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व्यास सम्मान !साहित्य में सब कुछ सिर्फ भला-भला न है

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चंद्रशेखर शर्मा

किसी साहित्यिक समारोह में जाओ तो कुछ अलग ही फीलिंग आती है। वहां हर तरफ सब कुछ बहुत भला-भला नजर आता है ! कल शाम एक ऐसे ही सम्मान समारोह में अपना जाना हुआ। 

इंदौर के लिए यह गर्व की बात है कि इंदौर के साहित्यकार और इतिहास के प्रोफेसर रहे शरद पगारे को उनके उपन्यास ‘पाटलिपुत्र की साम्राज्ञी’ के लिए देश के प्रतिष्ठित पुरस्कार व्यास सम्मान 2020 से नवाजा गया है। आप मेरे बहुत सुदर्शन और सज्जन मित्र, वरिष्ठ पत्रकार व क्रिकेट कमेंटेटर सुशीम पगारे के पिताजी हैं। दरअसल 2020 का यह सम्मान समारोह कोविड महामारी के कारण इतने विलम्ब से कल इंदौर प्रेस क्लब के सभागार में हुआ। यह पुरस्कार अथवा सम्मान केके बिड़ला फाउंडेशन द्वारा दिया जाता है। 

कल इस सम्मान समारोह में श्री पगारे के अलावा फाउंडेशन के सदस्य सचिव सुरेश ऋतुपर्ण, देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर रेणु जैन, इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी और ख्यात क्रिकेट कमेंटेटर सुशील दोषी मंच पर विराजित थे। सामने बड़ी संख्या में साहित्यकार, पत्रकार और अन्य गणमान्यजन। कार्यक्रम में अतिथि बतौर ताई यानी सुमित्रा महाजन का भी नाम था, लेकिन पता नहीं क्यों वे नहीं आईं। जो हो। 

पत्रकार और साहित्यकार मुकेश तिवारी ने मंच से शरद पगारे के व्यक्तित्व पर बात रखी। बताया कि श्री पगारे मूलतः खंडवा के रहने वाले हैं और आचार्य माखनलाल चतुर्वेदी की प्रेरणा से ही साहित्य साधना में रत हुए। उनके उपन्यास ‘पाटलिपुत्र की साम्राज्ञी’ के बारे में बताया गया कि यह सम्राट अशोक की मां सुभद्रांगी (रानी धर्मा) के बारे में है। जानने लायक बात यह भी है कि पालन-पोषण की दिक्कत के चलते कोई इनको बचपन में ही तत्कालीन राजदरबार में लावारिस छोड़ गया था। बाद में वो महल की सामान्य परिचारिका से लेकर महारानी के पद तक पहुंचीं ! फिर उन्हीं की कोख से चक्रवर्ती महान सम्राट अशोक जन्मे थे। वो कहते हैं न नियति के खेल निराले ! बेशक साढ़े पांच सौ पेज की यह पुस्तक अवश्य पठनीय होगी। 

हां, जहां तक पुरस्कार या सम्मान की बात है तो अन्य विधाओं की तरह साहित्य में दिए जाने वाले पुरस्कारों पर भी सवाल और अंगुलियां उठने लगी हैं ! यदि ऐसा नहीं है तो फाउंडेशन के सचिव सुरेश ऋतुपर्ण को वो सब ‘सफाई’ बखानने की कोई जरूरत न थी, जो उन्होंने बहुत समय और श्रम से कल बखानी ! उनका ज्यादातर वक्तव्य सम्मान के लिए अपनायी जाने वाली चयन प्रक्रिया को विस्तार से सामने रखने पर था अलबत्ता वो बहुत प्रभावी और संतुष्टिदायक था। उधर, कुलपति प्रोफेसर रेणु जैन के पास से बोलने-बताने को कुछ खास बरामद नहीं हुआ और यह अफसोस की बात थी और हैरानी की भी !

शरद पगारे कई पुस्तकें लिख चुके हैं। कल उन्होंने लेखन के कई टिप्स आगे किये। आगे कहा कि इतिहास के चर्चित किरदारों पर काफी लिखा गया है, लेकिन मैं ऐसे किरदारों पर लिखता हूँ जो कहीं दफन हैं या जिनके बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी न है। उनका कहना था कि जब दूसरे लोग लिखकर महान हो सकते हैं तो हम भी हो सकते हैं। यद्यपि इस सिलसिले में आपने जिन महान लेखकों के नाम सामने किये, वो सब विदेशी थे ! गोया तुलसीदास और वेद व्यास से लेकर मुंशी प्रेमचंद तक किसी का भी उन्हें स्मरण न हुआ। खैर।

 समारोह का संचालन पत्रकार श्रुति अग्रवाल के जिम्मे था और आभार डॉक्टर अर्पण जैन ने व्यक्त किया। श्री पगारे को सम्मान स्वरूप चार लाख रुपये की राशि भी फाउंडेशन की ओर से भेंट की गई। समारोह के बाद कुछ मित्रों के साथ चाय पीते हुए अपना भी लालच जागा ! इसके चलते अपन ने इंदौर के ख्यात लघु कथाकार प्रोफेसर योगेन्द्रनाथ शुक्ल से याचना की कि ‘सर, मुझे भी लघु कथा लिखना सिखा दीजिये !’ मन में लालच था कि चार लाख न सही, पर इस बहाने अपने को भी कहीं से चार पैसे की उम्मीद हो जाये। अलबत्ता याचना सुनते ही साथी पत्रकार और साहित्यकार मुकेश तिवारी ने तुरंत प्रोफेसर शुक्ला से कहा कि ‘सर, इनको (इस नाचीज को) बिलकुल और किसी सूरत मत सिखाना !’ जाहिर है अपनी लेख के शुरू में दर्ज धारणा फौरन धड़ाम थी ! झट साफ था कि साहित्य में सब कुछ सिर्फ भला-भला न है !

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