मुनेश त्यागी
अगर दुनिया भर के पिछले साठ सालों के क्रांतिकारी समाजवादी व्यवस्था के इतिहास पर नजर डालें तो इसमें सबसे ऊपर क्यूबा के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति क्रांतिकारी फिदेल कास्त्रो का नाम ही आता है जिन्होंने अपने महान क्रांतिकारी कामों से सारी दुनिया के समाजवादी इतिहास को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। आज यानी 25 नवंबर को पूरी दुनिया में क्यूबा के महान क्रांतिकारी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति कॉमरेड फिदेल कास्त्रो की पुण्यतिथि मनाई जा रही है। उनका जन्म 13 अगस्त 1926 को हुआ था। फिदेल कास्त्रो के पिता स्पेन के निवासी थे। वे काफी समय पहले एक मजदूर के रूप में क्यूबा में आ गए थे और क्यूबा में आकर वह एक बहुत बड़े सामंत और जमींदार बन गए थे और एक लाख 1,15,600 बीघा जमीन के मालिक बन जाते हैं। फिदेल कास्त्रो इन्हीं के पुत्र थे।
फिदेल कास्त्रो जन्म से ही विद्रोही प्रवृत्ति के बच्चे थे जो लगातार संघर्षों के बाद में एक क्रांतिकारी और मार्क्सवादी लेनिनवादी क्रांतिकारी के रूप में परिवर्तित हो गए। फिदेल कास्त्रो ने 1956 में अपने 82 साथियों के साथ क्यूबा पर हमला किया और पहले हमले में उनके 70 साथी मारे गए और कुल 12 साथी बच पाए।बाद में जाकर इन्हीं 12 साथियों ने क्रांतिकारियों ने क्यूबा की जनता को एकजुट किया, वहां पर क्रांतिकारी सशस्त्र संघर्ष चलाया और 1 जनवरी 1959 को क्यूबा में क्रांति कर दी और जनता ने क्यूबा में क्रांतिकारी परचम फहरा दिया और क्यूबा में पहली समाजवादी सरकार की शुरुआत की। क्रांति के बाद फिदेल कास्त्रो क्यूबा पहले प्रधानमंत्री बने।
क्यूबा की क्रांतिकारी समाजवादी सरकार बनने के बाद अपनी पूर्व घोषित नीतियों के अनुसार फिदेल कास्त्रो की सरकार ने 17 मई 59 को कृषि सुधार कानून पास किया और अपने बाप की 1,15,600 बीघा जमीन समेत क्यूबा की सारी जमीन का राष्ट्रीयकरण कर दिया, उसे किसानों में बांट दिया। यह दुनिया में किसी क्रांतिकारी का अब तक का सबसे बड़ा बलिदान और त्याग है।
यहां पर मार्के की बात यह है कि फिदेल कास्त्रो की इस नीति का उनके परिवार के सदस्य उनकी माताजी, उनकी बहन और दो भाई परिवार की संपत्ति का राष्ट्रीयकरण करने का विरोध कर रहे थे। इसे लेकर विवाद इतना बढ़ गया था कि उसके परिवार वालों ने फिदेल कास्त्रो को सामने आने पर गोली मारकर जान से मारने की घोषणा कर दी थी। मगर फिदेल कास्त्रो ने उनके विरोध को दरकिनार करते हुए, क्रांति के दौरान दिए गए अपने वायदे को पूरा किया और अपने पिताजी की सारी जमीन का राष्ट्रीयकरण करके जनता में बांट दिया। परिवार का विरोध भी उन्होंने झेला। क्रांतिकारी फिदेल कास्त्रो ने अपने परिवार के विरोध की कोई परवाह नहीं थी और उन्होंने इस विरोध को क्रांति के रास्ते में नहीं आने दिया।
क्यूबा की क्रांति ने सबसे पहले मनुष्य के शोषण के खात्मे की घोषणा की ।1961 में सर्व शिक्षा के लिए 1,00,000 छात्रों को इस काम में लगा दिया, 1961 में क्रांति के समाजवादी होने की घोषणा की और 2 दिसंबर 1961 को फिदेल कास्त्रो ने सार्वजनिक ऐलान किया कि “मैं सदा मार्क्सवादी लेनिनवादी रहूंगा।” 1962 में 10 लाख क्यूबा के लोग घोषणा कर देते हैं कि एक क्रांतिकारी का कर्तव्य है कि वह कांति करें।
