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नाकाम प्रभुराम …….. उठने लगे विरोध के स्वर

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भोपाल। सूबे के स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर प्रभुराम चौधरी अपने इस कार्यकाल में अब तक पूरी तरह से नाकाम साबित हो रहे हैं। उनकी नाकामी अब पूरी सरकार के साथ ही जनता पर भी भारी पड़ रही है। हालत यह है  कि कोरोना की इस भीषण महामारी के बाद भी न तो वे मैदान में नजर आ रहे हैं और न ही बेहतर इलाज दिलवाने के लिए कोई कदम उठाते नजर आ रहे हैं। मजबूरन अब सरकार के मुखिया को पूरी तरह से उनके विभाग का कामकाज खुद ही देखना पड़ रहा है। चौधरी कोरोना को लेकर कितने गंभीर है इससे ही समझा जा सकता है कि वे पूरे एक माह स्वास्थ्य सेवाओं की जगह दमोह उपचुनाव में प्रचार करते रहे।
हालत यह है कि वे अब तक पूरी तरह से प्रशासनिक रुप से भी अक्षम साबित हो रहे हैं। इसका उदाहरण बीते रोज का वह घटनाक्रम है, जब उनके सामने ही हेल्पलाइन के नंबर पर लगातार कई प्रयासों के बाद भी किसी ने फोन तक रिसीव नहीं किया। इस लापरवाही के मामले में चौधरी दिखवाने का आश्वासन रुपी झुनझुना पकड़ाते रहे। यही वजह है कि अब तो सत्तारुढ़ दल के जनप्रतिनिधि भी अपनी ही सरकार की नाकामी पर नाराज होने लगे हैं। यही नहीं हाल ही में मुख्यमंत्री द्वारा जिलों का प्रभार देकर मंत्रियों को बेहतर व्यवस्थाएं बनाने का दायित्व सौंपा जा चुका है , इसके बाद भी व्यवस्थाओं में कोई सुधार नहीं हो रहा है। इसकी वजह है मंत्रियों द्वारा भी विशेष रुचि न लेना। यही वजह है कि भोपाल और इंदौर जैसे शहरों में हालात जस के तस बने होना। डॉ चौधरी ऐसे मंत्री है जो कोरोना के बेहद गंभीर संकट के समय भी दमोह में कोरोना गाइड लाइन का उल्लंघन करते हुए चुनाव प्रचार में डटे रहे। होना यह चाहिए था कि वे चुनाव प्रचार की जगह भोपाल में रहकर बेहतर इलाज की व्यवस्था में लगते। यही नहीं दूर दराज अंचल के अस्पतालों में जाकर औचक निरीक्षण कर व्यवस्थाओं की हकीकत का पता लगाते, लेकिन उन्हें लगता है कि आम आदमी से अधिक चुनाव प्रचार की पड़ी हुई थी। मीडिया ने जब उनसे ऑक्सीजन और रेमडेसिविर इंजेक्शन की कमी के बारे में पूछा तो उनका कहना है कि इसकी कोई कमी नहीं है। जब मंत्री को ही वास्तविकता का पता न हो तो उस विभाग का भगवान ही मालिक है। शायद मंत्री महोदय न तो समाचार पत्र पढ़ते हैं और न ही टीवी पर समाचार देखते हैं, अन्यथा उन्हें वास्तविकता पता होती। लगता है कि विभागीय अफसर भी शायद उन्हें कोई जानकारी देना उचित नहीं समझते हैं। आॅक्सीजन की कमी की बात तो जब स्वयं ही मुख्यमंत्री स्वीकार कर रहे हैं तो मंत्री जी पर्याप्त होने का कैसे दावा कर रहे हैं लोगों को समझ नहीं आ रहा है। लगभग यही स्थिति रेमडेसिविर इंजेक्शन की भी बनी हुई है। दवा बाजार में सौ में से 90 लोग इसी रेमडेसिविर इंजेक्शन की तलाश में कई-कई दिनों से भटकते देखे जा सकते हैं। खास बात यह है कि इसके लिए जिम्मेदार अफसरों का मिलना तो दूर फोन तक नहीं उठाना बताता है कि प्रशासनिक तंत्र में हर जगह भांग घुली हुई है। लोग इसे अब सरकार की असफलता से जोड़कर देख रहे हैं।
विश्नोई व पवैया ने खड़े किए सवाल
हालत यह हो चुकी है कि अब तो खुद की ही पार्टी के नेता भी कालाबाजारी और तमाम अव्यवस्थाओं को लेकर सवाल खड़े करने लगे हैं। भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री अजय विशनोई ने कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री के सामने बैठक में अफसरों की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े किए थे, इसके बाद एक बार उनके द्वारा सोशल मीडिया पर आॅक्सीजन की कमी को लेकर सवाल खड़ा किया गया है। उन्होंने लिखा है कि अप्रैल के पहले सप्ताह में महराष्ट्र में 50 हजार मरीज होने के बाद 457 टन आॅक्सीजन खर्च हुई , तो इस अवधि में मप्र में 5 हजार मरीजों पर 732 टन आॅक्सीजन कैसे खर्च हुई। इसी तरह से भाजपा के ही दूसरे वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया ने ट्वीट कर लिखा है कि लॉकडाउन के नाम पर भयादोहन कर जरूरी और रोजमर्रा की वस्तुओं की मनमानी कीमतें वसूलने वालों पर सख्त कार्रवाई जरुरी है। हालांकि इसके साथ ही उनके द्वारा मुख्यमंत्री और प्रशासनिक अमले की तारीफ भी इस ट्वीट में की गई है।
लक्ष्मण सिंह सरकार के पक्ष में
खास बात यह है कि इस महामारी को लेकर कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह पूरी तरह से सरकार के बचाव में खड़े नजर आ रहे हैं। उनके द्वारा सोशाल मीडिया पर लिखा गया है कि कोविड से केवल जनता ही लड़ सकती है। सरकार, नेता और अधिकारी नहीं।
अब तक नहीं बने कोविड केयर सेंटर
कोरोना के पहले दौर में बीते साल सरकार द्वारा बेहद अच्छे कदम उठाते हुए तमाम जगहों पर कोविड केयर सेंटर बनाए गए थे, यही नहीं इलाज की भी समुचित व्यवस्थाएं की गई थीं। इन अस्पतालों में सरकार के खर्च पर फ्री में इलाज की सुविधा थी। लेकिन इस बार सरकार ऐसे कदम अब तक नहीं उठा सकी है।

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