मालवा-निमाड़ की राजनीति में उठापटक ने भाजपा को हैरान कर दिया है। पूर्व मंत्री दीपक जोशी के बाद अब पूर्व विधायक भंवरसिंह शेखावत का दर्द फूट पड़ा। शेखावत धार जिले की बदनावर सीट से विधायक रहे हैं, लेकिन अब ये सीट कांग्रेस से भाजपा में आए राज्यमंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव के पास है। शेखावत को संकेत मिल गए हैं कि पार्टी इस बार दत्तीगांव को ही उम्मीदवार बनाएगी। इसके चलते उन्होंने कहा है कि मालवा की किसी भी हारी हुई सीट से टिकट दिया जाए। इसके पीछे उनके अपने तर्क हैं और छुपा हुआ दर्द भी।
आप हारी हुई सीट से टिकट मांगकर चर्चा में आ गए हैं। ऐसा क्या हुआ कि इस तरह टिकट मांगना पड़ा?
शेखावत- मैंने पार्टी को मैसेज किया है, जहां भी हमारी पार्टी की हारी हुई सीट है वहां से टिकट दे दीजिए। मालवा में कहीं भी हो सकती है। छिंदवाड़ा जाकर तो लड़ने से रहा। पहले भी पार्टी लगातार हार वाली इंदौर और बदनावर सीट पर मेरे लिए प्रयोग कर चुकी है। चूंकि अब बदनावर सीट का कांग्रेस कैंडिडेट राज्यमंत्री बनकर भाजपा विधायक बन गया है तो उसका टिकट तो कटेगा नहीं।
शेखावत ने कहा मैं मालवा में भाजपा की हारी हुई किसी भी सीटी से टिकट मांग रहा हूं। इसके लिए पार्टी को समीकरण बैठाने होंगे। जैसे बड़नगर सीट हो सकती है।
पार्टी तक आपको इस तरह मैसेज क्यों पहुंचाना पड़ा?
शेखावत- पहले मुझे इंदौर छोड़ने के लिए कहा गया। बदनावर जाने को कहा, मैंने आदेश सर्वोपरि मानकर वैसा ही किया। बदनावर में मेरे खिलाफ भाजपा नेता को लड़वाकर हरवा दिया। इसके हारने के बाद जिस आदमी (राजवर्धन सिंह दत्तीगांव) ने मेरे खिलाफ चुनाव लड़ा, उसे पार्टी ने अपने पाले में लेकर राज्यमंत्री बना दिया।
आपके बारे में कहते हैं कि आप जहां से लड़े दूसरी बार नहीं जीते, इंदौर और बदनावर में ऐसा ही हुआ?
शेखावत- मैं यह नहीं मानता। आप ये देखिए कि बदनावर सीट जो पार्टी लगातार हार रही थी, वहां मुझे भेजा गया। दूसरी बार में भाजपा ने भाजपा को हरा दिया। मेरे कारण नहीं हारी। इंदौर क्रमांक 5 में भी मैं उतरा था तब 50 साल में पार्टी पहली बार जीती। वो सीट भी पार्टी लगातार हारती आ रही थी। दूसरी बार क्यों हारा, यह कारण भी तो देखिए। मुझे तो हमेशा हारी हुई सीट से उतारा गया। अभी भी हारी हुई किसी सीट से ही टिकट मांग रहा हूं।
आपने टिकट के लिए क्या कोई खास दलील दी है?
शेखावत- इसलिए कहना पड़ा कि जहां खाली सीट है, वहां तो टिकट दे ही सकते हो। हम राजनीतिक रूप से लास्ट लाइन पर हैं। अब पार्टी क्या करती है वो जाने।
आपको अपनी बात सार्वजनिक रूप से क्यों उठानी पड़ रही है? पार्टी में इंटरनल भी कह सकते थे?
शेखावत- मैंने यह बाद सार्वजनिक रूप से कहीं नहीं कही। जब लोग पूछते हैं, जैसा आपने पूछा तो मुझे बोलना पड़ता है। मैंने पार्टी को बताकर ही मामला उठाया है।
इंदौर शहर में कुछ सीटें ऐसी हैं जहां पार्टी 2018 में बड़ी मुश्किल से जीती, क्या उन पर आपकी नजर है?
शेखावत- हार-जीत और कम-ज्यादा मार्जिन से जीत-हार चलती रहती है। सवाल इंदौर या उसके बाहर का नहीं है। पार्टी को जिताऊ उम्मीदवार चाहिए। मैं भी वही कह रहा हूं।
भाजपा में इसे लेकर किससे बात हुई है, किससे मुलाकात हुई या आपको इंतजार करने को कहा गया? क्या संदेश मिला?
