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ज़बरदस्ती रंग तो हिंदू को भी नहीं लगा सकते

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अब किसी को वहम नहीं होना चाहिए कि भारत एक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। न यह ग़लतफ़हमी रहनी चाहिए कि भारत अभी हिंदू राष्ट्र नहीं बना। या अघोषित हिंदू राष्ट्र है। नहीं जनाब, अब आंख-कान खोल के देख लीजिए, भारत एक हिंदू राष्ट्र बन चुका है। जहां दूसरे समुदाय के नागरिक दोयम दर्जे के नागरिक हैं। जिनका कोई अधिकार नहीं है। वे न अपने धर्म की प्रैक्टिस कर सकते हैं। न अपने धर्म का प्रदर्शन। न वे हिंदुओं में घुल-मिल सकते हैं। 

मुकुल सरल

सीओ संभल के बयान को अब मुख्यमंत्री का भी समर्थन मिल गया है। इसलिए समझा जाना चाहिए कि ये सरकार की आधिकारिक लाइन है। आधिकारिक चेतावनी है।

उत्तर प्रदेश का संभल, जिसे पिछले काफ़ी समय से हिंदुत्व की प्रयोगशाला बनाया जा रहा है और शाही मस्जिद का विवाद खड़ा करके दूसरी अयोध्या बनाने का प्रयास है। वहां के विवादित पुलिस क्षेत्राधिकारी (सीओ) अनुज चौधरी ‘चेतावनी’ जारी करते हैं कि “होली का त्योहार 14 मार्च को है और इसी दिन जुमे की नमाज़ भी होगी। होली का दिन साल में एक बार आता है, जबकि जुमा साल में 52 बार आता है। अगर किसी को लगता है होली के रंग से उसका धर्म भ्रष्ट होता है तो वह उस दिन घर से ना निकले।”

इस बयान पर बहुत सवाल उठे लेकिन अब इस बयान पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी मोहर लग गई है। या यह समझिए कि योगी जी को ख़ुश करने के लिए ही अधिकारी अब ऐसे बयान देने लगे हैं। यानी वह जानते हैं कि उनका मुख्यमंत्री क्या चाहता है।

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के मंच पर योगी आदित्यनाथ से जब इस संबंध में सवाल पूछा गया तो उन्होंने सीओ संभल का बचाव और समर्थन करते हुए उसी अंदाज़ में वही चेतावनी दोहरा दी कि जुमा तो साल में 52 बार आता है, लेकिन होली तो साल में एक बार आती है।   

लेकिन योगी जी, सवाल जुमे की नमाज़ या रमज़ान का नहीं है। सवाल हिंदू या मुसलमान का नहीं है। सवाल है कि क्या आप किसी हिंदू के भी उसकी बिना मर्ज़ी के जबरन रंग लगा सकते हैं?

नहीं, बिल्कुल नहीं। और मैंने बचपन से लेकर अब तक इसी को लेकर हिंदुओं के बीच तमाम झगड़े-फ़साद होते देखे हैं। मुसलमानों का अलग से कोई मसला कभी नहीं रहा। 

इस तरह की चेतावनी से बेहतर है योगी जी, आप होली के दिन मुसलमानों के लिए कर्फ़्यू का ऐलान कर दीजिए। कि कोई भी मुसलमान घर से बाहर पाया गया तो उसे तुरंत गिरफ़्तार कर लिया जाएगा। ‘हिंदू राष्ट्र’ में ऐसे ही नियम लागू होने चाहिए। 

अब किसी को वहम नहीं होना चाहिए कि भारत एक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। न यह ग़लतफ़हमी रहनी चाहिए कि भारत अभी हिंदू राष्ट्र नहीं बना। या अघोषित हिंदू राष्ट्र है। नहीं जनाब, अब आंख-कान खोल के देख लीजिए, भारत एक हिंदू राष्ट्र बन चुका है। जहां दूसरे समुदाय के नागरिक दोयम दर्जे के नागरिक हैं। जिनका कोई अधिकार नहीं है। वे न अपने धर्म की प्रैक्टिस कर सकते हैं। न अपने धर्म का प्रदर्शन। न वे हिंदुओं में घुल-मिल सकते हैं। 

एक ज़िम्मेदार राज्य या मुख्यमंत्री या उसके प्रशासन का क्या दायित्व होना चाहिए था? उन्हें घोषणा करनी चाहिए थी कि होली का त्योहार सब मिलजुल कर प्यार और शांति से मनाएं। चेतावनी जारी होनी चाहिए थी कि होली के नाम पर कोई भी हुड़दंग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। किसी भी हुड़दंगी को बख़्शा नहीं जाएगा। लेकिन नहीं…अब उल्टी गंगा बह रही है। सीओ संभल का बचाव ही नहीं किया जा रहा बल्कि उन्हें शाबाशी भी दी जा रही है। अब ऐसे बयान कई राज्यों में भारतीय जनता पार्टी के दूसरे नेता भी देने लगे हैं। 

