डॉ. अभिजित वैद्य
‘नमस्ते, बहनों और भाइयों’ इस जादुभरी आवाज की ओर हमारे देश के हर घर के करोड़ो लोगों का ध्यान हर बुधवार के दिन रात ८:०० बजे रेडिओ की ओर आकृष्ट होता था l इस समय रेडिओ पर ‘बिनाका गीतमाला’ अपना सुमधुर हिंदी गीतों का खजाना लेकर आती थी और यह आवाज थी गीतमाला के निवेदक अमिन सयानी की, और रेडिओ का केंद्र था ‘रेडिओ सिलोन’ l १९५२ से अगले तीन दशक इस जादुई आवाज ने तथा कार्यक्रम ने तमाम रसिकों का दिल बहलाया l बचपन में महाभारत की कथा सुनते समय किसी ने कहा था की, यही है उस रावण की ‘सोने की लंका’ l श्रीलंका की यह पहली पहचान । रावण अर्थात क्रूर दानव, सीता का हरन करनेवाला खलनायक । लेकिन यह रावण वेद-शास्त्र संपन्न, दशग्रंथी ब्राम्हण, पंडित था इसका उल्लेख भी होता था । वह स्वयं महान योध्दा था । उसका राजवाडा ही केवल सोने का नहीं था अपितु पूरा राज्य सोने का था । इसका अर्थ ऐसा है कि उसके राज्य में बड़ी मात्रा में सुबत्ता थी और आम जनता के मकान भी सोने के थे । तो उसी मात्रा में आदिवासी हनुमान ने उसकी लंका जला दी अर्थात प्रजा के निवासस्थान भी जला दिएँ । अगर रावण को सबक सिखानी थी तो उसकी प्रजाको सजा क्यों दिलवाई ? सच कहा जाए तो रावण ने सीता को स्पर्श भी नहीं किया । उसकी बहन- शूर्पनखा को लक्ष्मण ने कड़ी सजा दी । वजह थी उसने लक्ष्मण के साथ विवाह करने की इच्छा व्यक्त की । केवल इसी कारण अपनी बहन को किसी ने विद्रूप बनाया तो क्या उसका प्रतिशोध उसका भाई नहीं लेगा ? ऐसे अनेक सवाल खड़े होते हैं । आगे चलकर ‘पाचुचे बेट’ के नाम पर श्रीलंका फिर से नजर आई । अत्यंत प्राचीन इतिहास का साक्षी इस श्रीलंका के बारे में और एक आकर्षण रहा । इ.स. पूर्व ४७ में अनुराधापुर इस बड़े राज्य की अनुला नामक आशियाई विश्व के इतिहास में राज करनेवाली पहली रानी । भारत में महिला
प्रधानमंत्री होने से ६ वर्ष पूर्व, १९६० में श्रीलंका की पहली महिला प्रधानमंत्री सिरिमाओ बंदरनायके बनी । इ.स.पूर्व तीसरी शतीतक मुख्यतः हिंदू रहनेवाला यह देश सम्राट अशोक का पुत्र- महिंदा के आगमन के बाद बौद्ध बन गया । आज २२.५ करोड़ आबादिवाले इस देश में वहाँ के ७०% लोग बुद्ध, १२.६% हिंदू, ९.७% मुस्लिम तथा ७.४% ख्रिश्चन समुदाय के हैं । इस देश के ७५% लोग सिंहली, ११.२% श्रीलंकन तमील, ९.२% श्रीलंकन मूर तथा ४.२% भारतीय तमील वंश के हैं ।
ग्यारह साल पूर्व प्रकृति एवं इतिहाससंपन्न इस श्रीलंका को भेट देने का मौका मिला । रामायण का खलनायक रावण उनकी देवता है यह बात भी समझ में आई । वह स्वाभाविक था । धर्म से हिंदू रहनेवाले श्रीलंकन तमील लोगों की संघटना एलटीटीई (लिबरेशन टायगर्स ऑफ़ तमील इलाम) तथा मुख्यतः बुद्ध रहनेवाले मूल सिंहली, अगर संक्षेप में कहा जाए तो श्रीलंका सरकार के साथ उनका १९७६ से शुरू हुआ प्रदीर्घ एवं सशस्त्र यादवी युद्ध २००९ को ख़त्म होकर यह देश भयानक खून-खराबे के कालखंड से हाल ही में बाहर निकल पड़ा था । यह यादवी, तमील लोगों का स्वातंत्र्य युद्ध था । लेकिन वेलुपिलाई प्रभाकरन नामक मूल श्रीलंकन तमील नेता ने एलटीटीई की स्थापना करने स्वतंत्र तमील राष्ट्र के लिए सशस्त्र जंग शुरू की । एलटीटीई सीधे गुरीला, आतंकवादी संघटन था । इस यादवी युद्ध में करीबन लाख लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी । उस वक्त भारत के प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी तथा श्रीलंका के राष्ट्राध्यक्ष जयवर्धने के बीच १९८७ में हुए अनुबंध के अनुसार राजीव गांधी ने श्रीलंका की मदद हेतु भारत की ‘शांतिसेना’ भेज दी । भारत की तमील जनता को श्रीलंका के तमील लोगों पर हो रहे अन्याय का दुख होने के कारन उसकी हमदर्दी भी तमील इलाम को थी । १९९१ में राजीव गांधी प्रधानमंत्री नहीं थे । उस वक्त तमीलनाडू में चुनाव की प्रचार सभा में मानवी बम बनी एलटीटीई की महिला ने उनके शरीर के टुकडे टुकड़े कर दिए । २००९ में यह यादवी युद्ध समाप्त हो गया । जिनकी कालावधि में प्रभाकरन के एलटीटीई का श्रीलंका की फ़ौज की ओर से निःपात किया गया वही महिंदा राजपक्षे २०११ में राष्ट्राध्यक्ष थे । उनके बंधु गोटाबाया राजपक्षे अमेरिका के नागरिक होने पर भी देश बचाने के लिए स्वदेश कैसे पहुँचे, महिंदा ने उन्हें संरक्षणमंत्री पद पर नियुक्त करके गोटाबाया ने निर्धार एवं निर्दयता से तमील इलाम का खात्मा किस तरह से किया, यह भी मालूम हुआ । इस यादवी से श्रीलंका केवल सचेत नहीं हुआ अपितु ऊँची उडान लगने की तैयारी में है ऐसा लग रहा था । बाद में अनेक वर्षों तक श्रीलंका की आर्थिक उन्नति की बातें सुनने में आती थी । तमील इलाम का खात्मा करने के कारन
गोटाबाया प्रसिध्दि की चोटी पर पहुँच गए थे । एक निडर तथा निर्भय नेता के रूप में उनकी छवी बन गई । महिंदा ने भाई के पास नागरी विकास खाता भी सौंपा था । गोटाबाया ने एक के बाद एक भव्य प्रकल्पों की कड़ी जारी रखी । यह सब करते समय पर्यावरण की हानि हो रही है इसकी परवाह नहीं की गई । इतने बड़े और महँगे प्रकल्पों की देश को आवश्यकता है या नहीं इसके बारे में भी नहीं सोचा गया । यादवी युद्ध की खाई से बाहर आई हुई जनता को यह विकास सुखमय प्रतीत होता था । अपना देश तरक्की कर रहा है इस पर जनता को यकीं हो रहा था । एम.आर. अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाते वक्त उस जमीन पर रहनेवाले हाथी हटाएँ गए और स्थलांतर करके आए हुए पक्षी इसकी चपेट में आ गए । आगे चलकर यह ‘सफेद हाथी’ कुछ काम का नहीं रहा और हवाई जहाजों की यातायात न होने के कारण विश्व का सबसे ‘शांत हवाई अड्डा’ कहकर इसकी नोंद ली गई । ह्म्बनतोटा बंदर की भी ऐसी ही स्थिति थी । अंत में उसे चीन को ९९ साल के लिए किराए के तौर पर देना पड़ा । बड़ा क्रिकेट का स्टेडियम तैयार किया गया । श्रीलंका, भारत की तरह क्रिकेट से पागल देश । जनता अभिभूत हो गई । छह स्तर वाले दोहरागति के महामार्ग बनाएँ गए । गत अनेक दशकों में जनता ने इस तरह की प्रगति नहीं देखी थी, जनता भौचक्का हो रही थी । आगे जो हुआ वह काल की पेट में छिपा हुआ था । उस समय जनता की नजर में वह लोह्पुरुष एवं विकासपुरुष था । देश को अब ऐसे ही नेतृत्व की आवश्यकता है इसके बारे में जनता के मन में किसी प्रकार की आशंका नहीं रही । महिंदा ने अपने भाई की इस लोकप्रियता के आगे झुककर उसे राष्ट्राध्यक्ष पद की उम्मीदवारी घोषित की । गोटाबाया मूलतः श्रीलंका के फ़ौज के अधिकारी पुरी तरह से बीस साल फ़ौज में नौकरी करके, यादवी युद्ध में अनेक जंग हासिल करके, पदकों को प्राप्त करके उन्होंने १९९१ में स्वेच्छा निवृत्ति ली । १९९८ में साफतौर पर अमेरिका में स्थलांतर करके वहाँ ‘इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी’ में प्रवेश किया । २००५ में बंधू को मदद करने हेतु और देश को बचाने हेतु वे वापस आ गए और आगे का इतिहास आप सभी के सम्मुख है । उनका पूरा कार्यकाल हमेशा चर्चा का विषय रहा । एलटीटीई के विरुद्ध जब युद्ध छेड़ा गया तब गोटाबाया संरक्षणमंत्री थे और लष्कर का नेतृत्व कर रहे थे सरथ फोन्सेका । आगे चलकर इसी जनरल फोन्सेका ने गोटाबाया पर आरोप लगाया की एलटीटीई के जो सैनिक शरण में आएँ थे उनकी हत्या की । बगैर लश्करी तामिल जनता की भी हत्याएँ की गई ऐसा भी आरोप था । गोटाबाया ने जनरल फोन्सेका को ,’अगर ज्यादा मुँह खोला तो हत्या की जाएगी’ ऐसी सीधे तौर पर धमकी दी थी ऐसा कहा जाता है । १६ मार्च २०१५ को श्रीलंकन वाहिनी
को दिए हुए साक्षात्कार में गोटाबाया ने कहा था कि वे अमेरिका के नागरिक हैं और युद्ध गुनाहगार के रूप में अमेरिका उन्हें गिरफ्तार कर सकती है अत: अमेरिका में जाने की उनकी इच्छा नहीं है । २०१६ वे अमेरिका हो आएँ । अमेरिका ने उन्हें रोका नहीं । महिंद्रा बासिल, तथा गोटाबाया इन राजपक्षी बंधुओं को विरोध करनेवाले अनेक पत्रकार, मानव अधिकार कार्यकर्ता गूम होते रहे या उनपर जानलेवा हमला होता रहा । ५ दिसंबर २००८ को न्यूयॉर्क टाईम्स ने गोटाबाया पर समीक्षात्मक लेख लिखा । १६ अगस्त २०११ को ‘द हिंदू’ ने भी ‘हद से पार हुआ भाई’ शीर्षक के अंतर्गत उनपर लेख लिखा ।
गोटाबाया पर भ्रष्टाचार के भी अनेक इल्जाम हमेशा होते रहे । २०१५ में लश्कर में हो रहे भ्रष्टाचार के अनेक सबूत इंटरपोल द्वारा श्रीलंकन सरकार को सादर किए गए । २०१५ में श्रीलंका के न्यायालय ने इन पर प्रवास करने की पाबंदी लगाई क्यों कि उन्होंने लश्करी जहाज का खासगी तौर पर वाहन के रूप में इस्तमाल किया था । लेकिन दिसंबर २०१६ में वह हटाई गई । इतना होने पर भी महिंदा ने २०२० में गोटाबाया को ही अध्यक्षपद का उम्मीदवार के रूप में घोषित किया क्यों कि उन्हें गोटाबाया के विजय पर पूरा यकीन था । गोटाबाया अमेरिका के नागरिक हैं अतः वे श्रीलंका का झूटा पारपत्र इस्तेमाल करते हैं ऐसा आरोप विरुद्ध पक्ष की ओर से किया गया और उन्हें चुनाव लड़ने से पाबंदी करनी चाहिए ऐसी माँग की । न्यायालय की ओर से इन आरोपों का खंडन किया गया । राष्ट्रवाद,आर्थिक विकास तथा राष्ट्रिय सुरक्षा इन तीन मुद्दों पर उन्होंने चुनाव लड़ा और ५२.५% मत प्राप्त करके चुनाव जीत लिया । १८ नवंबर २०१९ को उन्होंने राष्ट्राध्यक्ष पद के सूत्र अपने हाथ लिए । उनका प्यारा संरक्षणमंत्री पद भी अपने पास रखा । २१ नवंबर को बंधू महिंदा की प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति की । शेष बंधुओं एवं रिश्तेदारों को मंत्रिमंडल से बाहर निकाला । हम परिवारवाद मानते नहीं ऐसा संदेश देशवासियों को देने का ये प्रयास था । क्यों कि महिंदा के मंत्रिमंडल में एवं सरकार में राजपक्षे परिवार के ४० सदस्य थे । यह परिवारवाद का कलस था । लेकिन गोटाबाया ने इसे छेद दिया । जनता और अधिक संमोहित हुई । गोटाबाया याने राष्ट्र ऐसा समीकरण बन गया । उन्हें विरोध याने देशद्रोह ऐसे माननेवाले भक्तों की कई फ़ौज तैयार हुई ।
अल्पावधि में पूरा विश्व कोरोना महामारी की चपेट में आ गया । गोटाबाया ने पहले तालाबंदी लगाने से मना कर दी लेकिन रुग्णों की संख्या बढ़ रही है यह देखकर सीधे संचारबंदी घोषित की । २ मार्च २०२० को लोकसभा भी विसर्जित की । देश लश्कर के हाथ में चला गया । लेकिन उन्होंने अपनाएँ हुए सख्त
नियमों के कारण महामारी बड़ी मात्रा में देश में नुकसान नहीं हुआ ऐसा जनमत रहा । जनता कृतज्ञ हो गई । नेता हो तो ऐसा । ५ अगस्त २०२० को सार्वजनिक चुनाव संपन्न हुए और उनके पक्ष ने अभुपुर्व यश प्राप्त किया । बहुमत बडी मात्रा में हाथ में आने पर गोटाबाया ने निर्णय लेने का सिलसिला जारी रखा । सभी निर्णय जनता ही नहीं अपितु मंत्रिमंडल को भी विश्वास में न लेते हुए अचानक तौर पर लिए गए । खेती के लिए अधिक जमीन उपलब्ध हो इसलिए संरक्षित वन भी खेती के लिए शीघ्र गति से उपलब्ध कराई गई । जंगलों का अस्तित्व श्रीलंका का वैभव तथा पर्यावरण की रीढ़ की हड्डी । इसके कारण जिन हाथियों के लिए श्रीलंका पर्यटकों में प्रसिद्ध है उन हाथियों का वास्तव्य धोखे में आने की शक्यता निर्माण हुई । रासायनिक खेती हानिकारक है और उसे रोकना होगा यह बात उनके ध्यान में आ गई । अप्रैल २०२१ में अचानक तौर पर रासायनिक खेती पर पाबंदी लगाकर पूरे देश में सेंद्रिय खेती अनिवार्य की गई । अनेक कृषि संस्थाओं ने यह कहने का प्रयास किया कि यह निर्णय धीर-धीरे अमल में लाना चाहिए । सेंद्रिय खेती कैसी करनी है इसका प्रशिक्षण किसानों को देना चाहिए । लेकिन अचानक तौर पर ऐसा किया गया तो रबर, चावल, सब्जी, फल तथा पूरा खेती की उत्पादन ही धोखे में आ जाएगा । अल्पावधि में रबर जलकर खाक हो गया । चावल का उत्पादन कम हो गया । चावल आयात करने की नौबत आ गई । १.२ बिलियन डॉलर्स अनाज के लिए तथा २०० मिलियन डॉलर्स अधिक सहायता के रूप में सरकार को देने पड़े । अंत में अप्रैल २०२२ में उन्होंने यह निर्णय बदल दिया और विश्व बैंक से ७०० मिलियन डॉलर्स के कर्ज की माँग की । २०१९ में चुनाव में दिए हुए आश्वासन को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में चुनाव में कपात घोषित की । एशियन डेवलपमेंट बैंक ने २०१९ में बताया था की श्रीलंका की अर्थव्यवस्थां दुगुना नुकसान (ट्वीन डेफिसिट) में है । इसका अर्थ यह है कि देश का राष्ट्रिय खर्च राष्ट्रिय उत्पन्न से ज्यादा होना । उस देश का उत्पादन भी कम होना । कोरोना महामारी के कारण श्रीलंका के पर्यटन क्षेत्र का तीन बिलियन डॉलर्स का नुकसान हुआ । बेरोजगारी बढ़ गई । इतने में ही गोटाबाया ने अचानक तौर पर ३०० से अधिक वस्तुओं की सूची तैयार की और इन चीजों को आयात करने पर पाबंदी लगाई । यह स्वदेशी का नारा था । भक्त बेफाम हो गए । श्रीलंका बड़ी मात्रा में तैयार कपड़ों की निर्यात करता है लेकिन कपड़ों को जो बटन लगाए जाते हैं उनकी आयात करनी पड़ती है । गाड़ियाँ तथा इलेक्ट्रॉनिक चीजों की आयात करनी पड़ती है । यह सब कुछ अचानक तौर पर बंद हुआ और उस पर जो व्यवसाय अवलंबित थे वे बंद हो गए । बेरोजगारी में वृद्धी हो गई । देश का उत्पादन सभी बाजुओं से घट गया ।
केंद्रीय बैंक भी अपनी मर्जी से चलाते थे । आर्थिक टूट पूरी करने के लिए देश पहले से ही विदेशी गंगाजली का उपयोग करता था । अब वही एक आधार शेष था । परिणामस्वरुप विदेशी चलन की गंगाजली दो वर्षों में ७०% तक घट गई । विदेशी कर्ज वापस करने की क्षमता खत्म हो गई । श्रीलंका का चलन डॉलर की तुलना में ३०% नीचे आ गया । ईंधन, अन्न, दवाइयाँ, बिजली तथा गैस की कमी महसूस होने लगी । १० से १३ घंटो तक बिजली बंद रहने लगी । फरवरी २०२२ में २.३१ बिलियन डॉलर्स शासकीय कोषागार में और ४ बिलियन डॉलर्स का कर्ज ऐसी स्थिति हो गई । जीवनावश्यक वस्तुओं, पेट्रोल तथा दवाई के लिए सैंकड़ो लोगों की कतारें लगने लगी । कागज न होने के कारण परीक्षाएँ रद्द होने लगी । पेट्रोल पंप पर लश्कर को तैनात करना पड़ा । इसके कारण अब जनता का धीरज ख़त्म होने लगा १३ मार्च २०२२ से देश में अशांति की ज्वालाएँ भड़कने लगी । निदर्शने शुरू हो गई । अनेक जगहों पर इसने हिंसक मोड़ ले लिया । ‘गो गोटाबाया’ ऐसे फलक हाथों में लेकर लाखों लोग सड़कों पर उतरने लगे । ३ अप्रैल को उनके सभी मंत्रिमंडल ने इस्तिफा दे दिया । १८ अप्रैल को उन्होंने १७ नए सदस्यों को लेकर नया मंत्रिमंडल घोषित किया । अब यह विकास पुरुष श्रीलंका की जनता के लिए कौनसी बीन बजाएगा और फिरसे जनता को संमोहित करेगा इसका जवाब आनेवाला वक्त ही बताएगा । इसी क्षक सोने की लंका भिखारी बन गई है यह सत्य है ।अल्पावधि में भिखारी बननेवाली सोने की लंका की यह कहानी । यह कहानी तथा इस कहानी का नायक इसमें और हमारे देश के किसी नेता में पूरी तरह से समानता दिखाई दी तो उसे केवल योग समझ लीजिए । विश्व के इतिहास में होनेवाली घटनाएँ वर्तमान को इशारा दे रही है इसकी गलतफहमी मत कीजिए । अन्यथा किसी मीठे सपने की निद्रा से आप जाग जाएँगे और आपकी आँखे खुल जाएगी ।