देश की राजधानी दिल्ली में सफलतापूर्वक G-20 शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ। सोमवार को एक बार फिर दिल्ली की सड़कों पर थोड़ा जाम दिखाई दिया क्योंकि स्कूल, कॉलेज और ऑफिस खुल गए। दिल्ली वालों की ज़िंदगी की गाड़ी ने एक बार फिर रफ़्तार पकड़ ली। इस शिखर सम्मेलन का क्या हासिल था इसपर ज़रूर चर्चा चल रही है।
इस बीच हम एक बार फिर दिल्ली के नेल्सल मंडेला मार्ग पर स्थित उस कुली कैंप स्लम में पहुंचे जिसे हरे परदे के पीछा छुपा दिया गया था। लेकिन देखकर हैरानी हुई कि जहां एक तरफ पूरी दिल्ली अपने काम पर लौट रही थी तो वहीं दूसरी तरफ ये परदे आज भी लगे थे (रिपोर्टिंग के वक़्त, 11 सितंबर, दोपहर क़रीब तीन साढ़े तीन बजे तक)।
हम अभी इस स्लम में घुसे ही थे कि एक विदेशी को देखा, जो इस घेर दिए गए स्लम की तस्वीर खींच रहे थे। हमने उनसे बात की तो पता चला कि वे जापानी पत्रकार केन हैं, जो G-20 कवर करने भारत आए थे। हमने केन से लंबी बातचीत की, उनसे इस स्लम को कवर करने के पीछे की वजह पूछी। केन कहते हैं, “जब मुझे पता चला कि इस तरह से स्लम को नेट से छुपा दिया गया है तो मैं हैरान था, मोदी सरकार अच्छा काम कर रही है लेकिन असलियत को छुपाना नहीं चाहिए। भारत शायद अपनी ग़रीबी ज़ाहिर नहीं करना चाहता जो मेरे लिए बहुत ही शॉकिंग है, क्योंकि हम जानना चाहते हैं भारत क्या है?”
कुली कैंप की आज की तस्वीर
हमने केन से जानना चाहा कि वो भारत के बारे में किस तरह लिखने या बताने वाले हैं, तो उनका कहना था “जो दिख रहा है मैं वही बताऊंगा, बिल्कुल फैक्ट, और जो मैं देख रहा हूं यह फैक्ट है।”
हालांकि केन भारत की तारीफ़ भी करते हैं और मानते हैं कि भारत एक सेल्फ मेड कंट्री है और जापान में भारत के भोजन और कल्चर को लेकर काफ़ी क्रेज है लेकिन वो इस बात को भी ज़ाहिर करते हैं कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में अमीरों और ग़रीबों के बीच में एक अंतर है।
केन कुली कैंप के खेलते हुए बच्चों की मुस्कुराती तस्वीरों को लगातार खींच रहे थे। उमस और पसीने में भीगे लोगों के चेहरों को अपने कैमरे में कैद करते हुए आगे बढ़ गए।
दिल बेचैन कर देने वाली उमस के बाद बारिश होने लगी, हम गली में थे, पानी बरस रहा था लेकिन ऐसा महसूस हो रहा था कि बारिश की बूंदों को भी इन ग़रीबों की गलियों में उतरने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही थी, वहीं दूसरी तरफ गली में बजबजाती नालियों का पानी बह रहा था।
सड़क से लगी एक दुकान आज खुली