पहले ऐसे सलाह-संदेश जारी होते थे जिसमें कहा जाता था कि होली के नाम पर किसी से भी ज़बरदस्ती न की जाए। शराब पीकर कोई हुडदंग न किया जाए। 

बहुत लोगों को रंगों से परहेज़ होता है। एलर्जी होती है। ज़बरदस्ती करने पर एंग्जाइटी होती है। बहुत से बच्चे-बुजुर्ग, महिलाएं होली नहीं खेलना चाहते। तो क्या आप उनसे ज़बरदस्ती करेंगे। और यहां मैं मुसलमान, ईसाइयों का ज़िक्र नहीं कर रहा। हिंंदुओं का ज़िक्र कर रहा हूं। आपको अपने ही घर में कई सदस्य मिल जाएंगे जो होली नहीं खेलते।

मैंने अपने शहर में, अपने मोहल्ले में इसे लेकर बहुत लड़ाइयां देखी हैं जिसमें किसी को जबरन रंग देने पर बवाल हो जाता है। पुरानी दुश्मनी निकाली जाती है। बहुत से मनचले, हुड़दंगी होली की आड़ में महिलाओं को निशाना बनाते हैं। उनसे बदतमीज़ी करते हैं, अश्लीलता करते हैं। इसे लेकर हर होली पर इतने झगड़े होते हैं कि पूछिए मत। आपका भी शायद यही अनुभव हो। 

इसके अलावा आजकल जिस तरह के केमिकल रंग बाज़ार में आ रहे हैं, वे बहुत नुकसान दायक भी हो सकते हैं। इसके अलावा काले-कोलतार और वार्निश जैसे रंगों को भी कुछ लोग इस्तेमाल करते हैं। इससे तो आमतौर पर सभी को परहेज़ होता है। और मैंने ऐसे रंग लगाने पर भी झगड़े होते देखे हैं।  

और यहां बार-बार नोट करते रहिए कि ये सभी झगड़े हिंंदुओं में ही आपस में हुए हैं। होते हैं। इसमें मुसलमान कोई पार्टी नहीं है। 

किसी के न चाहते हुए भी रंग लगा देने की छूट या माफ़ी सिर्फ़ बच्चों को दी जा सकती है। क्योंकि वे नहीं जानते कि सामने वाले को यह कितना बुरा लग सकता है। या उसकी भी सहमति या मर्ज़ी की ज़रूरत है। बच्चे तो त्योहार की उमंग में होते हैं। और उन्हें कभी इस बारे में सिखाया भी नहीं जाता कि दूसरे की मर्ज़ी या सहमति भी कोई चीज़ है। 

हमने भी बचपन और लड़कपन में ऐसी ग़लतियां की हैं। और झगड़े भी हुए हैं। लेकिन उसके पीछे हमारा मकसद किसी को सताना या नीचा दिखाना नहीं था। लेकिन अब युवा और अन्य बड़े लोग जब जानबूझ कर ऐसे ग़लती करते हैं या होली के नाम पर अपनी दुश्मनी निकालते हैं तो उनके लिए तो सख़्त चेतावनी जारी होनी चाहिए थी। लेकिन चेतावनी जारी हो रही है मुसलमानों के नाम जिनका इस सीन से दूर-दूर तक का कोई लेना देना नहीं। 

पहले भी जुमे या शुक्रवार को होली पड़ी है। पहले भी रमज़ान में होली आई है। लेकिन ऐसी चेतावनी और डर का माहौल बनाने की कोशिश पहली बार देखी है। 

शासन-प्रशासन को व्यवस्था बनाने की बात करनी चाहिए थी कि और अब तो मुख्यमंत्री स्तर पर वही बात दोहराई जाती हैं जिससे सोहार्द बढ़ने की बजाय कम होता है। 

हमारे कितने ही मुसलमान मित्र हमारे साथ होली खेलते रहे हैं। लेकिन अब योगी सरकार ऐसा नहीं चाहती। वे पहले ही इतना अलगाव और तनाव पैदा कर देना चाहते हैं कि कोई मुसलमान वाकई घर से बाहर न निकले। 

ये तर्क भी कितना बेमानी है कि जुमा तो साल में 52 बार आता है। होली तो एक बार आती है। जी बिल्कुल होली एक बार आती है। लेकिन दिवाली (ये तो पांच दिन का उत्सव है)… दशहरा…रामनवमी ये भी एक बार आती हैं। ऐसे ही एक एक करते हुए कौन सा ऐसा महीना है जब हिंदुओं के त्योहार नहीं आते। 

यही नहीं अब आपको अपने हर त्योहार पर मुस्लिम मोहल्ले ही क्यों याद आते हैं। दिवाली पर उनके मोहल्ले में जाकर पटाख़े छोड़ने लगते हैं। रामनवमी पर मस्जिदों के आगे जुलूस ले जाकर उग्र नारेबाज़ी और अश्लील डांस करने लगते हैं। 

