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आस्था का सैलाब और तर्क का वीराना

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मुनेश त्यागी 

    इस समय कावड़ यात्रा का उत्सव जोरों पर है। एक अनुमान के अनुसार, इस बार लगभग 5 करोड लोग कांवड़ ला रहे हैं। इस प्रकार लगभग 20 करोड़ लोग, इनके सगे संबंधी, प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से कांवड़ यात्रा से जुड़े हुए हैं। कावड़ यात्रा के कारण बहुत सारे शहरों का यातायात और व्यवस्था अस्तव्यस्त हो गई है। बाजार खाली पड़े हैं, दुकानदार रो रहे हैं। उनका कहना है कि पिछले कई दिनों से बिक्री नहीं हो रही है। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है इस यात्रा के कारण सैकड़ों करोड़ों रुपए की आर्थिक हानि होने जा रही है।

     यहीं पर हमें जानना चाहिए कि यह कावड़ लाने वाले लोग कौन हैं? जब इस बारे में तहकीकात की गई तो पता चला कि इसमें सभी जातियों के गरीब, एससी एसटी का बड़ा हिस्सा, ओबीसी के लोग, बेरोजगार, अर्धबेरोजगार, पढे लिखे बेरोजगार, वंचित, अभावग्रस्त, अनपढ़, गुमराह, हजारों साल के अंधविश्वास, धर्मांधता, अज्ञान और मनुवादी सोच और मानसिकता के शिकार लोग हैं।

     इनमें जज, डॉक्टर, इंजीनियर, नेता, अभिनेता, उद्योगपति, विद्वान, वैज्ञानिक, बारोजगार और अमीर वर्ग का कोई भी आदमी शामिल नहीं है। यहीं पर सवाल उठता है कि क्या दूसरे धर्मों में कावड़ लायी जाती है? क्या दुनिया के दूसरे देशों में इस तरह की कावड़ यात्रा होती हैं?

    आज हमने अपना भेज बदल कर कुछ कावड़ियों से जिनमें पुरुष, औरतें और बच्चे शामिल थे, जिन्हें भोला, भोली और गणेश भी कहा जाता है। हमने उनसे पूछा और जानकारी की कि वे कांवड़ क्यों ला रहे हैं? उनकी क्या मांगें है? क्या मन्नतें हैं? क्या समस्याएं हैं? तो उन्होंने सभी ने बताया कि हमारी मांगे हैं, मन्नतें हैं कि हमारा घर ठीक चले, सुख शांति और समृद्धि हो, हमारे बच्चों को रोजगार मिले, हमें नौकरी मिले, महंगाई से निजात मिले, गरीबी से निजात मिले, अभाव और वंचना से मुक्ति मिले, हमारी रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य और सुरक्षा की सभी समस्याएं खत्म हो जाए।

     कुछ लोग असाध्य रोगों को दूर करने के लिए कावर ला रहे हैं तो कोई लड़का पैदा हो जाए, लड़की पैदा हो जाए, इम्तिहान में पास हो जाए, नौकरी लग जाए, रोजगार मिल जाए, हमारे रोजगार धंधे सही तरीके से चलने लगें। सभी कांवड़िए, इसी तरह की मांगें लेकर आ रहे हैं। कोई भी कावड़िया ऐसा नहीं है जिसकी कोई मांग या मन्नतें ना हों। यहीं पर बहुत गजब की और आश्चर्यचकित करने वाली हकीकत यह है कि सारे के सारे कांवड़िए इस बात को सच माने हुए हैं कि कांवड़ लाने से उसकी सारी मांगे, उसकी सारी मन्नत पूरी हो जाएंगी और उनकी सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी।

    यहीं पर सवाल उठता है कि अभी तक कांवड़ ढोने वाल करोड़ों लोगों में से, कितनों की मन्नतें पूरी हुईं? कितनों को रोजगार मिला? कितनों की गरीबी, बेरोजगारी और अर्ध बेरोजगारी दूर हुई? कितने लोगों के असाध्य रोग ठीक हुए? इसका कोई विवरण सरकार या समाज के पास नहीं है।यह भी सच है कि मनुवादी मानसिकता को और  मनुवादी सोच के समाज को बरकरार रखने वाले अधिकांश लोग, इनकी आर्थिक मदद और समर्थन कर रहे हैं।

