डॉ सुरेश खैरनार
समस्तीपुर स्टेशन पर रात को, पौने बारह बजे ! राप्ती सागर एक्सप्रेस गाड़ी छुटने के पहले, दो युवकों को बड़ी ही हडबडी में दो बोरे मेरी और सामने वाली बर्थ के निचे, बमुश्किल घुसाते हुए देखा ! और पिछे से एक आठेक साल का लड़का, पांच छ साल की बच्ची, और दो या तीन साल के और एक बच्चे को भी देखा ! तो उतने में गाड़ी चल पडी, तो हो हल्ला मचने और चेन खिंचने के कारण गाड़ी रूकी ! तो थोड़ी ही देर में एक पच्चीस – तिस साल की औरत, लंगडाते हुए, रोती हुई, मेरे सामने की सिटपर आकर बैठीं ! और तीनों बच्चों का पहले से ही रोना शुरू था ! रोते – रोते ही उसने अपने दोनों पैरों पर की चांदी की चेन खोलना शुरू किया ! तो मैंने देखा कि एक पाव के एडी के पिछले हिस्से की चमडी निकल चुकी थी ! तो मैंने तुरंत अटेंडेंट को फर्स्टएड की बॉक्स लाने के लिए कहा तो वह बोला ” कि उसके लिए पैसे लगेंगे और डॉक्टर की फिस अलग से !” तब मैंने अपने मेडिकल किटमेसे, सरसो के तेल की छोटी शिसी में से, उसकी निकली हुई चमडी पर सरसों का तेल, डाल दिया ! और उसके पति को हल्के हाथ से मलने के लिए कहा ! तबतक बच्चों का रोना कम हुआ ! और उस महिला को भी मैने कहा” कि आपको ज्यादा चोट नहीं लगीं है ! और आप गाड़ी के निचे गिरने से बच गई हो, अब रोईए मत !” तब कहीं वह संभली, तो मैंने पुछा की “कहा कि हो और कहा जा रही हो?” तो वह लड़की बोली कि “दरभंगा जिले के किसी गाँव के वह सभी चेन्नई मजदूरी करने के लिए जा रहे थे!” उसी तरह पूरी गाड़ी में कोई बरौनी, बेगुसराई, जमुई, मुंगेर, बांका, भागलपुर, झाझा, और बरौनी के आसपास के इलाकों के लोगों से पूरी ट्रेन लदकर चल रही थी ! यह लड़की की उम्र तीस साल की भी नहीं होगी, वह तीन बच्चों की माँ है ! और पहली बार अपने पति के साथ, और तीनों बच्चों को लेकर, और शायद उसका या पति का छोटा भाई भी 20 – 22 साल का, साथ में काम की तलाश में जा रहा था ! कुल छ लोगों की तीन बर्थ पर यह यात्रा चल रही थी ! साईडकी बर्थ पर चार – चार लोगों को सभी साईड बर्थ पर देखा ! जो बाद में रात को दो बर्थ के बिचमे और पेसेज में बाथरूम तक सोये हुए देखकर ! मैंने रात को पानी एक दो घुट से ज्यादा नहीं पिया ! क्योंकि बाथरूम जाने की जरूरत न हो ! और मन में आया “कि इस गाड़ी को राप्ती सागर की जगह मजदूरों के सागर नाम देना चाहिए !”
यह गाडी समस्तीपुर स्टेशन पर, सिर्फ पचास किलोमीटर के बरौनी से शुरू हुई थी ! और लगभग साढ़े तीन हजार से अधिक, किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद, इसे एर्नाकुलम को पहुंचना है ! लेकिन बरौनी से ही आधी से अधिक गाडी मजदूरों से भरी हुई थी ! और समस्तीपुर स्टेशन पर बेसुमार भीड 99 % मजदूरों की, पहले ही मौजूद थी ! और 99 %प्रवासी मजदूरों की भीड़ ने गाडी आने के बाद भर गई थी ! फिर बची – खुची जगह पचास किलोमीटर बाद के मुजफ्फरपुर के स्टेशन पर भर गई ! और आगे देखने के पहले ही हम सो गए !
लेकिन सोने के पहले बार – बार मन में यह नजारा आंखों के सामने आ रहा था ! और डॉ राम मनोहर लोहिया तथा जयप्रकाश नारायण के नाम लेकर सत्ता में आने वाले, लगभग पैंतालीस सालों से, बिहार की सत्ता पर काबिज किए हुए हैं ! दस दिन पहले ही आजादी के पचहत्तर साल मनाया गया ! लेकिन पचहत्तर साल के पस्चात भी बिहार के युवाओं को रोजगार के लिए इस तरह सुदूरवर्ती तमिलनाडु, केरल में जाने के लिए मजबूर होना पड रहा है ! डॉ राम मनोहर लोहिया ने ज्योतेगा उसकी जमीन के आंदोलन इसी बिहार में साठ साल पहले शुरूआत किया था ! उसी तरह बेरोजगार को काम की मांग और उचित मजदूरी की भी ! मुझे रह – रहकर हैरानी हो रही है कि लोहिया – जयप्रकाश का नाम लेने वाले लोगों को ! लगभग पचास साल का समय सत्ता पर आने के बावजूद ! यह स्थिति अत्यंत शर्मनाक है !
तीन साल पहले आसाम के दौरे पर गया था ! बराक वैली छोड़ कर अन्य सभी आसाम के क्षेत्र में जाना हुआ है ! वहां भी चाय बागानों से लेकर, गुवाहाटी, तिनसुकिया, दिब्रुगढ, बारपेटा, गोलपारा, तेजपुर, शिवसागर से लेकर, सभी शहरों और कस्बों तथा गांवों में भी ! बिहार तथा झारखंड के मजदूर दो करोड़ से अधिक की संख्या में काम करते हुए देखा हूँ !
अभी जून में कश्मीर की यात्रा में भी बिहार के मजदूर, और 2016 के अक्तुबर में सबसे बडे बंद के दौरान भी, जम्मू के सिमावर्ति रणजीत सिंह पूरा के बासमती चावल की फसल काटने से पहले, रोपण करने से लेकर, फसल काटकर चावल को बोरों में भरकर देने तक ! सब कुछ बिहारी मजदूरों को करते हुए देखा हूँ ! शायद आधी आबादी बिहार की काम करने के लिए, बिहार के बाहरी इलाके में जाकर काम करने का यह नजारा आजादी के पचहत्तर साल के बाद भी बदस्तूर जारी है ! मै बहुत ही हैरान-परेशान हूँ ! क्योंकि पचास वर्षों से अधिक समय से, हमारे अपने ही समाजवादी परिवार के, लोहिया – जयप्रकाश के आंदोलन से निकले हुए लोगों के हाथ में ! सत्ता की बागडोर है ! क्या कर रहे हैं, हमारे साथी ? इतने समय में अपने राज्य के लोगों को पर्याप्त काम नहीं दे सकें ? फिर सत्ता में रहने का क्या अर्थ है ? और लोहिया – जयप्रकाश का नाम लेने का, कोई नैतिक अधिकार नहीं है !
भारत के किसी भी प्रदेश की तुलना में, सबसे अधिक नदियों के रहते हुए, और सदियों से उनके द्वारा किए गए सुजलाम – सुफलाम जमीन के बावजूद यह स्थिति क्यों है ? जिस पंजाब – हरियाणा में भी बिहार के मजदूर जाकर, लगभग संपूर्ण देश के खाद्यान्न उत्पादन के लिए मेहनत करते हैं ! तो अपने घर के आसपास इस तरह की मेहनत क्यों नहीं कर सकते ? पटना में किसी पुराने बोधगया भूमिमुक्ती आंदोलन के साथीयो में से एक ने कहा “कि हम लोगो ने बोधगया में लगभग तीस हजार एकड से अधिक जमीन का आवंटन किया है ! लेकिन वही आंदोलन करने वाली जमीन पर कसने के काम में सफल नहीं हो सके !” मतलब दूसरे की जमीन पर मेहनत करने के लिए तैयार है ! लेकिन अपनी खुद की जमीन पर ठीक से उत्पादन नहीं कर सकते ! शायद पीढ़ी दर पीढ़ी सतत मजदूरों की भूमिका में रहने के कारण, अपनी खुद की जमीन कसने में फेल होने का कारण होगा ! जमीन को कसने के लिए भी जो हुनर चाहिए उसके कमी के कारण ! अपने हिस्से में आई जमीन को ठीक से ज्योत नहीं सकते ! वहीं दूसरों की जमीन फिर वह पंजाब की हो या कश्मीर कन्याकुमारी की, दुसरों के हुकुम या सुचना के कारण वहां अच्छा काम करने वाले लोगों की बुध्दी कुंद हो गई है ! सिर्फ दुसरों के कहने पर, काम करने की आदत के कारण, अपने खुद के खेतों को ठीक से ज्योत नही सकतें ऐसा मेरा अनुमान है !
और सबसे महत्वपूर्ण बात बिहार के जमीन का रेकॉर्ड ठीक से नहीं है ! यह बात अच्युतराव पटवर्धन के छोटे भाई जनूभाऊ पटवर्धन, सुजीत पटवर्धन उनके बेटे को मिलने पुणे के आई सी एस कॉलनी के मकान में जाने के बाद उन्होंने मुझे बताया था कि “तुम्हारे जयप्रकाश नारायण ने मुझे कई बार कहा” कि आप बिहार आकर जमीन का रेकॉर्ड बनाने के लिए हमें मदद किजीये ! ” इसका मतलब बीहार राज्य के पास कितनी जमीन है ? और किसी के पास कितनी है ? तभी तो सिलिंग एक्ट को लागू करना संभव हो सकता है ! मेरे हिसाब से बिहार में बेनामी जमीन कुछ चंद लोगों के पास है ! और अधिकतर लोग बेजमीन है ! और इसी कारण रोजगार के लिए संपूर्ण देश में बिहारी मजदूरों की संख्या किसी और राज्यों की तुलना में अधिक है ! जमीन का अधिग्रहण करने के बाद, उसका आवंटन भुमीहिन लोगों को करना होगा ! तभी बिहार के बेरोजगारों को स्थानीय स्तर पर, काम करने के लिए अवसर प्राप्त होगा ! और यह जो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक रोजगार के लिए भटकते हुए लोगों को अपने – अपने गांव में अपनी जिविका चलाने के लिए अपनी खेती करने के लिए विशेष रूप से ट्रेनिंग देने की आवश्यकता है ! अन्यथा बोधगया के जैसा हाल होगा !