नवनीश कुमार
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन है। खास है कि इलेक्टोरल बांड योजना बीजेपी की सरकार द्वारा 2017-18 में लाई गई थी। दिलचस्प यह है कि इस रास्ते से आने वाले चंदे का बहुत बड़ा हिस्सा बीजेपी को ही मिलता था। ADR ने रिपोर्ट जारी कर बताया है कि कॉरपोरेट चंदे से 90% पैसा भाजपा को मिला है।
ADR रिपोर्ट के अनुसार, 2022-23 में राष्ट्रीय पार्टियों को मिले फंड में सबसे ज्यादा चंदा, बीजेपी को मिला है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय जनता पार्टी (BJP) को वित्तीय वर्ष 2022-23 में सबसे ज्यादा फंड मिला है। पार्टी को 7,945 लोगों ने 719 करोड़ रुपये से ज्यादा का चंदा दिया है, जो 2021-22 में मिले फंड की तुलना में 17.12 फीसदी ज्यादा है। पिछले साल पार्टी को लगभग 614 करोड़ रुपये का चंदा मिला था। रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 के लिए राष्ट्रीय दलों को 12,167 लोगों से लगभग 850 करोड़ रुपये का डोनेशन मिला है।
कांग्रेस आदि पार्टियों को पिछली बार से भी कम फंड
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कांग्रेस को लगभग 79 करोड़ रुपये का चंदा मिला है। कांग्रेस फंड प्राप्त करने के मामले में दूसरे नंबर पर है। हालांकि, कांग्रेस को इस साल वित्त वर्ष 2021-22 के मुकाबले 16.27 प्रतिशत कम फंड मिला है। इसी तरह, सीपीआईएम और आम आदमी पार्टी (AAP) को मिलने वाले फंड में भी कमी आई है। रिपोर्ट के मुताबिक सीपीआईएम ने 3.9 करोड़ का फंड घोषित किया है, जो पिछले साल के मुकाबले 39 प्रतिशत से ज्यादा कम है। AAP को 2022-23 में 2.99 फीसदी कम फंड मिला है।
वही, बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने घोषणा की कि पार्टी को वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान किसी ने 20,000 रुपये से अधिक का दान नहीं दिया। यही नहीं, एडीआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली से राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को कुल 276 करोड़ रुपये का दान दिया गया, इसके बाद गुजरात से 160 करोड़ और महाराष्ट्र 96 करोड़ रुपये का दान दिया गया है। सभी पार्टियों को कॉर्पोरेट/व्यावसायिक क्षेत्रों की ओर से 680 करोड़ रुपये से ज्यादा का फंड मिला है। जो कुल राशि का 80 प्रतिशत के करीब है। इसके अलावा 8,567 व्यक्तिगत दानदाताओं ने पार्टियों को 166.621 करोड़ रुपये वित्त वर्ष 2022-23 में दान दिए।
खास यह भी कि वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान राष्ट्रीय पार्टियों का कुल चंदा 91.701 करोड़ रुपये बढ़ गया, जो पिछले वित्त वर्ष 2021-22 से 12.09 प्रतिशत अधिक है। एडीआर ने कहा कि भाजपा को मिला चंदा वित्त वर्ष 2021-22 के 614.626 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 719.858 करोड़ रुपये हो गया, जो 17.12 प्रतिशत की वृद्धि है। एडीआर ने कहा कि हालांकि वित्त वर्ष 2019-20 की तुलना में वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान पार्टी के चंदे में 41.49 प्रतिशत की कमी आई।
इलेक्टोरल बांड ने कैसे भरीं बीजेपी की तिजोरी?
स्क्रोल पर प्रकाशित एक खबर के मुताबिक कम से कम सात राष्ट्रीय राजनीतिक दलों और 24 क्षेत्रीय पार्टियों को इलेक्टोरल बांड के जरिये पैसा मिला है। चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स के मुताबिक अप्रैल 2023 तक कुल 12979 करोड़ रूपये के इलेक्टोरल बांड बेचे जा चुके हैं। यह सब कुछ 26 किश्तों में हुआ है। इसमें बीजेपी को 6572 करोड़ रुपये यानि पचास फीसदी से ज्यादा रुपये मिले हैं। बाकी सभी दलों ने एक साथ मिलकर जितना नहीं कमाया उससे ज्यादा सत्तारूढ़ दल ने इस रास्ते से हासिल कर लिया। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस 1123 करोड़ रुपये के साथ इससे बहुत पीछे रहा।
पार्टी के आधार पर और पूरा विस्तार से अगर इसको सामने लाने की कोशिश की जाए तो अप्रैल, 2022 तक कुल 9856.72 करोड़ रुपये इलेक्टोरल बांड के जरिये आए जिसमें बीजेपी को 5271.97 करोड़ रुपये मिले। यह हिस्सा तकरीबन 53 फीसदी है। जबकि कांग्रेस को इसी काल में 952.29 करोड़ रुपये हासिल हुए। सूची में अगला नाम टीएमसी का है जिसे 767.88 करोड़, बीजेडी को 622 करोड़ और तेलंगाना राष्ट्र समिति को 383.65 करोड़ रुपये मिले है।
लोकसभा में एक सवाल के उत्तर में केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी ने 5 फरवरी को बताया कि योजना के लांच होने के बाद अब तक 30 किश्तों में कुल 16518 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बांड जारी किए जा चुके हैं। इसका मतलब है कि अप्रैल 2023 तक 2023-24 के वित्तीय वर्ष में 3539 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बांड जारी किए जा चुके हैं। किसी दल को इस दौरान कितना पैसा मिला इसका पूरा विवरण अभी मौजूद नहीं है।
*भाजपा द्वारा अपना खज़ाऩा भरने के लिए बनाई गई ये ‘काला धन- सफ़ेद करो योजऩा’ : कांग्रेस*
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने मीडिया को संबोधित कर भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना कुछ और नहीं, बल्कि भाजपा द्वारा अपना खज़ाऩा भरने के लिए बनाई गई एक ‘काला-धन-सफ़ेद-करो योजऩा’ थी। पवन खेड़ा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आज उन्हीं भावनाओं को दोहराया जो मैंने और मेरे सहयोगियों ने, ऑन रिकॉर्ड बार-बार व्यक्त की हैं। पहला यह योजना असंवैधानिक है, ऐसा उपाय जो मतदाताओं से यह छुपाता है कि राजनीतिक दलों को कैसे मालामाल बनाता है, लोकतंत्र में उचित नहीं ठहराया जा सकता है। इस प्रकार, यह सीधे तौर पर संविधान के अनुच्छेद 19(1) (ए) का उल्लंघन करता है।
दूसरा, सरकार का यह दावा कि उसने काले धन पर अंकुश लगाया, बिल्कुल बेबुनियाद व निराधार था। दरअसल, आरटीआई के प्रावधानों के बिना इस योजना को लागू करके वह कालेधन को सफेद करने को बढ़ावा दे रही थी। तीसरा, वित्तीय व्यवस्था राजनीतिक दलों के बीच पारस्परिक आदान- प्रदान का कारण बन सकती हैं। उन्होंने मोदी सरकार और तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली का जिक्र करते हुए कहा कि यही कारण है कि भाजपा द्वारा, आरबीआई, चुनाव आयोग, भारत की संसद, विपक्ष और भारत के लोगों के विरोध को कुचलते हुए चुनावी बॉन्ड पेश करने के असंवैधानिक फैसले का बार-बार बचाव किया गया।
साभार : सबरंग