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गंगा मुक्तिदायिनी नहीं, उन्हें भागीरथ नहीं लाए 

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       बचपन से ही बच्चों को औपचारिक- अनौपचारिक रूप से इतने झूठ पढ़ाये जाते हैं कि उनके मस्तिष्क में कचरा ठुस-ठुसकर भर जाता है. वे उसके अलावा क़ुछ सोच तक नहीं सकते, जीवन भर.  यहाँ जो भी आप पढ़ेंगे, वह आपके शास्त्रों पर ही आधारित है.

      ~ डॉ. विकास मानव

किरन्तिमंगेभ्यः किरणनिकुरम्बमृतरसं हृदि त्वामधत्ते हिमकरशिलामूर्तिमिव यः।

स सर्पानां दर्पं शामयति शकुन्ताधिप इव ज्वरप्लुष्ठान दृष्ट्या सुखयति सुधाधारसिरया।।

       हरिश्चंद्र भागीरथ के पूर्वज हैं, आप सूर्य वंश की वंशावली देख सकते हैं। भागीरथ राम के पूर्वज हैं | राम से बीस पीढ़ी पहले भागीरथ का जन्म हुआ है.  भागीरथ से दस पीढ़ी पहले हरिश्चंद्र का जन्म हुआ है।

      फिर गंगा को भागीरथ द्वारा मोक्षदायिनी के रूप में कैसे लाया गया ? 

राजा सगर के दो पत्नियाँ थीं, केशिनी और सुमति। सुमति से साठ हजार पुत्र हुए, जो कपिल मुनि के श्राप के कारण भस्म हो गए। इनके उद्धार के लिए राजा भागीरथ ने कठोर तपस्या करके, गंगा को धरती पर उतार कर लाए थे। फिर गंगा किस प्रकार से इतराती बल खाती इस धरती पर अवतरित हुई हैं और शिव ने कैसे अपनी जटाओं में धारण किया है। जिन्हें ये घटना न मालूम हो, ये पूरी घटना ग्रंथों में मिल जाएगी।

    अब यहाँ प्रश्न ये आता है, भागीरथ के ही  पूर्वज हरिश्चंद्र हुए हैं। हरिश्चंद्र भी इसी गंगा तट पर मणि कर्णिका घाट पर चांडाल बने थे। हरिश्चंद्र भागीरथ के ही पूर्वज हैं जो भागीरथ के जन्म से दस पीढ़ी पहले जन्में थे। इससे ये तो साबित हो ही जाता है, भागीरथ के जन्म से कम से कम दस पीढ़ी पहले गंगा इस धरती पर मौजूद थी। 

      गंगा इस धरती पर हमेशा से मौजूद है। ये हम सभी जानते ही हैं काशी इस धरती की सबसे पुरातन नगरी है। गंगा के बिना काशी का कोई अर्थ नहीं, तो जब से काशी है तभी से गंगा भी है।

      ये सब कुछ राम के पूर्वजों से जुड़ा हुआ है। हरिश्चंद्र, भागीरथ के दस पीढ़ी पुराने पर दादा है। इतना तो अब प्रमाणित हो ही गया गंगा धरती पर भागीरथ के जन्म से दस पीढ़ी पहले इस धरती पर मौजूद थी। हरिश्चंद्र के जन्म के लगभग छह पीढ़ी बाद और भागीरथ के जन्म से चार पीढ़ी पहले राजा सगर का जन्म हुआ है।

       इन्हीं के साठ हजार पुत्रों को कपिल मुनि का श्राप लगा और वो जल कर भस्म हो गए। ये जो साठ हजार भस्म हुए लोग थे ये भागीरथ के परदादा ही थे। चूंकि ये श्राप ग्रस्त थे ये प्रेत हो गए थे, तो ये अपने उद्धार के लिए कुछ भी नहीं कर सकते थे।

      तो इनके वंशजों ने इनके उद्धार के लिए तपस्या की और सभी श्राप ग्रस्त पूर्वज मुक्त हुए, इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं है।

सत्य स्वयं ही बहुत कुछ कह रहा है, पहला तो जो इस धरती पर गंगा भागीरथ के जन्म से दस पीढ़ी पहले से मौजूद थी, उसमें मुक्त करने की क्षमता नहीं है। इतना हम ध्यान रखें मणि कर्णिका घाट पर पहले भी मुर्दे ही जलाए जाते थे। 

     हरिश्चंद्र मुर्दे ही जलाने का काम तो करते थे। अगर इस गंगा में मुक्त करने की क्षमता होती तो इसका एक लोटा जल उन श्राप ग्रस्त साठ हजार लोगों पर डाल दिया जाता और वो मुक्त हो जाते या फिर उनकी हड्डियाँ लाकर गंगा में डाल दी जातीं तो भी ये श्राप ग्रस्त साठ हजार लोग मुक्त हो जाते। 

    लेकिन ऐसा नहीं किया गया, बल्कि किसी अन्य गंगा को धरती पर लाया गया था। ये अलग बात है, हम सबकी हड्डियाँ तो इसी गंगा में जाती है। चलिए मान लेते हैं भागीरथ किसी और ही विशेष गंगा को धरती पर लाए थे। जब धरती पर एक गंगा पहले से ही मौजूद थी तो भागीरथ की गंगा कहां चली गई ? 

इस कथानक के अंदर एक छुपा हुआ जोड़दार तमाचा भी है, जो ये कहता है क्षत्रियों में कभी पुरखे या प्रेत बनते ही नहीं हैं | तो कर्म कांड किस बात के लिए ?  यदि प्रेत बनते होते तो समाधान भी लोगों ने खोजे होते ! अलग से गंगा को धरती पर लाना इसका अर्थ है, क्षत्रियों में प्रेत बनते ही नहीं हैं। 

     चूंकि वो श्राप ग्रस्त थे इसलिए वो प्रेत हुए। उस समय और आज के समय में कोई फर्क नहीं है। किसी के कर्म बहुत खराब हों तो वो प्रेत हो सकता है। किसका बंधन धरती पर किन कारणों से मुक्ति के तरीके भी अलग होते हैं। कोई अम्मा से बंधा है, कोई धन से बंधा है, किसी के आत्म सम्मान को चोट लगने के कारण जीवन ठहर गया, बंधन के अनगिनत कारण हैं तो मुक्ति के भी कई तरीके होंगें। 

      एक व्यक्ति लोहे की सांकल से बंधा हुआ है, दूसरा सोने की सांकल से बंधा हुआ है। लोहे की सांकल दूसरों को काटनी पड़ती है, इसमें गंगा भी सहायक हो सकती है, लेकिन सोने की सांकल से व्यक्ति को खुद ही मुक्त होना होता है। इस धरती पर लोहे की सांकल से करोड़ों करोड़ में से कोई एक बंधन ग्रस्त होता है। 

      मां धरती से बड़ी, बाप आकाश से बड़ा, घरवाली चारों धाम ये लोहे की सांकलें नहीं हैं। ऐसी निन्यानबे प्रतिशत सांकलें लोहे की नहीं होती हैं। यदि आप इस धरती पर चौरासी लाख योनियों के चक्कर में पड़े हैं तो ये प्रमाण है आपने खुद को ही इस धरती से बांध रखा है। इनसे व्यक्ति को खुद ही मुक्त होना होता है।

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