यहां हमें एक दुकान पर बैठे महेश मिले, महेश पेशे से सफाई कर्मचारी हैं और उनकी पत्नी दुकान पर बैठती हैं। हमने उनसे परदे के न हटने के बारे में पूछा तो उनका कहना था, “पता नहीं क्यों नहीं हटाया, लेकिन हम क्या कर सकते हैं”, वो बताते हैं कि सम्मेलन के दौरान दो दिन तक स्लम को पूरी तरह से ढक दिया गया था, बहुत घूम कर जाने पर एक छोटा-सा रास्ता खोला गया था। हमने महेश से पूछा कि इन दो दिनों में उन्हें क्या परेशानी हुई तो उनका कहना था, “हमें कूड़ा फेंकने से लेकर अपने ज़रूरी कामों के लिए बहुत घूम कर जाना पड़ रहा था।” परदे न हटने पर वह कहते हैं “अब तो हटा देना चाहिए, बहुत अच्छी बात है सम्मेलन हुआ, हमने भी सहयोग किया लेकिन अब तो हटा देना चाहिए।”
हालांकि कुछ लोगों ने हमें बताया कि आज शाम साढ़े चार बजे के आस-पास ये परदे हटा दिए जाएंगे, हमसे बात करते हुए यहीं रहने वाले एक शख्स ने हमसे कहा कि “हमारे यहां बहुत बड़ा सम्मेलन हुआ है G-20, जिस पर हम गर्व करते हैं, लेकिन जिस तरह से हमें ढक दिया गया है, ये क्या है? लेकिन अब तो सम्मेलन ख़त्म हो चुका है, देखिए अभी भी सब लगा पड़ा है, आपके सामने है, अभी भी हमें कहा गया है कि तीन दिन के बाद हटेगा।”
एक और स्थानीय ने कहा कि “तीन दिन हम घर में बैठे रहे, कमाने नहीं जा पाए, हम कमाने जाएंगे तभी तो अपने बच्चों को खिला पाएंगे।”
हम इन गलियों में आगे बढ़े तो बहुत जल्दी में पानी भर रही एक महिला मिलीं, हमसे बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि “सुबह साढ़े आठ बजे पानी आता है लेकिन उस वक्त मैं काम पर चली जाती हूं। अभी आई हूं, कभी भी पानी चला जाएगा इसलिए पानी भर रही हूं।” वो अपने घर के आगे लगे परदे के अब भी न हटने को लेकर कहती हैं कि “अब तो हटा देना चाहिए, अब क्या काम है, हमें कचरा समझते हैं इसलिए हमें ढक दिया।” यहीं खड़ी एक और महिला मिलीं, वो कहने लगीं “यहीं के लोग इतनी बड़ी-बड़ी इमारतें बनाते हैं लेकिन उन्हें ही इस तरह से ढक दिया है, देखो अब कब हटाते हैं ये परदा।”
जिस कुली कैंप को हरे परदे से ढक दिया गया था, उस कैंप से ये परदा कब हटेगा इसके बारे में तो हमें कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिल पाई। यहीं एक चाय की दुकान पर खड़े लड़के ने कहा कि “देखो, हटता है, नहीं हटता, ये तो उन्हीं पर निर्भर करता है, हम तो कुछ नहीं बोल सकते।”
यहीं गली में हमें एक और महिला मिलीं, हमने उनसे भी पूछा कि ये परदे अभी तक नहीं हटे कब हटेंगे? तो बाक़ियों की तरह उनका भी यही कहना था “पता नहीं कब हटेंगे”, हमने उनसे पूछा कि आपको कोई दिक्कत तो नहीं है, तो उनका कहना था “क्यों, दिक्कत क्यों नहीं है, हवा तक रुकी पड़ी है।”
कुली कैंप के अंदर की तस्वीर
कुली कैंप के लोग कहते हैं कि “हमें गर्व है कि हमारे देश में इतना बड़ा सम्मेलन हुआ, इस सम्मेलन का हमें भले ही कोई फायदा हो या न हो, कल को हम रहे या नहीं लेकिन शायद हमारे बच्चों को भविष्य में इसका कोई फायदा होगा।”
हालांकि इसके साथ ही कुली कैंप में रह रहे लोगों की शिकायत थी कि “जितनी जल्दी में इस परदे को लगाया गया, उतनी ही फुर्ती इसे हटाने में नहीं दिखाई दे रही है।