बे के पांच जिले ऐसे हैं, जिनमें जिले के मुखिया यानि की कलेक्टर अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा ही नहीं कर पाते हैं। इनमें नवगठित निवाड़ी जिला भी शामिल है। दरअसल यह वे जिले हैं जिनमें राजनैतिक हस्तक्षेप अत्याधिक बना रहता है। इसका असर कलेक्टरों की पदस्थापना पर भी दिखाई देता है। यही वजह है कि कई जिलों में तो औसतन कलेक्टर एक साल का भी कार्यकाल पूरा नहीं कर सके हैं। अगर बीते पांच सालों में जिलावार कलेक्टरों की तैनाती और हटाने के आंकड़ों पर नजर डालें तो सूबे के तीन जिले भिण्ड, अशोकनगर और दतिया में वर्ष 2018 से अभी तक यानी पांच वर्ष में सात-सात कलेक्टरों की पदस्थापना की गई हैं। इसी तरह से नवगठित निवाड़ी और आदिवासी बाहुल डिंडोरी जिलों में इसी अवधि में आधा-आधा दर्जन कलेक्टर बदले गए हैं। इस दौरान कई कलेक्टर तो छह से सात माह का ही कार्यकाल पूरा कर सके हैं। पूर्व आईएएस अफसरों के मुताबिक, जिले को तरीके से समझने, विकास और शासन की योजनाओं को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए कलेक्टरों की तैनाती कम से कम तीन साल के लिए किया जाना जरूरी है, लेकिन राजनीतिक दबाव में ऐसा संभव नहीं हो पाता है। इस मामले में प्रशासनिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह दुर्भाग्य ही है कि इस पर कोई नियम और कानून नहीं है। सामान्य तौर पर माना जाता हैं कि कार्यकाल कम से कम तीन साल का हो। ये सरकार की मर्जी पर निर्भर करता है, कि कौन सा अफसर कब तक कहां पदस्थ रहेगा।
निवाड़ी जिला भी नहीं आ रहा पंसद
टीकमगढ़ जिले में से अलग कर एक अक्टूबर 2018 को बनाया गया निवाड़ी जिला भी अफसरों के लिए सही साबित नहीं हो पा रहा है। इस जिले में पांच साल में छह कलेक्टर बदले जा चुके हैं। जिले की पहली कमान अक्षय कुमार सिंह को दी गई थी, जिन्हें लोकसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग के निर्देश पर हटाया गया था। इसके बाद शैलबाला मार्टिन को पदस्थ किया गया , लेकिन वे महज एक महीने 22 दिन ही रह सकीं। इसके बाद फिर से तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अक्षय कुमार सिंह को कलेक्टर पदस्थ कर दिया। 14 महीने बाद 22 अगस्त 2020 को भाजपा सरकार ने सिंह को हटाकर आशीष भार्गव को कलेक्टर पदस्थ किया था , लेकिन पृथ्वीपुर उपचुनाव में नेताओं की नाराजगी के चलते 13 माह बाद भार्गव को हटाकर नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी को 8 सितंबर 2021 को पदस्थ किया। 15 मई 2022 को तरुण भटनागर को कमान सौंपी, पर 28 दिसंबर को राजस्व संबंधी शिकायतों पर इन्हें हटाकर अरुण कुमार विश्वकर्मा को जिले की कमान दी गई है।
5 वर्ष में आधा दर्जन अफसर
डिंडोरी जिले में 5 साल में आधा दजर्न कलेक्टर पदस्थ किए गए हैं। इनमें मोहित बुंदस, सुरभि गुप्ता, बक्की कार्तिकेयन, अरुण कुमार विश्वकर्मा, रत्नाकर झा कलेक्टर रहे। वर्तमान में विकास मिश्रा कलेक्टर हैं। अरुण कुमार मिश्रा तो 14 जनवरी 2021 से 24 जनवरी 2021 यानी 10 दिन यहां रह पाए।
जिलों में इस तरह का भी कार्यकाल
प्रदेश में कई जिले ऐसे हैं , जिनमें अफसरों की पदस्थापना के मामले में अच्छा रिकार्ड भी है। इनमें तीन जिले राजगढ़, बालाघाट और मंडला ऐसे जिले हैं, जहां पर बीते पांच साल कलेक्टरों की पदस्थापना का समय बेहद अच्छा रहा है। इन जिलों में इस अवधि में महज दो -दो कलेक्टर ही पदस्थ रहे हैं, जबकि एक दर्जन जिले ऐसे हैं, जिनमें पांच साल की अवधि में जिलों की कमान तीन -तीन कलेक्टरों के हाथों में रही है। इनमें रायसेन, भोपाल, विदिशा, इंदौर, नरसिंहपुर, छतरपुर, आगर-मालवा, देवास, शाजापुर, सिवनी, सागर और पन्ना शामिल हैं। सबसे अधिक 22 जिले वे हैं, जहां के लोगों ने पांच वर्ष में चार कलेक्टर पदस्थ किए गए हैं।
किन जिलों में कौन अफसर रहे पदस्थ
प्रदेश के भिंड जिले में पांच साल की अवधि में आशीष कुमार, धनराजू एस, छोटे सिंह, डॉ. विजय कुमार, वीएस रावत बतौर कलेक्टर पदस्थ रहे हैं। फिलहाल इस जिले की कमान डॉ. सतीश कुमार एस के पास है। छोटे सिंह को दो बार ये मौका मिला। यहां धनराजू एस दो माह तो डॉ. विजय कुमार दो महीने 13 दिन ही कलेक्टर रहे हैं। इसी तरह से दतिया जिले में भी पांच साल में सात कलेक्टर पदस्थ किए गए हैं। वर्ष 2018 से यहां वीएस रावत, रामप्रताप सिंह जादौन, बाबू सिंह जामोद, रोहित सिंह, संजय कुमार, बी विजय कुमार की तैनाती रही। फिलहाल इस जिले की कमान संजय कुमार के पास है। इस जिले में अधिकतर कलेक्टरों का कार्यकाल औसतन छह से सात महीने रहा। बी विजय कुमार 29 दिन तो संजय कुमार अपने पहले कार्यकाल में 1 माह 21 दिन रहे थे। तीसरे जिले अशोकनगर में पांच साल में सात कलेक्टर बदले गए। जिले में केवीएस चौधरी, बाबू सिंह जामोद, मंजू शर्मा, अभय वर्मा, प्रियंका दास पदसथ किए गए जबकि अभी उमा माहेश्वरी के पास कमान है। अभय वर्मा दो बार कलेक्टर रहे। चौधरी का कार्यकाल 19 दिन तो प्रियंका दास का 17 दिन रहा। बाबू सिंह 2 महीने 7 दिन कलेक्टर रह पाए थे।