पिछले साल 2024 में तो होली पर ही यूपी के बिजनौर ज़िले के धामपुर से एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें मोटरसाइकिल पर जा रहे एक मुस्लिम परिवार को रंग डालने के नाम पर इस क़दर उत्पीड़ित और अपमानित किया गया था कि पूछिए मत। आपको बता दूं कि धामपुर में तो होली एक दिन की नहीं बल्कि पंद्रह दिन की होती है। रंग एकादशी से तो वहां बाक़ायदा रंग शुरू हो जाता है। तो क्या इन दिनों भी मुसलमानों को घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए।

और अब तो क्रिकेट मैच जीतने के बाद भी आपको जश्न मनाने के लिए मस्जिद चाहिए। मध्यप्रदेश के महू में यही हुआ। जहां रविवार 9 मार्च की रात को ICC चैम्पियंस ट्रॉफी में भारत की जीत के जश्न में जुलूस निकाला गया और जामा मस्जिद ले जाया गया। ख़ूब हुड़दंग हुआ। पटाख़े छोड़े गए जिसके चलते झड़प और तनाव हो गया। पुलिस ने लाठीचार्ज किया और सेना तक तैनात करनी पड़ी।

याद कीजिए पूरे सावन यानी जब एक-डेढ़ महीना कांवड़ चलती हैं, तब कैसा तनाव रहने लगा है। कैसी दहशत होने लगी है। कितना उत्पात होने लगा है। उस दौरान भी आदेश जारी होना चाहिए कि पूरे सावन मुसलमान सड़क पर न निकलें। रेहड़ी-ढाबे तो आप बंद करा ही रहे थे। नेम प्लेट का आदेश जारी करके। अब अगली बार आदेश आना चाहिए कि कोई भी पैदल या गाड़ी लेकर सड़क पर न आए, क्या पता कौन किससे टच हो जाए और बेचारे कांवड़िये की कांवड़ खंडित हो जाए। फिर बवाल तो होगा ही। पिटाई तो होगी ही। और ऐसा हमने पिछले कई सालों में सड़कों पर होते हुए भी देखा है। सावन के अलावा भी यूपी के कुछ हिस्से में महाशिवरात्रि यानी जो अभी फ़रवरी में बीती है उसमें भी दस-पंद्रह दिन कांवड़ चलती हैं।

पूरे नवरात्र मीट की दुकाने बंद करा दी जाती हैं। यानी आप नहीं खाते तो दूसरे को भी नहीं खाने देंगे। अगर यहांं सबकी सरकार होती और सबकी भावनाओं का उसे ऐसा ही ख़्याल होता तो फिर ऐसे बेतुके आदेश जारी न होते और अगर होते तो फिर सबके लिए होते। रमज़ान में आदेश जारी होता कि इन दिनों मुसलमान पूरे दिन का रोज़े रखते हैं तो दिन में कहीं भी कोई खाने-पीने की दुकान, रेस्टोरेंट नहीं खुलेंगे। क्योंकि सड़कों पर इस तरह खाना बनता देख, आपको खाता देख, रोज़ेदारों को मुश्किल होगी। उनका रोज़ा टूट सकता है। 

ख़ैर यह बातें नफ़रती लोगों की समझ में नहीं आनी हैं। मगर अफ़सोस कि ये नफ़रती सोच कुछ लोगों या संगठनों या अधिकारियों तक सीमित नहीं है बल्कि सरकार के स्तर पर है और इसे बाक़ायदा बढ़ावा दिया जा रहा है। इसलिए शुक्र मनाइए कि इस शुक्रवार को होली शांतिपूर्वक निपट जाए। और इसके लिए उन हिंदुओं को आगे आना चाहिए जो आज भी मानते हैं कि यह देश सबका है हिंदुओं का भी मुसलमानों का भी और सभी त्योहार हमारी साझा संस्कृति का हिस्सा हैं। शांति-सद्भाव और हंसी-ख़ुशी, उल्लास का विषय हैं न कि झगड़े-फ़साद और आपसी तनाव बढ़ाने के। याद रखना चाहिए कि अगर अमीर ख़ुसरो और नज़ीर अकबराबादी न होते तो होली की बहार अधूरी रह जाती। आज भी होली की शुभकामनाओं के तौर पर हम उन्हीं की रचनाएं एक दूसरे को पोस्ट करते हैं–

आज रंग है ऐ मां रंग है री,

मेरे महबूब के घर रंग है री।

— अमीर ख़ुसरो 

जब फागुन रंग झमकते हों 

तब देख बहारें होली की

— नज़ीर अकबराबादी

और अंत में याद रखिए–

जीवन के रंग मिटाकर तुम

किस रंग की होली खेलोगे?

जब सबको ग़ैर ही कर दोगे

फिर किससे हंसोगे-बोलोगे?

जब मौसम में बारूद भरा

जब नफ़रत का ही नशा चढ़ा

जब इंसां, इंसां से ही डरा

तब कौन सी बोली बोलोगे?

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