2001 में फिदेल कास्त्रो वर्ल्ड सोशल फोरम में घोषणा करते हैं कि रंगभेद, नस्ली भेदभाव, नफरत और असहनशीलता मानवीय प्रवृत्तियां नहीं है, ये समाज,संस्कृति और राजनीति की देन हैं। 2003 में 80 लाख क्यूबावासी नेशनल एसेंबली को एक याचिका देते हैं कि समाजवाद अपरिवर्तनीय है।
फिदेल कास्त्रो ने 2007 में कहा था कि बिना विचारों के जीवन अर्थहीन है। कास्त्रो क्रांतिकारी विचारों की मशाल थे। उन्होंने रेडियो और टीवी का, क्रांति के विचारों और कारनामों को गांव-गांव के कोने में ले जाने के लिए देश के हर कोने में ले जाने के लिए प्रयोग किया। वे अमेरिकी साम्राज्यवाद का सतत विरोध करते रहे। फिदेल कास्त्रो एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमरीका और पूरी दुनिया के गरीबों, शोषितों पीड़ितों और वंचितों की आवाज बन गए। वे अपने भाषणों में सदैव ही सतत क्रांति यानी कोन्सटैंट रिवोल्यूशन का उद्घोष करते रहे। उनके इन उद्घोषों का क्यूबा की जनता पर प्रभाव पड़ा और वह क्रांति के 63 साल बाद भी आज सतत क्रांति के मार्ग पर चल रही है और पूरी दुनिया में क्रांति की मशाल जलाए हुए हैं।
उन्होंने कहा कि क्रांति एक कला है और एक राजनीति भी। वह निष्पक्ष और मानवीय वैश्वीकरण चाहते थे। वे कहते थे कि सारी दुनिया के क्रांतिकारी हमारे भाई हैं। उनका कहना था कि शांतिपूर्ण तरीकों से क्रांतियां नहीं हुआ करती और असली क्रांति सत्ता पर कब्जा करने से होती है। असली क्रांति के लिए किसी भी देश के किसानों और मजदूरों को वहां की राजसत्ता और अर्थव्यवस्था पर कब्जा करना होता है और वहां की सरकार, राजसत्ता, राजनीति और अर्थव्यवस्था को सारी जनता और किसान मजदूरों के हितों को आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करना होता है।
कास्त्रो कहा करते थे कि आदमी और मानवजाति में विश्वास करने वाला ही सच्चा क्रांतिकारी हो सकता है और जनता के सहयोग से सब कुछ किया जा सकता है,जीता जा सकता है। फिदेल कास्त्रो एक दार्शनिक, कर्म योगी, सिद्धांतकार, जनसेवक और महान क्रांतिकारी थे। उनका मानना था कि असली क्रांति किसानों और मजदूरों द्वारा सत्ता पर कब्जा करने से ही होती है, श्रेष्ठ विचार ही, सारी दुनिया को बेहतर, न्यायपूर्ण एवं भ्रातृत्वपूर्ण बना सकते हैं।
वे कहां करते थे कि क्रांतिकारी विचारधारा और क्रांति का प्रचार प्रसार, क्रांतिकारी संघर्ष की आत्मा है, अत्याचार के विरुद्ध विद्रोह करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और अच्छे लोग एक होकर अजय बन सकते हैं। उनका मानना था कि वंचितों, गरीबों उत्पीड़ितों, अभावग्रस्तों को असली न्याय, सशस्त्र क्रांति से ही मिल सकता है, हरेक क्रांतिकारी का फर्ज है कि वह क्रांति करें, सारी दुनिया के क्रांतिकारी हमारे भाई हैं, वे एकजुटता और भाईचारे का वैश्वीकरण चाहते थे।
फिदेल कास्त्रो सामाजिक न्याय के चैंपियन थे। वे अमेरिका को सबसे ज्यादा प्रतिक्रियावादी और क्रांति विरोधी मानते थे। अमेरिका फिदेल कास्त्रो से कितना डरता था, कितना भयभीत था, कि उसने क्यूबा के इस जनप्रिय नेता फिदेल कास्त्रो को अपनी सीआईए के द्वारा 638 बार मारने की कोशिश की, मगर अपने क्रांतिकारी साथियों की जागरूकता की बदौलत फिदेल कास्त्रो हमेशा उनके हमलों से, उनकी साजिशों से बचते रहे।
