशी थे। उन्हें 40069 वोट मिले थे। वहीं, 2023 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने एमपी की 71 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि, एक भी सीट सपा नहीं जीत पाई। इस विधानसभा चुनाव में सपा को मात्र 0.46 फीसदी वोट मिले हैं। 2018 के चुनाव के मुकाबले सपा का वोट शेयर 0.1 फीसदी घटा है। 2018 के विधानसभा चुनाव में सपा ने एक मात्र बिजावर सीट पर जीत दर्ज की थी, लेकिन बाद में सपा विधायक राजेश शुक्ला भाजपा में शामिल हो गए थे।