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लाशों पर राजनीति का उत्सवी माहौल

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सुसंस्कृति परिहार

 इन दिनों जलती चिताओं के बीच लोकतंत्र के पर्व के उत्सव का बड़ा बेरहम माहौल है ।एक तरफ आक्सीज़न को तड़फते मरीज  दम तोड़ रहे हैं तो दूसरी और हमारे साहिब जी चुनाव के इस लोकतांत्रिक पर्व पर रैलियों में एकत्रित भीड़ को भाजपा को मत देने और विपक्ष का खात्मा करने का आव्हान चीख चीख कर ,कर रहे हैं ।उनकी इन चीखों में रोते बिलखते हज़ारों हज़ार लोगों की चीख दबा दी जा रही है। उनके तमाम भोंपू एक साथ सक्रिय हो जाते हैं साहिब की चीखती आवाज सुनाने ।   

        ‌‌‌याद आता है गुजरात का 2002का दंगा जब वहां साहिब मुख्यमंत्री थे और राज्य के गृहमंत्री उनके मोटा भाई थे ।तब लगभग 3000 लाशों पर राजनीति जो राजनैतिक अध्याय की शुरुआत हुई उसी का प्रतिफल साहिब को देश का नेतृत्व मिला और मोटा भाई ने पार्टी की ऐसी अगुवाई की कि भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई।आज वे गृहमंत्री पर शोभायमान है जिनकी तरक्की का इतिहास फ़साद से हो ,वो लाशों से क्यों तड़फने वाला। उन्हें सिर्फ और सिर्फ सत्ता चाहिए। इसीलिए चुनाव नहीं टल सकते या एक चरण में नहीं हो सकते । बहुत पहले फिल्मों में नेताओं की हकीकत कुछ यूं बताई जाती थी कि रात में गरीबों की झोपड़ियों में आग लगाई जाती थी और सुबहा नेता जी मदद की तसल्ली देने पहुंच जाते थे नादान लोग नेताजी को झुक झुक सिर्फ़ दुआएं ही नहीं देते थे बल्कि उसे अपने वोट देकर विजयी भी बनाते थे । 

           अब यह खेल बड़े पैमाने पर होता है कभी पाकिस्तान ,कभी पुलबामा के शहीदों ,  कभी 15 लाख खाते में जमा ,कभी करोड़ों लोगों को रोजगार  ,कभी कांग्रेस मुक्त भारत ,कभी हिंदू मुस्लिम ,कभी नेहरू और कभी अपनी झूठी बातों के नाम पर होता है । इसमें दनादन इतिहास की ग़लत जानकारियों का तड़का शामिल होता है । आपको याद होगा पहलू खान से लेकर कई मुस्लिमों के साथ गौकशी और अन्य तरह से जो मारकाट का सिलसिला चला वह मुस्लिमों की सदाशयता से नहीं बढ़ पाया तब नीति में बदलाव आया कि उन्हें एन आर सी से डराया जाए।वह भी देशवासियों की एकजुटता और विदेशी दबाव में धराशाई हो गया।तब धारा 370जबरिया अलोकतांत्रिक तरीके से हटाकर कश्मीर के लोगों को परेशान किया गया उनकी अपनी सरकार आज तक नहीं बन पाई । वहां कठपुतली उपराज्यपाल है जो दिल्ली की नाईं  साहिब की ही सुनता है ।   बहरहाल अब बंगाल में हिंदू मुस्लिम एकता को नेस्तनाबूद करने चुनाव को आठ चरणों में रखा गया किंतु यहां, कांग्रेस, वामदलों और तृणमूल ने जो सद्भावपूर्ण माहौल बनाया है वह जब टूटता नज़र नहीं आया तो बाहरी और बंगाल के मूल निवासियों के बीच टकराव की पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है  ।इस बीच कोरोना ने बंगाल में अपने पैर पसार लिए हैं हालात बदतर हैं पर चुनाव होंगे ,लाशों पर होंगे।जो टकराव के बीज भी यहां बंगाली और बाहरी के बीज बोए जा रहे हैं वे भी आगे चलकर ख़तरनाक हो सकते हैं।इसी में सत्ता पाने का सुकून जो छिपा है ।दुआ करिए बंगाल कोरोना से बचा रहे और बंगाल अपनी अस्मिता को भी  बचाए रहे वरना लाशों पर राजनीति करने वाले तथाकथित लोग लोकतांत्रिक उत्सव की आड़ में इसे नष्ट करने उतारू हैं।

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