फिदेल कास्त्रो ने सत्ता का कभी भी दुरुपयोग नहीं किया। उन्होंने क्रांतिकारी सत्ता और सरकार का इस्तेमाल अपनी सारी जनता की, किसान और मजदूरों की बेहतरी के लिए किया। उन्होंने अपनी सत्ता के द्वारा क्रांति की रक्षा की, लोगों को लड़ना पढ़ना और संघर्ष करना सिखाया। उन्होंने सत्ता का दुरुपयोग नहीं किया और सत्ता को कभी भी अपने व्यक्तिगत हितों और स्वार्थों या अपने परिवारिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि क्रांतिकारी कामों को आगे बढ़ाने के लिए, सत्ता की सबसे ज्यादा जरूरत होती है और अगर आदमी जागरूक और क्रांतिकारी है तो सत्ता उसे कभी भी भ्रष्ट नहीं कर सकती और बेईमान नहीं बना सकती।
उनका कहना था कि क्रांति के दुश्मनों को कोई आजादी नहीं है, क्रांति केवल संस्कृति, संघर्षों और विचारों से ही हो सकती है। उनका मानना था कि क्रांति में निरंतरता बनी रहनी चाहिए, यानी सतत क्रांति के बिना क्रांतियां जिंदा नहीं रह सकतीं। उनका मानना था कि हर एक क्रांतिकारी का कर्तव्य है कि वह सीखना, जानना, पढ़ना, संघर्ष करना और अध्ययन करना अपना नियम बनाएं। वे पूरी दुनिया के लिए न्याय चाहते थे, समानता चाहते थे, आजादी चाहते थे। उनका मानना था कि मानवता मातृभूमि से भी पहले आती है, हम निष्पक्ष और मानवीय वैश्वीकरण और उदारीकरण चाहते हैं। हम शोषक और प्रभुत्वकारी वैश्वीकरण के विरोधी हैं।
फिदेल कास्त्रो विचारों की एक बहुत बड़ी श्रंखला, कामों की एक बहुत बड़ी श्रृंखला, हमारे सामने छोड़ गए हैं कि किस तरह से क्रांति के कारवां को आगे बढ़ाया जा सकता है, किस तरह से सत्ता का प्रयोग, जनता के कल्याण के लिए किया जा सकता है, किस तरह से क्रांति करके सबको रोटी, सबको कपड़ा, सबको मकान, सबको सुरक्षा, सबको इलाज, सबको रोजगार,और सब की सुरक्षा की जा सकती है और सारी जनता में भाईचारा, एकता और मानवता पैदा की जा सकती है और सारे देशवासियों को इस तरह से वैश्विक नागरिक बनाया जा सकता है जो सारी दुनिया के कल्याण के बारे में सोच सकते हों और सारी जनता के कल्याण के बारे में सोच सकते हों।
फिदेल कास्त्रो एक बहुत बड़े लेखक और भाषण करते थे यूएनओ में दिया गया उनका शादी 4 घंटे का आज तक का सबसे लंबा भाषण है इन्हीं भाषणों की बदौलत सीरियल कास्त्रो ने क्रांति और समाजवाद की मशाल को दक्षिणी अमेरिका के सारे देशों में फैलाया और बहुत सारे शहरों में क्रांति की मशाल जलाई और भाषण दिया उनके भाषण विभिन्न भाषाओं में अनुवादित करके संरक्षित किए गए हैं। कास्त्रो एक बहुत बड़े लेखक थे उन्होंने कई किताबें लिखी जैसे 1.इतिहास मुझे सही साबित करेगा, 2.फेस टू फेस, 3.आधी सदी गवाह है, 4.पूंजीवाद एक विराट जुआघर है, 5.मेरा जीवन, 6.फिदेल कास्त्रो रीडर और सैंकड़ों की संख्या में उनके द्वारा दिए गए बेहतरीन भाषण।
फिदेल कास्त्रो भारत की जनता से विशेष रुप से प्यार करते थे। गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भाग लेने के लिए जब वे भारत आए तो उन्होंने उस समय की गुटनिरपेक्ष देशों की अध्यक्षा श्रीमती इंदिरा गांधी का गर्मजोशी से स्वागत किया और उन्हें अपनी बहन मानने लगे। इसके बाद इंदिरा गांधी से हर साल में राखी बंधवाने लगे और इंदिरा गांधी की अकाल मृत्यु तक पहुंची यानी राखी बंधवाते रहे।
फिदेल कास्त्रों के इन्हीं गुणों और विचारों से हमें सीखने की जरूरत है और उनके वैश्विक क्रांति के अधूरे मिशन को आगे बढ़ाने की जरूरत है, अपने देश के पैमाने पर भी और वैश्विक पैमाने पर भी। अगर हम फिदेल कास्त्रो के बताए इन रास्तों पर चलेंगे तो सचमुच हम एक शोषणरहित, अन्यायरहित, भेदभावरहित और मानवीय दुनिया बना सकते हैं। दुनिया के इस महान क्रांतिकारी और विराट व्यक्तित्व फिदेल कास्त्रो के लिए हमारी यही सच्ची और क्रांतिकारी श्रद्धांजलि होगी।