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वो पांच चिंताएं जिन्हें क्या वित्त मंत्री से मिलेगी तरजीह?

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भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 01 फरवरी 2025 को लगातार आठवीं बार बजट पेश करेंगी। मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के लिए बजट 2025 कई मायनों में चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। वैश्विक चुनौतियों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास यात्रा को बनाए रखना सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। दूसरी ओर, देश का आम आदमी बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और करों के बोझ से राहत की उम्मीद कर रहा है। 

अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार को पटरी पर लाना

हाल के महीनों में भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ने के कारण वैश्विक निवेशकों की चिंता बढ़ी है। घरेलू शेयर बाजार में बीते कुछ महीनों के दौरान इस कारण लगातार गिरावट देखने को मिली है। रोजगार के मोर्चे पर भी इससे चुनौती बढ़ती है। लोगों को महंगाई की तुलना में मजदूरी नहीं मिल पा रही, जिससे उन्हें तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।01 फरवरी 2025 को जिन पांच मोर्चों पर देश के आम आदमी के हित में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से कदम उठाने की जरूरत है, आइए उनके बारे में जानते हैं। 

1. महंगाई

बीते कुछ महीनों में देश में महंगाई तेजी से बढ़ती है। खासकर खाने-पीने की चीजें, सब्जियों, खाद्य तेलों और दूध की कीमतों में इजाफा होने का असर सीधा आम आदमी की रसोई पर पड़ा है खराब मौसम के कारण सब्जियों और दालों की आपूर्ति प्रभावित होने से आम आदमी की थाली से ये चीजें लगभग गायब हो गईं। खाद्य तेलों की कीमतों में बड़ा इजाफा दिखा और इसका कारण आयात शुल्क में इजाफा करना था। दूध की कीमतों में भी उत्पादन खर्च बढ़ने का हवाला देकर इजाफा किया गया, इससे भी लोगों पर भार बढ़ा। ऐसे में, महंगाई से त्रस्त जनता 01 फरवरी को बजट में ऐसे नीतिगत एलानों की उम्मीद कर रही है, जिससे आने वाले वर्षों में उन्हें महंगाई से निजात मिल सके। 

2. वृद्धि दर में सुस्ती

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार 2024-25 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 6.4% रहने का अनुमान है। कोरोना संकट के बाद वृद्धि दर का यह अनुमान सबसे कम है। हालांकि, जानकार मानते हैं कि 2024 में आम चुनावों के बाद आधारभूत ढांचे पर पूंजीगत खर्च में नरमी आने से देश की जीडीपी विकास दर प्रभावित हुई और आने वाले वर्ष में यह फिर से गति पकड़ सकती है। आधारभूत ढांचे की परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर सीमेंट, स्टील और मशीनरी का इस्तेमाल होता है जिससे इन क्षेत्रों में कारोबार बढ़ता है। साथ ही, उत्पादन बढ़ने से लोगों को निर्माण क्षेत्र में नौकरियां भी मिल पाती है। जानकार मानते हैं कि विकास दर और रोजगार की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए पूंजीगत व्यय को बढ़ाना जरूरी है। इसलिए बजट 2025 में वित्त मंत्री की ओर से पूंजीगत व्यय के मार्चे पर ध्यान केंद्रित करने की उम्मीद है, ताकि देश की बेपटरी हुई वृद्धि दर फिर से ट्रैक पर लौट सके। 

3. रोजगार 

देश में पिछले कुछ महीनों में नए रोजगार के आंकड़े उम्मीद से कम रहे हैं। इस मोर्चे पर भी बजट 2025 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमा से ठोस उपायों की उम्मीद है। देश में बड़े पैमाने पर युवाओं की आबादी नौकरी के लिए संघर्ष कर रही है। सरकारी नौकरियों में उम्मीद के अनुरूप बहाली नहीं हो रही, निजी नौकरियों में मेहनत अधिक आमदनी कम वाली स्थिति है, जिससे युवा निराश हैं। ठेके पर बहाली और सेना में अग्निपथ जैसी योजनाओं पर नौकरी की बाट जोह रहे युवाओं के बीच काफी विरोध रहा है।  कोविड के दौरान खेती करने वाले लोगों की संख्या में अचानक वृद्धि हुई थी क्योंकि करोड़ों प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौट गए थे। जो कामगार शहरों को छोड़ अपने घरों को लौटे थे, उनकी पूरी तरह वापसी नहीं हो पाई है उसकी वजह नौकरियों की किल्लत और शहरों में व्याप्त महंगाई। इसलिए रोजगार के मोर्चे पर वित्त मंत्री से ठोस घोषणाओं की उम्मीद होगी। 

4. वेतन में धीमी वृद्धि

देश में बीते कुछ वर्षों में जिस गति से महंगाई बढ़ी है, उस गति से लोगों की आमदनी नहीं बढ़ पाई। देश के लोगों के बीच उपभोग घटने का यह भी एक बड़ा कारण है। जानकार उपभोग में कमी का कारण मज़दूरों और मध्यम आय वाली नौकरियों में वेतन वृद्धि की धीमी रफ्तार को मानते हैं। जानकारों के अनुसार, कॉरपोरेट जगत का मुनाफा बढ़ने के बाद बावजूद महंगाई के अनुपात में लोगों का वेतन नहीं बढ़ा है। उद्योग संगठन फिक्की और स्टाफ़िंग सॉल्यूशन कंपनी क्वेस कॉर्प की पड़ताल भी यही बताती है। 2019 से 2023 के बीच इंजीनियरिंग, विनिर्माण, प्रॉसेसिंग और बुनियादी ढांचा कंपनियों में महज 0.8% की वेतन वृद्धि की गई है। वहीं एफएमसीजी कंपनियों के मामले में वेतन वृद्धि का आंकड़ा औसत रूप से 5.4% रहा है, जो बहुत ही मामूली है। अर्थव्यवस्था में एक तरह वेतन का हिस्सा कम हो रहा है और कॉरपोरेट जगत का मुनाफा बढ़ रहा है। वित्त मंत्री को इस बारे के बजट में इस मोर्चे पर आम लोगों के प्रति संवेदनशीलता बरतते हुए फैसले लेने की जरूरत है।

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5. आयकर

बीते कुछ सालों में देश के बजट में आयकर के मोर्चे पर लोगों को कोई खास राहत नहीं मिली है। बजट में इनकम टैक्स पर हर साल सरकार कुछ एलान करती है, पर करों के भारत से दबे आम आदमी खास नौकरीपेशा वर्ग को इससे कोई बड़ी राहत नहीं मिली है। इस बार बजट में कई संगठनों से सरकार से आयकर में छूट का दायरा बढ़ाकर 10 लाख रुपये करने की मांग की है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े श्रमिक संगठनों ने भी ऐसी मांग रही है। ऐसे में इस बजट में आयकर का बोझ कम करने के लिए फैसला लेना सरकार के लिए एक बड़ा टास्क है। अगर सरकार मध्यम और नौकरीपेशा वर्ग को राहत पहुंचाना चाहती है, तो उसे पहली राहत आयकर के भारत में कटौती कर ही दी जाती है। ऐसे में इस बजट 2025 में वित्त मंत्री से आयकर के स्लैब में बदलाव और नई और पुरानी टैक्स रिजीम के तहत करों में राहत का फैसला लेने की उम्मीद होगी।

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