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यूपी के एक छोटे से गांव से दिल्ली के उपमुख्यमंत्री तक मनीष सिसोदिया

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उन्हें दिल्ली के सरकारी स्कूलों की सूरत बदलने वाला कहा जाता है। उनमें प्राइवेट स्कूलों से टक्कर का भाव जगाने वाले के रूप में जाना जाता है। उनकी गिनती दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सबसे भरोसेमंद साथियों में की जाती है। अटल-आडवाणी की जोड़ी के तर्ज पर उनका नाम केजरीवाल के साथ लिया जा सकता है। यहां बात ही रही है दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जो घर पर सीबीआई छापे की वजह से सुर्खियों में हैं। सीबीआई ने दिल्ली में कथित एक्साइज पॉलिसी स्कैम के सिलसिले में उनके घर पर छापा मारा है। संयोग से सीबीआई के ये छापे तब पड़े हैं जब अमेरिका के मशहूर अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स में दिल्ली के एजुकेशन मॉडल की तारीफ करते आर्टिकल में उनकी तस्वीर छपी है। वैसे बीजेपी उसे पेड न्यूज बता रही है। आइए नजर डालते हैं मनीष सिसोदिया के एक पत्रकार से डेप्युटी सीएम पद तक के सफर पर।

मनीष सिसोदिया का हापुड़ के एक छोटे से गांव से दिल्ली के उपमुख्यमंत्री पद तक पहुंचने का सफर काफी दिलचस्प है। उनका जन्म हापुड़ के फगौता गांव में हुआ। उनके पिता स्कूल शिक्षक थे। शुरुआती पढ़ाई-लिखाई गांव के ही सरकारी स्कूल में हुई। कलम की ताकत से समाज में बदलाव की चाहत ने पत्रकारिता की तरफ मोड़ा। 1993 में उन्होंने भारतीय विद्या भवन से मास कम्युनिकेशन में डिप्लोमा किया। 1996 में उन्होंने आकाशवाणी के लिए ‘जीरो ऑवर’ कार्यक्रम होस्ट किया। फिर एक टीवी पत्रकारिता की दुनिया में कदम रखा। 1997 से 2005 तक ‘जी न्यूज’ में काम किया।

पत्रकारिता के दिनों में ही सिसोदिया अरविंद केजरीवाल के संपर्क में आए जो आईआरएस की नौकरी छोड़ करके समाजसेवा के क्षेत्र में उतरे थे। भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चला रहे थे। दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई और सिसोदिया केजरीवाल के एनजीओ ‘परिवर्तन’ से जुड़ गए। 2005 में पत्रकारिता की दुनिया को अलविदा कहने के बाद सिसोदिया ने केजरीवाल के साथ मिलकर ‘कबीर’ नाम से एक गैर-लाभकारी संगठन का गठन किया। यह संगठन सरकारी अधिकारियों और जनता के बीच संवाद कार्यक्रम कराकर लोगों की समस्याओं के समाधान में मदद करता था। ‘कबीर’ के जरिए उन्होंने सूचना के अधिकार की मांग बुलंद की। सिसोदिया उन 9 लोगों में शामिल थे जिन्हें अरुणा रॉय ने राइट टु इन्फॉर्मेशन कानून का मसौदा तैयार करने के लिए चुना था।

सिसोदिया और केजरीवाल की जोड़ी ने 2006 में पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन की नींव रखी। दोनों एक साथ मिलकर सोशल एक्टिविज्म की राह पर बढ़ते रहे। 2011 में अन्ना हजारे की अगुआई में भ्रष्टाचार के खिलाफ बहुचर्चित आंदोलन में सिसोदिया की प्रमुख भूमिका रही। वह अन्ना की कोर टीम में शामिल थे। 2012 में सिसोदिया की सियासी पारी शुरू हुई। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी नाम से एक नए राजनीतिक दल का जन्म हुआ जिसके सिसोदिया संस्थापक सदस्य थे। उस वक्त शायद ही किसी ने सोचा हो कि केजरीवाल और सिसोदिया की ये जोड़ी दिल्ली और देश की राजनीति बदलकर रख देगी। 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस नई नवेली पार्टी ने 28 सीटें जीतकर राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की राजनीति में चले आ रहे शीला दीक्षित युग का अंत कर दिया। कांग्रेस महज 8 सीटों पर सिमट गई। बीजेपी को 31 सीटें मिलीं। सिसोदिया ने पटपड़गंज सीट से जीत हासिल कर पहली बार विधानसभा में कदम रखा। अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने और सिसोदिया उनके कैबिनेट का हिस्सा बने। लेकिन 49 दिनों में ही यह सरकार गिर गई।

2015 में फिर दिल्ली विधानसभा के लिए चुनाव हुए। इसमें आम आदमी पार्टी ने इतिहास रच दिया। 70 सीटों में से 67 पर जीत हासिल की। कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल सकता। केंद्र की सत्ता पर काबिज बीजेपी खाता खोलने में तो कामयाब हुई लेकिन महज 3 सीटों पर सिमट गई। प्रचंड बहुमत के साथ केजरीवाल मुख्यमंत्री बने और सिसोदिया उपमुख्यमंत्री। बतौर एजुकेशन मिनिस्टर सिसोदिया ने शिक्षा सुधारों से दिल्ली के सरकारी स्कूलों की सूरत बदल दी। उनका ‘शिक्षा मॉडल’ बहुत हिट हुआ। 2020 के चुनाव में फिर AAP का डंका बजा। हालांकि, अब सिसोदिया कथित एक्साइज पॉलिसी स्कैम की वजह से जांच एजेंसियों के रेडार पर हैं।

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