अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

जंगल हैं जीवन की आधारभूत बुनियाद ! 

Share

5जून पर्यावरण दिवस पर

सुसंस्कृति परिहार

‘चिपको आन्दोलन’ का घोषवाक्य है-

क्या हैं जंगल के उपकार,
मिट्टी, पानी और बयार।
मिट्टी, पानी और बयार,
जिन्दा रहने के आधार।।

हम सबका जीवन जिन पांच तत्वों से मिलकर बना है उसमें हवा, पानी और भूमि से जंगल का करीबी रिश्ता है। प्राणवायु आक्सीज़न का उत्सर्जन और अशुद्ध वायु कार्बन-डाई- ऑक्साइड का अवशोषण जंगल करते हैं। जिससे वायु प्रदूषण से मुक्ति मिलती है। ये बात आमतौर पर बच्चों को प्राथमिक शाला से पढ़ाया और बताया जाता है वृक्षों का महत्व। पिछले कोरोना वायरस के काल में यह बात पक्की तौर पर और समझ में आ गई जब कोरोना वायरस के हमले से लाखों लोग आक्सीजन की कमी के शिकार हो गए। गांवों में रहने वाले और प्रवासी मजदूर जो जंगलों की हवा और ख़ाक छानते रहे भूखे हज़ारों किलो मीटर पैदल चले उन पर कोरोना वायरस ने असर नहीं किया।इतना सब जानने के बाद जंगल और वृक्षों के प्रति हमें सद्भावना तो रखनी ही चाहिए। नासमझी से हमने लाखों लोगों को खोया है। सबक यह है प्राणवायु के लिए पेड़ लगाएं और अपने जंगल बचाएं।

जीवन के लिए दूसरा आवश्यक तत्व है पानी। यूं तो धरती का 71% भाग पानी से भरा हुआ है जिसे प्रशांत महासागर, हिंद महासागर उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव महासागर कहते हैं। इनमें उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव का अधिकांश पानी बर्फ के रूप में मौजूद हैं। लेकिन जिन लोगों ने समुद्र तट पर बसे मुम्बई, पुरी सोमनाथ आदि का भ्रमण कर लिया होगा उन्हें अहसास हो गया होगा इस पानी की असलियत क्या है? इतना खारा है कि आप मुंह में रख नहीं सकते। लेकिन यह भी बड़े काम का है एक तो नमक देता है दूसरे जल यातायात का सस्ता साधन भी है। इसका सर्वाधिक महत्व इस बात के लिए है क्योंकि महासागरों के पानी पर सूर्य ताप से जल वाष्पीकृत होकर बादल बनते हैं वह ही दुनिया भर को मीठा पानी देते हैं। ये बादल वहां ज्यादा बरसते हैं जहां जंगल होता है क्योंकि वे बादलों को अपनी ओर खींचते हैं। जंगल चाहे मैदानी, पहाड़ी या पर्वतीय हों। वे इस पानी को संचित कर लेते हैं जो हमें नदियों, झीलों, झरनों और मानव निर्मित तालाब, ट्यूबवेलों और कुओं में मिलता है। कल्पना कीजिए जंगल न हों तो न तो पानी बरसेगा और न ही ज़मीन में रुकेगा। कहने का आशय यह है कि जंगल ही हैं जो हमें मीठा जल दिलाते हैं।

तीसरा तत्व है भूमि। जंगल न हों तो सारी उपजाऊ मिट्टी जो जंगल अपनी जड़ों से कसकर बांधे रखती वह जंगल की पत्तियों और जीव जंतुओं के अवशेषों से उर्वर होती रहती है। जंगल न हों तो वह रेगिस्तान में परिवर्तित हो जायेगी। जंगल और मिट्टी निर्माण का यही दोस्ताना है जो हमें उपजाऊ मिट्टी तो देता ही है उसके साथ साथ मिट्टी के कटाव से सुरक्षित रखता है। बहने नहीं देता। जहां घने जंगल हैं वहां की तलहटियों में दुनिया के प्रमुख अन्न उत्पादक देश है। भारत में गंगा जमुना दोआब शिवालिक हिमालय और विंध्याचल श्रेणियों से आने वाले जंगलों की कीमती मिट्टी से ही निर्मित हुए हैं। प्रकृति ने मिट्टी में असंख्य बीज छुपा रखे हैं। वर्षा आते ही वे उदित हो जाते हैं और मिट्टी अपरदन रोकते हैं। नन्हीं घास को देखिए वह जहां होती है वहां उसके ऊपर पानी साफ होता है क्योंकि नन्हीं दूब भी अपनी मिट्टी से प्यार करती है उसे कस कर अपनी बांहों में समेट लेती है।