शेखावत- किसी से मुलाकात नहीं हुई है। पार्टी को मैसेज किया है कि हमारे बारे में विचार कर लीजिए।
केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर इंदौर में नाराज कार्यकर्ताओं से मिले थे। क्या आपकी उनसे मुलाकात हुई, आपने उन तक मैसेज पहुंचाया?
शेखावत- मैं कोई नाराज कार्यकर्ताओं में से नहीं हूं, न ही कोई नाराजगी है। कहानी इतनी है कि तोमर यहां सबसे मिलने आए थे और उस सूची में मेरा नाम नहीं है, इसलिए मैंने अपना विरोध दर्ज कराया। यह एक प्रकिया होती है और पार्टी में नाराजगी दूर करना चाहिए। जब 2018 में पार्टी चुनाव हारी तो जो जिम्मेदारों पर एक्शन होता, उन्हें दूर कर दिया जाता तो आज जा दुर्गति दिखाई दे रही है, वो नहीं होती।
पूर्व मंत्री दीपक जोशी लगभग पार्टी छोड़ना तय कर चुके हैं, आप क्या कहेंगे?
शेखावत- दीपक जोशी और उनके पिता कैलाश जोशी ने पार्टी के लिए बहुत योगदान दिया है। वे जुझारू कार्यकर्ता हैं। मेरी उनसे बात तो नहीं हुई, लेकिन कह सकता हूं कि वे भावनाओं में बहकर पार्टी नहीं छोड़ रहे। उनकी भावनाएं आहत हुई होंगी।
यदि पार्टी आपको टिकट नहीं देती है तो क्या आप भी दीपक जोशी का रास्ता अपनाएंगे?
शेखावत- दीपक जोशी जो कर रहे हैं, वो कोई रास्ता नहीं है। मजबूरी है। कोई भी आदमी पार्टी नहीं छोड़ना चाहता, लेकिन परिस्थितियां ऐसी पैदा कर दी जाएं तो बेचारा क्या करेगा। यदि उसे पार्टी छोड़ना होती तो दो साल तक आपके पीछे वो चप्पल-जूते क्यों घिसता। कोई परिस्थिति बनी होगी तभी निर्णय लिया जा रहा है।
तब बदनावर से आपको इसलिए लड़ाया था कि वहां राजपूत-पाटीदार फैक्टर है। इसी कारण आप फिट थे, पर अब वहां तो आपके प्रतिद्वंद्वी ही भाजपा में आ गए? अब कौन सी बेहतर सीट दिखती है?
शेखावत – इसके लिए पार्टी को समीकरण बैठाने होंगे। मेरे कहने से थोड़ी दे देंगे। जैसे बड़नगर सीट हो सकती है।
सहकारिता में आपकी अच्छी पैठ रही है। हाल ही में आपको भोपाल भी बुलाया गया है?
शेखावत- मुझे किसी ने नहीं बुलाया है। भोपाल मेरा घर है वहां मैं अकसर आता-जाता हूं। मैं भोपाल नहीं कहीं और बाहर जा रहा हूं। अगर भोपाल से बुलावा आता है तो तुरंत जाएंगे।
भंवरसिंह शेखावत इंदौर भाजपा के दिग्गज नेता हैं। विधानसभा क्रमांक 5 से विधायक रह चुके हैं। 1993 में हुए चुनाव में विधानसभा क्रमांक 5 से शेखावत पहली बार विधायक बने। 1998 के चुनाव में वे इसी सीट से कांग्रेस के सत्यनारायण पटेल से 10 हजार से ज्यादा वोटों से हार गए।
अब जानिए वो 3 बड़े कारण, जिस कारण शेखावत को है टिकट कटने का डर
- जहां से भी लड़े, पहले जीते, फिर उसी सीट पर हार गए। इंदौर और बदनावर दोनों जगह ऐसा हुआ।
- इंदौर में विधानसभा क्रमांक 1 ऐसी सीट है जहां भाजपा पिछला चुनाव हारी थी। विधानसभा क्रमांक 1 में सुदर्शन गुप्ता, कमलेश खंडेलवाल जैसे नेताओं की दावेदारी है।
- राऊ सीट पर इंदौर के ही भाजपा नेताओं की नजर है। वहां जीतू जिराती और मधु वर्मा टिकट की कतार में हैं।
भाजपा नेता भंवरसिंह शेखावत की राजनीति का पूरा करियर समझिए
- भंवरसिंह शेखावत इंदौर भाजपा के दिग्गज नेता हैं। विधानसभा क्रमांक 5 से विधायक रह चुके हैं।
- 1993 में हुए चुनाव में विधानसभा क्रमांक 5 से शेखावत पहली बार विधायक बने। उन्होंने कांग्रेस के अशोक शुक्ला को 13 हजार से ज्यादा वोटों से हराया।
- 1998 के चुनाव में वे इसी सीट से कांग्रेस के सत्यनारायण पटेल से 10 हजार से ज्यादा वोटों से हार गए।
- 1998 की हार के बाद शेखावत की इंदौर राजनीति को झटका लगा। पार्टी ने 2003 के चुनाव में महेंद्र हार्डिया को उम्मीदवार बनाया और वे शोभा ओझा से जीत भी गए।
- लगातार चुनाव जीत रहे कैलाश विजयवर्गीय 2003 आते-आते इंदौर के सबसे प्रभावी नेता बन गए थे। उनके पैरेलल भाजपा विधायकों में सिर्फ दिवंगत मंत्री लक्ष्मण सिंह गौड़ को देखा जाता था।
- हार के बाद इंदौरी राजनीति से दूर कर दिए गए और सहकारिता के लिए अपेक्स बैंक अध्यक्ष बनाकर सरकार ने एडजस्ट कर दिया। दरअसल, भाजपा के पास कोई बड़ा सहकारिता नेता तब नहीं था। हालांकि, बाद में गलत लोन के आरोप में उन्हें अयोग्य करार दे दिया गया था।
- 2013 में पार्टी ने उन्हें राजपूत बहुल बदनावर सीट से टिकट दे दिया, तब उन्होंने मौजूदा विधायक राजवर्धन सिंह दत्तीगांव (तब कांग्रेस में थे) को हराया।
- बदनावर सीट से वे दोबारा 2018 में उतरे, लेकिन दत्तीगांव ने इस बार उन्हें हरा दिया। बाद से पार्टी ने उन्हें अलग-थलग कर दिया था।
- मध्यप्रदेश में 2020 में तख्तापलट हुआ तो वहां बदनावर से कांग्रेस विधायक रहे दत्तीगांव ज्योतिरादित्य सिंधिया के इशारे पर भाजपा में चले आए।
- अब बदनावर सीट से 2023 के चुनाव में भाजपा से दत्तीगांव का उतरना तय माना जा रहा है, यही शेखावत का दर्द है कि पहले इंदौर छुड़वाया, अब नई सीट बदनावर भी उनके हाथ से जा रही है।
सिंधिया समर्थकों ने खुलेआम लूट मचा रखी है
अपने निवास पर शुक्रवार को मीडिया से चर्चा में शेखावत ने कहा कि सिंधिया समर्थक भाजपा में आए तो पार्टी के कार्यकर्ता और नेताओं ने उनका स्वागत किया। इतना ही नहीं उन्हें जिताया भी। लेकिन इसके बाद पार्टी के अंदर जो स्थितियां बनी है वो मन को दुख देने वाली पीड़ा देने वाली हैं। सिंधिया समर्थकों के आने से पार्टी मजबूत होती तो हमें समझ में आता। आज उनके आने से हमारी पार्टी की जमीन खोखली हो गई। जिन सिद्धांतों को लेकर पार्टी का निर्माण किया था, वो सिद्धांत छूट गए। भारतीय जनता पार्टी के मंत्रियों पर कभी इतने भ्रष्टाचार के आरोप नहीं सुने जो आज लग रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ आए लोगों ने खुलेआम लूट मचा रखी है।
सिंधिया समर्थक कर रहे पार्टी की बदनामी
आज बदनावर में राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव ने पूरी जमीनों पर कब्जा करना, सारी खदानों पर कब्जा करना, अवैध रूप से खनन करना सब चालू कर दिया है। जुआ-सट्टा खुलेआम चल रहा है। सिंधिया समर्थकों के आने के बाद से पार्टी की बदनामी हो रही है। पार्टी से जुड़े पुराने लोगों को पीड़ा हो रही है। यही बात तो हम संगठन को बता रहे हैं और क्या कह रहे हैं। कार्यकर्ता अपनी बात संगठन से कह रहा है। अगर आप समय रहते नहीं चेतेंगे, तो यही कारण तो थे 2018 में जब शिवराज सिंह की सरकार चली गई थी।
ये टिकट की नहीं, पार्टी को जिंदा रखने की लड़ाई है
जिन लोगों ने पिछली बार सरकार गिराने का काम किया, पार्टी के खिलाफ काम किया, आप उन लोगों को पुरस्कृत कर रहे हैं। जिनका जीवन खप गया इस पार्टी को खड़ा करने में आज उनको आपने इतना अपमानित कर कोने में बैठा दिया। आप बुजुर्गों का सम्मान करना तो सीखें। वो नहीं कह रहे कि आप हमें टिकट दे दो। ये टिकट की लड़ाई नहीं है। ये पार्टी को जिंदा रखने की और जो लोग पार्टी को समाप्त करने में लगे हैं उनके खिलाफ का संघर्ष है।