अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

कभी खामोशियों की सुनो तो !

Share

0 अरुण सातले

अब खामोशियों ने भी
अपनी सांकेतिक मुद्रा में कहा-
अच्छा हो कुछ दिनों के लिए
सभी धर्म स्थलों के
पट बन्द हो जायें

सब करें अपनी इबादत,आरती,और प्रार्थनाएं, अपने अपने घर

सारी कायनात को ही मान लें
मंदिर मस्ज़िद गिरजा
और बात करें-
परिदों की,नदियों की पहाड़ों की,
जंगलों की और वहां खड़े
मुण्ड कटे पेड़ों की भी

पूछे इन सब से कि
तुम होठों पर
चुप का ताला लगाकर
कैसे निभा लेते हो,
बड़ी खामोशी से अपना धर्म

फिर सोचें
परिंदों की विलुप्त होती
प्रजातियों के बारे में
नदी की निर्जला आँखों में झाँक
धधकती रेत में झुलसी
उसकी देह को देखें.
सफाचट होते जंगलों में
पेड़ों की उखड़ती जड़ों के बारे में सोचें

तब तुम्हें दुनिया के हुक्मरानों के
होठों पर चुप के ताले लटके मिलेंगे

कभी तुम अपनी
खामोशियों की बातें सुनो तो !
कुछ देर संवाद करो
अपनी ख़ामोशियों से भी.
0 अरुण सातले

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें