अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

हर युग में नियत है,अधर्म और अधिनायकवाद का अंत?

Share

शशिकांत गुप्ते

महाभारत में जबतक अधर्म का पलड़ा भारी था, तबतक राजदरबार में खेली जा रहीं द्युतक्रीड़ा में चौसर के खेल में धर्मराज पराजित होता रहा। धर्मराज कुटिलता भरे दांवपेंच समझ न सका, और उन्होंने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। अधर्म की पराकाष्ठा का प्रमाण,भरी सभा में स्त्री का चीर हरण करने की गुस्ताखी की गई। तात्कालिक आचार्य चीर हरण के प्रत्यक्ष दर्शी बने। सम्भवतः वे शपथ से बंधे थे,या राज ‘अ’ नीति की परिभाषा में यूँ कहा जाए कि, वे सभी आचार्य,आचार संहिता का पालन करने के लिए बाध्य थे।
भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी अदृश्य शक्ति से द्रोपदी की सहायता की थी।
आज भारत में बगैर चौसर खेले सरकारी सम्पतियाँ दांव पर लग रही है। हरतरह के खेल की प्रतिस्पर्धा में प्रतिस्पर्धी तो होता या होतें ही हैं, लेकिन आज बगैर प्रतिस्पर्धी खेल खेला नहीं जा रहा है,और खेल हो रहा है, उसमें प्रतिस्पर्धी मौजूद है, लेकिन उसके अपने सहयोगि खिलाडी गुप्त रूप से तफ़रीह करने निकल पडतें हैं। तफरीह का मतलब होता है, मन-बहलाव हेतु इधर-उधर घूमना-फिरना, सैर-सपाटा करना।
मौजूदा प्रतिस्पर्धी के सहयोगी खिलाड़ियों को तफ़रीह के लिए वातानुकूल, विलासितापूर्ण सुविधाएं अदृश्य रूप से मुहैया होती है। यह जो अदृश्य रूप से मुहैया पाँच सितारा स्तर की सुविधाओं में जो व्यय होता है,इस व्यय के लिए लगने वाले धन का रंग श्वेत या श्याम होता है, यह प्रश्न उपस्थित करना व्यर्थ है?
यह प्रश्न उपस्थित करना सिर्फ व्यर्थ ही नहीं है बहुत जोख़िम भरा भी है। बहुत सी बातें Understood (अंदर खाने) होती है।
राज को राज ही रहने दो। कारण यहाँ सिर्फ राज ( गुप्त छिपी हुई बात) है, नीति का कोई सम्बंध नहीं है।
जब खेल में कोई प्रतिस्पर्धी ही न हो,ऐसे खिलाड़ी के चाहने वालें सिर्फ स्तुति गान करने वालें हों, खेल के अदने से लेकर सर्वोच्य निर्णायक भी खिलाड़ी के पक्षधर हो, साथ ही खिलाड़ी के स्वयं के अपने सारे सहयोगी खिलाड़ी Yes men हो तो खिलाड़ी कैसे पराजित हो सकता है।
एकाधिकार, एकाधिपत्य, अधिनायकवाद आदि शब्दों में निहित क्रिया व्यवहारिक जामा पहनलें और इसे सारे yes men सहर्ष स्वीकार कर ले तब कोई भी प्रतिस्पर्धी सामना करने का साहस कर पाएगा?
संस्कृत का प्रसिद्ध लघु सूत्र है।
अति सर्वत्र वर्जयेते क्या अभी अति की संतृप्ति नहीं हुई है। संतृप्ति मतलब पूर्णतः तृप्त होना। संतृप्ति को सरलता से समझने के बोलचाल की भाषा में Sauration कहतें हैं।
जब प्रकृति अपनी क्षमता को दर्शाती है तब संतृप्ति अपने चरम बिंदु पर आती है, तब प्रकृति अपने विपरीत आचरण करने वालों की उल्टी गिनती शुरू कर देतीं हैं।
व्यवहारिक उदाहरण के साथ समझने के लिए यूँ समझा जाए कि, कोई वाहन चालक अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए बेतहाशा गति मतलब Recklessly speed से वाहन चलाता है, तो स्वाभाविक ही लापरवाही हो जाती है। दृघटना से देर भली वाली सावधानी बरतने की सलाह देने वाली सूचना पट्टिका नजरअंदाज हो जाती है। ऐसे दुर्घटना में चालक के साथ वाहन में सवार सहयात्री किसी शायर के इस कथन को हम तो डूबेंगे,सनम तुम को भी ले डूबेंगे चरितार्थ करने में सहयोगी बनतें हैं।
अभी संतृप्ति आ तो गई है,प्रतिस्पर्धी को सावधनी बरतते हुए संयमित गति से अपना मानसिक वाहन चलना चाहिए। प्रतिस्पर्धी के लिए ‘U’ यूँ टर्न आ गया है। प्रायः U टर्न पर वाहन को टर्न लेने में देर लगती है,लेकिन जैसे ही U टर्न पूरा घूम जाता है,तो वाहन सुरक्षति रूप से बगैर किसी अवरोध के गंतव्य स्थान पर पहुँच जाता है।
जो स्वयं को अजय समझने के भ्रम में रहता है। उसकी स्थिति खरगोश और कछुए की रेस के परिणाम जैसी हो जाती है।
अंतः कछुआ ही जीतता है।
विचारक चिंतक कहतें हैं हमेशा सकारात्मक सोच बनाएं रखों।
सकारात्मक मतलब Positive.
positive शब्द का प्रयोग करतें समय सावधानी बरतना अनिवार्य है। कारण अभी कोरोना पूर्णतया समाप्त नहीं हुआ है। महामारी में positive शब्द भयंकर नकारात्मक हो गया था।
महामारी कैसी भी हो हमेशा लड़ना है,डरना नहीं हैं।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें