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रानी कमलापति की यादों को आज भी ताजा कर देता है उनका महल

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भोपाल. देश का पहला वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन हबीबगंज अब रानी कमलापति के नाम से जाना जाएगा. केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश सरकार के स्टेशन का नाम बदलने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. सवाल ये है कि, आखिर रानी कमलापति पर हबीबगंज स्टेशन का नाम रखने के पीछे क्या वजह है ? रानी कमलापति का भोपाल से जुड़ा इतिहास क्या है ? राजधानी भोपाल में रानी कमलापति का महल आज भी मौजूद है. भले ही इस महल की दीवारें जीर्णशीर्ण हो गई हों, लेकिन छोटी झील के ऊपर बना यह महल रानी कमलापति की यादों को आज भी ताजा कर देता है.

रानी कमलापति का महल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है. इस महल के बारे में बताया जाता है कि यह महल परमार राजा भोज द्वारा भोपाल ताल के पूर्वी प्राचीन बांध के ऊपर बनाया गया है, जो भोज पाल के नाम से भी जाना जाता है. कालांतर में इससे वर्तमान भोपाल का प्रादुर्भाव हुआ. सन 1722 में गिन्नौरगढ़ के शासक निजाम शाह की विधवा रानी कमलापति द्वारा इसे बनवाया गया था. इस स्थान के पश्चिम छोर के नजदीक स्थित पहाड़ी पर फतेहगढ़ किले के अवशेष हैं, जिसे भोपाल के पहले शासक सरदार मोहम्मद खान द्वारा निर्मित करवाया गया था, जिन्हें आधुनिक भोपाल की स्थापना का श्रेय भी जाता है.विज्ञापन

लाखोरी ईंटों से बना है महल
यह महल नगर में 18 वीं सदी में निर्मित तत्कालीन राज्य की स्थापत्य कला का सर्वोत्तम उदाहरण माना जाता है. इस दो मंजिल महल के निर्माण में लाखोरी ईंटों का प्रयोग किया गया है, जिसका ऊपरी भाग मेहराबों तथा कमल की पंखुड़ियों से अलंकृत स्तंभों पर आधारित है. महल में सामने की ओर छज्जे बनाए गए हैं. इस महल को भारतीय पुरातात्विक स्मारक के रूप में भारत सरकार द्वारा 1989 में संरक्षित घोषित किया गया और तभी से यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की अधीन है.

ये है रानी कमलापति का इतिहास

16वीं सदी में भोपाल गोंड शासकों के अधीन था. उस समय रानी कमलापति का विवाह गोंड राजा सूरज सिंह शाह के बेटे निजाम शाह से हुआ था. सन 1710 में भोपाल की ऊपरी झील के आसपास का क्षेत्र भील और गोंड आदिवासियों ने बसाया था. तत्कालीन गोंड सरदारों में निजाम शाह सबसे मजबूत माने जाते थे. रानी कमलापति ने अतिक्रमणकारियों डटकर सामना किया था.

भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नाम अब रानी कमलापति हो गया है. शिवराज सरकार के प्रस्ताव को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंजूरी दे दी है. इस संबंध में राज्य सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा था. राज्य सरकार ने अपने प्रस्ताव में तर्क दिया था कि सोलवीं सदी में भोपाल क्षेत्र गोंड शासकों के अधीन था. गोंड राजा सूरत सिंह के बेटे निजाम शाह से रानी कमलापति का विवाह हुआ था. रानी कमलापति ने अपने पूरे जीवनकाल में बहादुरी और वीरता के साथ आक्रमणकारियों का सामना किया था.बताया जाता है कि निजाम शाह को उनके ही भतीजे आलम शाह ने जहर देकर मरवा डाला था. खुद को बचाने के लिए रानी कमलापति अपने बेटे नवल शाह के साथ गिन्नौरगढ़ से भोपाल के रानी कमलापति महल में आ गई थीं. भोपाल आकर रानी ने राजा के मित्र मोहम्मद खान से मदद मांगी. बताया जाता है कि मोहम्मद खान ने 1 लाख रुपये में राजा के कातिल की हत्या करवा दी लेकिन वादे के मुताबिक रानी रुपये नहीं दे पाईं. बदले में उन्होंने अपनी रियासत का कुछ हिस्सा मोहम्मद खान को दे दिया.

गौरतलब है कि मुगल साम्राज्य के पतन के बाद भोपाल से 50 किलोमीटर दूर बने गिन्नौरगढ़ की छोटी रियासत वजूद में आई. राजा निजाम शाह यहां के शासक थे. यहीं से रानी कमलापति की कहानी शुरू होती है. निजाम साहब गोंड राजा थे. कहा जाता है कि उनकी 7 पत्नियां थीं. इनमें से एक थी रानी कमलापति. वह राजा की सबसे प्रिय पत्नी थीं. रानी खूबसूरत होने के साथ-साथ बुद्धिमान भी थीं. आज का भोपाल उस समय का एक छोटा सा गांव हुआ करता था जिस पर निजाम शाह की हुकूमत थी.

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