नई दिल्ली। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने भारतीय घरेलू बाजार और उसमें भी लघु एवं काटेज उद्योग से जुड़े तमाम सामानों के बाजार पर चीन का या तो कब्जा हो गया है या फिर उससे तगड़ी प्रतियोगिता में है। निर्माण क्षेत्रों के नाम जो बताए गए हैं उनमें छाता, शीशे के बर्तन, हैंडबैग और कॉस्मेटिक से जुड़े सामान शामिल हैं।
इन क्षेत्रों में चीनी सामानों के आयात के चलते तकरीबन 90 फीसदी छाता, नकली फूल, इंसानों से जुड़े बालों जैसे भारत में इस्तेमाल होने वाले स्थानीय उत्पादों के बाजार पर उसका कब्जा हो गया है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि शीशे के सामानों, चमड़ा और खिलौनों की श्रेणी वाले भारतीय बाजार में चीन की हिस्सेदारी बढ़कर 50 फीसदी हो गयी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन भारत की जरूरतों का 95.8 फीसदी छाता सप्लाई करता है। जिसकी कीमत तकरीबन 31 मिलियन डॉलर है।
इसके साथ ही 91.9 फीसदी नकली फूल और इंसानी बालों से जुड़े सामान की वह सप्लाई करता है। इनकी कीमत 14 मिलियन डॉलर है। शीशे के सामानों के क्षेत्र में चीन का हिस्सा बढ़कर 59.7 फीसदी हो गया है। हैंडबैग में 54.3 फीसदी जबकि खिलौनों में यह भागीदारी 52.4 फीसदी हो गयी है।
यहां तक कि चीनी मिट्टी के उत्पादों की श्रेणी में यह हिस्सेदारी 51.4 फीसदी है। और इसकी कीमत कुल 232.4 मिलियन डॉलर है। इसी तरह से संगीत वाद्ययंत्रों में भी चीन ने अपनी घुसपैठ बना ली है। इसके 51.2 फीसदी भारतीय हिस्से को चीन ने अपने हाथ में ले लिया है। इससे उसे 15.7 मिलियन डॉलर की आय होती है। एक दौर में इन सामानों पर भारतीय उत्पादों का वर्चस्व हुआ करता था।
रिपोर्ट कहती है कि इसके अलावा अब पेपर और पेपर बोर्ड के क्षेत्र में भी चीन ने अच्छी खासी दखल बना ली है। इसमें चीन की हिस्सेदारी 24.7 फीसदी हो गयी है और उसे इस समय इस क्षेत्र से 371.5 फीसदी की आय हो रही है। इसके साथ ही शरीर में इस्तेमाल होने वाले तेल और कॉस्मेटिक्स पदार्थ भी अब चीन की पहुंच से अछूते नहीं रहे।
इसमें उसकी क्रमश: 24 फीसदी और 21.6 फीसदी हिस्सेदारी हो गयी है। आय के हिसाब से पहले में 160.8 मिलियन डालर की आय हो रही है और दूसरे में 22.2 मिलियन डॉलर की। उद्योग के इन क्षेत्रों में भारतीय सामान हांफते दिख रहे हैं।
रिसर्च संस्था ने बताया कि चीनी सामानों के आयात पर ज्यादा भरोसे ने बाजारों में भारतीय सामानों की गिरावट की गति को बहुत तेज कर दिया है। इसके चलते एमएसएमई के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। संस्था का कहना है कि इसके चलते भारत की आर्थिक संप्रभुता के लिए भी खतरा पैदा हो गया है।