     यह अज्ञानता, अंधविश्वास, धर्मांधता और पाखंडों को बनाए बचाए रखने का एक मनुवादी उपक्रम है। यह कोरी आस्था और विश्वास का मामला है। इसका हकीकत, तथ्यों, तर्क, विवेक, ज्ञान विज्ञान और वैज्ञानिकता से कोई लेना देना नहीं है क्योंकि शिक्षा मिलना, रोजगार मिलना, गरीबी दूर होना, असाध्य रोगों से मुक्ति मिलना, बच्चे पैदा होना, इन सबके पीछे अर्थशास्त्र और राजनीति है और सरकार की नीतियां हैं।

  हकीकत यह है कि कावड़ लाने से किसी को भी रोजगार नहीं मिलेगा, किसी की गरीबी दूर नहीं होगी, किसी को शिक्षा नहीं मिलेगी, कोई पास फेल नहीं होगा, किसी को लड़का या लड़की की प्राप्ति नहीं होगी। आज समाज में जरूरी है कि इस सब पर सोच विचार हो, इन गुमराह लोगों को ज्ञान, विज्ञान, राजनीति और अर्थव्यवस्था से परिचित कराया जाए और उन्हें बताया जाए कि कावड़ लाने से उनकी किसी समस्या का समाधान होने वाला नहीं है।

    हां, ये कांवड़ लाने वाले, पूंजीपतियों का, धन्ना सेठों का, सत्ताधारियों का और मनुवादी समाज को बनाए रखने वालों का शिकार हो सकते हैं। इनकी तो किसी की मन्नतें पूरी नहीं होंगी, मगर इनको प्रयोग करने वाले, इनका शिकार करने वाले मनुवादी और सत्ताधारी लोगों की मन्नतें जरूर पूरी हो जाएगी और पूरी हो रही है। इनकी सोच, सत्ता और शासन को इन कांवड़ियों से कोई डर नहीं है क्योंकि कावड़ लाने वाले अधिकांश लोग सरकार और जनविरोधी सत्ता की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ कोई आंदोलन करने नहीं जा रहे हैं कोई अभियान छेड़ने नहीं जा रहे हैं। यह सब पिछले 75 साल की अवैज्ञानिक सोच और अविवेक की सोच और शिक्षा का परिणाम है, क्योंकि रोजगार, शिक्षा, गरीबी को लेकर कभी इन लोगों से बातचीत नहीं की गई और इन लोगों को इसके बारे में नहीं बताया गया।

     अपनी इन मांगों, मन्नतों और समस्याओं को लेकर ये करोड़ों लोग गुमराह हो रहे हैं, कुछ शातिर लोगों का शिकार हो रहे हैं। यह एक आश्चर्यजनक तमाशा है जो साल दर साल बढ़ता जा रहा है। यहीं पर तमाम तर्कशील, विवेकवान और वैज्ञानिक शिक्षा में प्रवीण लोगों का कर्तव्य बनता है की समाज में इन समस्याओं पर चर्चा की जाए। 

    इनके बारे में इन लोगों से बातचीत की जाए और इनकी समस्या कैसे दूर हो सकती है इस पर विचार विमर्श किया जाए, इन्हें ज्ञानी बनाया जाए, विवेकवान बनाया जाए और तर्कशील बनाया जाए और इन्हें जानकारी दी जाए कि वर्तमान सामंती और पूंजीवादी लुटेरों की व्यवस्था उनकी किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकती। इसी के साथ उन्हें यह भी बताया जाए कि उनकी इन हजारों साल पुरानी गरीबी, शोषण, जुल्मों सितम, अशिक्षा, कूशिक्षा बेरोजगारी और अर्धबेरोजगारी को दूर करने के लिए इस जनविरोधी और गरीब विरोधी समाज में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है, समाजवादी समाज व्यवस्था कायम करने की जरूरत है जिसकी वकालत भगत सिंह और उसके साथियों ने की थी। तभी अंधविश्वास, अज्ञानता और धर्मांधता से भरपूर इस बेकार की प्रथा का अंत किया जा सकता है, अन्यथा यह आस्था का सैलाब और तर्क का वीराना जारी रहेगा।

   कांवड़ लाने वालों को यह जानकारी देनी जरूरी है कि कांवड़ लाने की यह सारी प्रथा कोरी और कोरी आस्था है, अंधविश्वास, अज्ञानता और धर्मांधता है। विवेक तर्क, तथ्यों, ज्ञान विज्ञान, अनुसंधान और विश्लेषण से इसका कोई लेना देना नहीं है। यह सारी प्रथा और मान्यता, ज्ञान विज्ञान और संविधान में दिए गए मूलभूत कर्तव्यों और वैज्ञानिक संस्कृति का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन है।

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