कहने का आशय यह है कि जंगल प्रकृति का एक ऐसा अनिवार्य अंग है जो एक टीम की तरह इस कायनात को न केवल सुरक्षित रखता है बल्कि धरती पर तमाम जीव जंतुओं को भी सुरक्षित किए हुए है। जिनका अपना ताना बाना है। इसलिए इसके महत्व को नकारना उन्हें काटना, उजाड़ना या बांधों में डुबा देना अक्षम्य अपराध है। दुख के साथ कहना पड़ता है कि आज कारपोरेट अपने व्यवसायिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार से मिलकर इनका भरपूर दोहन कर रहा है।कई जगह मसलन टिहरी, हरसूद में जन आंदोलनों के विरोध के बावजूद बड़े बड़े बांध बनाए गए। जिसमें बहुत बड़े वन क्षेत्र को डुबाया गया। इस क्षेत्र के लोग नाम मात्र का मुआवजा लेकर दर दर भटक रहे हैं उनकी जीवन शैली अब तक नए परिवेश के अनुकूल समायोजित नहीं हो पाई है। वे बेगानों सा जीवन जी रहे हैं।

विडम्बना यह है कि ग्रामीण और आदिवासी जीवन शैली जिसमें लोग जल जंगल और ज़मीन से जुड़कर कृषि, आखेट, मछली पकड़ना, कंदमूल, जड़ी बूटी, वनोपज संग्रहण, कुक्कुट और पशुपालन आदि वे करते रहे हों वे दूसरे काम सहजता से कैसे कर सकते हैं? आदिवासी हलकों का तो बहुत बुरा हाल हो जाता है जिनका जीवन तो सिर्फ प्रकृति पर ही अवलंबित होता है।हाल ही में कोयला खनन हेतु छत्तीसगढ़ के हसदेव अभ्यारण्य की अनुमति दी गई जिसमें पुलिस के संरक्षण में पेड़ काटे गए खैरियत ये रही कि आदिवासियों की जागरूकता और एकजुटता से फिलहाल इस कटाई पर रोक लगा दी गई है।ठीक ऐसा ही मध्यप्रदेश के छतरपुर बक्सवाहा जंगल में हीरे के खनन वाली कंपनी के साथ हुआ था उसे उल्टे पैर भागना पड़ा था। मुंबई के आरे जंगल को भी आरियों से बचाया प्रकृति प्रेमियों ने।

आजकल बड़ा मुश्किल दौर है ज़मीन से बहुमूल्य संसाधन पाने की जिद में कारपोरेट और सरकार की मिलीभगत के मामले उजागर भी हो चुके हैं। उन्हें जीवन के बहुमूल्य तत्वों की लेशमात्र चिंता नहीं है। ऐसी स्थिति में आम लोगों की सजगता से ऐसे प्रकृति विरोधियों के हौसले पस्त किए जा सकते हैं। हमारे सामने आंदोलन की लंबी फेहरिस्त है जिसमें विश्नोई समाज के बीस +नौ (29)सूत्र जंगल रक्षा के लिए है। चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा की यादें तो है हीं। मेधा पाटकर जैसी कर्मठ जननेत्री के आंदोलन हमारे लिए प्रेरणा दायक है। हमारी ज़िंदगी जंगल से है इस ज़िद को बनाए रखें तभी धरती की व्यवस्थायें बनी रहेगी और हम सब की ज़िंदगी भी। वृक्षों का साया सिर्फ हमें ही नहीं ज़मी को चाहिए ताकि नमी बनी रहे। किसी ने क्या ख़ूब कहा है :
हम ऐसे पेड़ हैं, जो छांव बांटकर अपनी
शदीद धूप में, ख़ुद साए को तरसते हैं

हम छायादार पेड़ हैं ज़माने के काम आए
जब सूखने लगे तो जलाने के काम आए।

पर्यावरण दिवस पर संकल्प करें कि जीवन की आधारभूत बुनियाद जंगल को हम सब पूरी ताकत लगाकर बचायेंगे। अब और जंगल नहीं कटने देंगे। प्राकृतिक उपादानों के संरक्षण और प्रेम की भावना हमें आदिवासियों के बीच जाकर सीखनी होगी। वे प्रकृति से सिर्फ ज़रुरत का सामान लेते हैं संग्रह नहीं करते बल्कि उन्हें बचाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें