जिस -जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद
जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
सीमित पग डग, लम्बी मंज़िल, तय कर लेना कुछ खेल नहीं
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते, सम्मुख चलता पथ का प्रमाद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद
साँसों पर अवलम्बित काया, जब चलते-चलते चूर हुई,
दो स्नेह-शब्द मिल गये, मिली नव स्फूर्ति, थकावट दूर हुई
पथ के पहचाने छूट गये, पर साथ-साथ चल रही याद
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद….
साभार – सुप्रसिद्ध कविवर श्री शिवमंगल सिंह ‘सुमन
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संकलन व संपादन – निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र,संपर्क -9910629632