मुनेश त्यागी
फिलिस्तीन और इसराइल संघर्ष को लेकर फिलिस्तीन के हालात लगातार खराब भी होते जा रहे हैं। फिलहाल के इस संघर्ष में वहां डेढ़ हजार से ज्यादा आदमी मारे जा चुके हैं और हजारों घायल हो चुके हैं। बहुत सारे लोगों के घर ध्वस्त हो गए हैं, अब वे सड़कों पर हैं। अब अस्पतालों और सार्वजनिक घरों पर भी हमले हो रहे हैं और हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। अमेरिका नाटो इंग्लैंड फ्रांस इटली ऑस्ट्रेलिया कनाडा आदि पूंजीवादी लुटेरे मुल्कों द्वारा इसराइल को समर्थन देना इस मामले को और विभत्स बना रहा है।
इस विवाद को लेकर भारत की मोदी सरकार ने अपना पक्ष बदल दिया है। अब मोदी सरकार खुलकर रंगभेदी, आक्रमणकारी, और फिलिस्तीनियों की जमीन को कब्जाने वाले इसराइल के पक्ष में खड़ी हो गयी है, जबकि इससे पहले नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और वीपी सिंह की सरकारों ने फिलिस्तीन की जनता का समर्थन किया था और उन्होंने कभी भी इजराइल का समर्थन नहीं किया था।
इसी के साथ-साथ यहां पर यह भी जानना जरूरी है कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने भी अपने सार्वजनिक बयान में कहा था कि इजरायल द्वारा फिलिस्तीन की धरती पर हमला करना, उस पर जबरन कब्जा करना गलत है। इसे किसी भी दिशा में स्वीकार नहीं किया जा सकता। फिलिस्तीनियों को उनकी अपनी जमीन, अपना देश और अपना घर मिलना चाहिए।
इसराइल और फिलिस्तीन का यह झगड़ा बहुत पुराना है। 75 साल पहले इस दुनिया में इसराइल नाम का कोई देश नहीं था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन ने एक साजिश के तहत यहूदियों को फिलिस्तीन में बसाने की बात की और वहां उन्हें बसाया भी गया। इसी को लेकर 1948 में वहां पर यहूदी और फिलिस्तीनियों में युद्ध हुआ। उसमें हजारों लोग मारे गए। इसके बाद यह युद्ध 1968 में 1973 में भी हुआ और 90 के दशक में भी हमले हुए, जिनमें हजारों लोग मारे गए, जिनमें में ज्यादातर निर्दोष लोग शामिल थे।
इस विवाद को जिंदा बनाए रखने के लिए सबसे बड़ी जिम्मेदारी अमेरिका और नाटो के देशों की रही है क्योंकि इन देशों ने कभी भी वहां पर न्याय की बात नहीं की, इंसाफ की बात नहीं की और वे सदैव ही प्रभुत्ववादी मानसिकता के शिकार इसराइल को सपोर्ट करते रहे। प्राप्त जानकारी के अनुसार जब यूएनओ ने 1948 में इसराइल और फिलिस्तीन नाम की दो देशों को बनाने का फैसला लिया गया तो उसे समय घोषणा की गई थी कि फिलिस्तीन की भूमि का 52 परसेंट फिलीस्तीनियों के पास, 42% यहूदियों के पास और 8 परसेंट जेरूसलम (यूएनओ) के पास रहेगा।
मगर इसके बाद इसराइल लगातार हमले करके फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जा करता रहा और आज स्थिति यह है कि फिलिस्तीन का लगभग 88% भाग इजरायल के कब्जे में है। उसकी आक्रामक नीतियों ने वहां की जनता को गुलामों में तब्दील कर दिया है। आज वहां हालात यह है कि इजरायल की मनमानी और अमानवीय नीतियों के कारण फिलिस्तीन अपने देश में ना हथियार बना सकते हैं ना अपनी सेनाएं रख सकते हैं, वे अपना कोई स्वतंत्र निर्णय भी नहीं ले सकते हैं।
फिलिस्तीनी इलाकों में बहुत समय से इजरायली बर्बरता जारी है। 2008 से इसराइल के फिलिस्तीन पर किये गये हमलों में 1,50,000 से ज्यादा फिलिस्तीन मारे गए हैं और घायल हुए हैं। 30,000 बच्चे मौत के घाट उतार दिए गए हैं। गाजा पट्टी में महिलाओं और बच्चों की सबसे बुरी दुर्दशा है। विस्तारवादी इसराइल ने पूरे फिलिस्तीन में अवैध बस्तियां बसाईं हैं। उसने यूएनओ को एक मजाक बना दिया है और उसने सारे अंतरराष्ट्रीय कानून और फसलों को ताक पर रख दिया है। उसने फिलिस्तीन की आर्थिक नाकेबंदी करके फिलिस्तीन जनता को बर्बाद कर दिया है। वहां पर 40% बेकारी है।
गाजा पट्टी की तबाही में लोगों को सामूहिक मानसिक बीमारियों में धकेल दिया है। वहां पर इजरायल के तमाम तौर तरीके फासीवादी हैं। इजरायल और अमेरिका वैश्विक अमन चैन के सबसे बड़े कातिल हो गए हैं। उनकी सारी हरकतें विस्तारवादी हैं, प्रभुत्ववादी हैं। वे सारी दुनिया पर अपना कब्जा जमाना चाहते हैं। इजरायल तमाम शांति समझौते को तोड़ता रहा है। उसने कोई ना कोई बहाना बनाकर किसी भी शांति समझौते को लागू नहीं किया। इजरायल और अमेरिका जान पूछ कर यहां पर फिलीस्तीनी समस्या को बनाए रखना चाहते हैं ताकि यहां अशांति बनी रहे और उन्हें सैन्य हस्तक्षेप के बहाने मिलते रहें। फिलिस्तीनियों की अपने वतन से बेदखली सारी मानवता को परेशान करने वाली है। फिलिस्तीन के तमाम इलाकों में वहां की सरकार की नहीं, बल्कि इजरायल का आतंकवाद और दादागिरी चलती है। ऐसे में इजराइल को शांति प्रिय और मित्र कैसे कहा जा सकता है?उसका पक्ष कैसे लिया जा सकता है?
इन्हीं सब कारणों से वहां पर फिलिस्तीनियों का संघर्ष आज भी जारी है और वे अपनी आजादी के लिए लड़ रहे हैं, अपने वतन के लिए, अपनी मातृभूमि के लिए और न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं। यह जंग अस्तित्व की है। इसमें कभी इसराइल हमला करता है तो अब बहुत दिनों बाद हमास ने हमला किया है। मगर हमें यहां पर यह देखना है कि इसके लिए मुख्य रूप से कौन जिम्मेदार है? पूरे हालात को देखकर पूर्ण रूप से यह कहा जाएगा कि इस विवाद के लिए केवल और केवल इजरायल, अमेरिका और नेटो की नीतियां जिम्मेदार है। इसके लिए फिलिस्तीन की जनता बिल्कुल भी जिम्मेदार नहीं है।
यहीं पर हम कहना चाहेंगे कि भारत की गोदी मीडिया इस मामले की पूरी सच्चाई को जनता के सामने नहीं ला रही है। वह किन हालातों में इसराइल बना, किन हालतों में उसने फिलिस्तीन की अधिकांश जमीन पर कब्जा कर लिया है, वह किस तरह से फिलिस्तीनियों के साथ अन्याय कर रहा है, इस बारे में वह जनता को नहीं बता रहा है, उसे गुमराह कर रहा है, उसके सामने झूठ पेश कर रहा है और उसे विस्तारवादी और अंतरराष्ट्रीय कानूनों को रौंदने वाले इजरायल का समर्थक बना रहा है। गोदी मीडिया की यह हरकत फिलिस्तीन की जनता के प्राकृतिक अधिकारों और मानवाधिकारों के एकदम खिलाफ है। इसे किसी भी दशा में स्वीकार नहीं किया जा सकता
इसी के साथ-साथ यहां पर यह भी सबसे ज्यादा जरूरी है कि इसराइल ने फिलीस्तीन के जिन क्षेत्रों पर अवैध कब्जा किया है उसको खाली करें और वह फिलिस्तीनियों को सम्मान, गरिमा और आत्म सम्मान के साथ उन्हें फिलिस्तीन में रहना स्वीकार करें और मनमाना हस्तक्षेप ना करे। हम यहां पर जोरदार तरीके से कहेंगे कि दुनिया की तमाम समतावादी, समानतावादी, प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और दुनिया का कल्याण और भलाई चाहने वाली ताकतें एकजुट होकर आगे आएं और इसराइल और फिलीस्तीन जनता को विश्वास में लेकर इस मामले को सदा सदा के लिए सुलझाएं और पश्चिमी एशिया में अमन-चैन और पूर्ण शांति कायम करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करें।
यह पूरी तरह से जगजाहिर हो चुका है कि अमेरिका और नाटो जैसी विश्व प्रभुत्वकारी, विस्तारवादी शक्तियां और युद्धोन्मादी ताकतें, इस समस्या का कई हाल नहीं करना चाहेंगे। यहां पर दुनिया का भला चाहने वाली ताकतों को एकजुट होकर आगे आना होगा और इस बहुत लंबे समय से चल रहे इस विवाद को सुलझाना होगा, ताकि फिलिस्तीन की जनता को उसके बुनियादी मानवाधिकार उसे हासिल हो सकें और फिलिस्तीन इसराइल संघर्ष का पूर्ण रूप से स्थाई समाधान हो सके।