मनीष सिंह
सन नब्बे में आडवाणी ने राम रथ यात्रा की थी। जिसका काफी फायदा मिल रहा था। देश भर में जबरजस्त तनाव भी था, और अखबारों में भाजपा और आडवाणी रोज छप रहे थे।*
*इस यात्रा ने आडवाणी को एकदम नोबडी से स्टार बना दिया। देश मे अटल एक जाने पहचाने पुराने नाम थे, अब आडवाणी उनके बराबर आकर खड़े हो गए थे। इसमे एक तीसरा बन्दा था, जो कहने को तो पार्टी के तीन बड़ों में शामिल था, लेकिन कहीं चर्चा न होती।*
*ये थे मुरली मनोहर जोशी। पीछे छूट रहे थे, और उन्हें भी चाहिए थी फुल इज्जत।*~~~*तो उन्होंने तय किया कि अब वह भी एक रथयात्रा करेंगे। राम रथ यात्रा अहमदाबाद से अयोध्या तक हुई थी, एक्रोस हिंदी हार्टलैंड। नक्शे पर बाएं से दायें। तो यह यात्रा नीचे से ऊपर प्रपोज हुई। कन्याकुमारी से कश्मीर तक।*
*पार्टी के भीतर उन्होंने समर्थन जुटाया। मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान के लीडर्स उनके समर्थन में थे। वहीं कार्यकर्ता जुटाए जाते, और वो दक्षिण से उत्तर तक जाते। यह यात्रा राम रथ यात्रा से लम्बी होती। ज्यादा समय तक अखबारों में छाए रहते।*
*और अंत में दो लाख भारतीय लोगों को लेकर कश्मीर में प्रवेश करते, वहां लाल चौक पर तिरंगा फहराते। क्या मस्त सीन होता बाबू ..*
*तो योजना पार्टी ने मान ली। वही डीसीएम टोयोटा मॉडल लिया, वही बढ़ई पकड़ा और रथनुमा शेप में ढाला, और वही कन्वेनर काम पर लगाया गया, जिसने राम रथयात्रा का इंतजाम सम्हाला था।*
*यह कन्वेनर नरेंद्र मोदी थे।* ~~~*यात्रा शुरू से फिसड्डी रही। दक्षिण में पार्टी कोई खास समर्थन नही था। प्रचार भी खास नही मिला। भीड़ जबरन बुलाई जाती, सभा बहुत छोटीहोती। जोशीजी को लगा कि पार्टी सही सहयोग नही कर रही। खिसिया गए।*
*यात्रा छोटी कर दी गयी। रुट के बीच बीच के शहरों में जम्प करके फटाफट कश्मीर तक पहुँचा गया। लाल चौक में दो लाख आदमी तो क्या, दो हजार या दो सौ नही थे। यात्रा में शामिल एक मित्र के मित्र ने कभी 1996 में हंसते हुए बताया था।*
*”पुलिस के प्रोटेक्शन में हम लोगो को लाल चौक ले जाया गया। वहाँ कर्फ्यू लगा था, और चौक में चारों ओर पुलिस के जवान घेरा लगाए हुए थे। हम कुछ 10-15 लोग थे। झटपट झंडा निकाला, अगरबत्ती जलाई, फटाफट एक डंडे पर खोसा, फहरा कर बसों में आकर बैठे, और तत्काल निकल गए”*
*ज्यादा समय झंडा फहराने में कम,अगरबत्ती जलाने में लगा क्योकि तेज हवाओं के कारण माचिस जल नही पा रही थी”*~~~*बरसों बाद इस तिरंगा यात्रा का एक मूवी में फिल्मांकन हुआ। उसमे मोदी जी याने विवेक ओबेरॉय झंडा उठाये शेर की तरह चले जा रहे हैं। सांय सांय गोली चल रही है, अगल बगल लोग गिर रहे हैं। लेकिन अपना शेर झण्डा लिए बढ़ा चला जा रहा है। बैकग्राउंड में देशभक्ति का रोंगटे खड़ा कर देने वाला म्यूजिक बज रहा है।*
*सब ठीक है, पर मेन हीरो याने जोशीजी कहाँ है??*
~~~*यह सीन एकता यात्रा से नही, चार्ल्स डी गाल द्वारा दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पेरिस में पुनः प्रवेश से प्रेरित था। छुपे नाजी गोली चला रहे थे, अगल बगल लोग गिरते रहे, लेकिन चार्ल्स रुके नही।*
*इसे कश्मीर में 1991 एकता यात्रा पर इम्पोज करना इतिहास की सबसे शानदार स्टैण्ड अप कॉमेडी है। उपर तस्वीर में उस शानदार शो के दो कलाकार, मिलकर कश्मीर पे अगरबत्ती लगाने की कोशिश करते हुए।*
*मनीष सिंह *