मुनेश त्यागी
अदानी पर हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट पर सरकार की चुप्पी ना काबिले बर्दाश्त होती जा रही है। अहम सवाल यह खड़ा हो गया है कि सरकार इस पर चुप क्यों है? कुछ लोग कह रहे हैं कि अडानी पर यह हमला, भारत पर हमला है। तो क्या अदानी भारत बन गया है?
भारत का सारा विपक्ष जिसमें कांग्रेस समाजवादी पार्टी जदयू सीपीआई सीपीआईएम नेशनल कॉन्फ्रेंस तामिल नाडु और आंध्रप्रदेश की पार्टियां, अडानी के भ्रष्टाचार पर जेपीसी की मांग कर रहा है। संसद को कई दिनों तक चलने नहीं दिया गया है, मगर सरकार इस गंभीर मुद्दे से भाग रही है। आखिर क्यों? उसे इस गंभीर मामले पर ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमिटी का गठन करने में क्या दिक्कत और परेशानी हो रही है?
अडानी घपले में 9 लाख करोड रुपए स्वाहा हो चुके हैं। शेयर बाजार ने लगातार बहुत बड़ा गोता खाया है। सरकार फिर भी मौनासन में है। आखिर क्यों? इस जनविरोधी हरकत पर भारत की मीडिया को सांप सूंघ गया है। उसने एकदम चुप्पी साध ली है। आखिर क्यों? इसका सबसे बड़ा कारण है कि भारत के मीडिया के अधिकांश हिस्से पर इस देश के पूंजीपतियों और अमीरों का कब्जा हो गया है। पूरा का पूरा मीडिया उनका गुलाम और आज्ञाकारी बन गया है। इसीलिए पूरा मीडिया इस मुद्दे से जैसे भाग रहा है और जैसे उसने इस मुद्दे को देखा और सुना ही नहीं है, इसीलिए उसने इस गंभीरतम मुद्दे की अनदेखी कर दी है।
आर एस एस इस मुद्दे को भटकाने की पूरी कोशिश कर रहा है। अब तो गजब हो गया है कि बीजेपी और आरएसएस दोनों ने अडानी के पक्ष में अपना रुख कर लिया है। बीजेपी के लोग अडानी के पक्ष में उतर आए हैं और r.s.s. इस मुद्दे को भटकाने के लिए इसकी जिम्मेदारी वामपंथियों पर थोपकर, इसे देश पर हमला करार दे रहा है। आखिर क्यों? इस देश की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी और आरएसएस इस मुद्दे में अडानी के समर्थन में क्यों उतर आए हैं? यह बात सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित करने वाली है। क्या उन पर अडानी का कोई कर्जा है या एहसान है और इस क़र्ज़ और एहसान को उतारने के लिए ही वे अडानी के पक्षधर हो गये हैं?
इस देश विरोधी और जग हंसाई कराने वाले मुद्दे पर सरकार, मीडिया और आर एस एस और अब तो बीजेपी की भी, सबसे ज्यादा जग हंसाई हो रही है। ये सभी मिलकर एकजुट हो गए हैं और गजब की बात है कि इतने बड़े फ्रॉड के मामले के आरोप के बावजूद भी ये सारी ताकतें घुमा फिरा कर अडानी के पक्ष में खड़ी हो गई हैं और वे इसे राष्ट्रवाद पर हमला बता रही हैं। आखिरकार इन तमाम संस्थाओं के रुख को देखकर हिडेनबर्ग ने एक बार फिर कहा है कि राष्ट्रवाद पर हमला कहकर, इससे नहीं बचा जा सकता। धोखाधड़ी को राष्ट्रवाद से नहीं ढका जा सकता। इसके बाद भी ये सारी ताकतें चुप हैं, इन्होंने बिल्कुल मौन धारण कर लिया है और इन सब ने किसी भी आरोप का जवाब देना मुनासिब नहीं समझा है। अब तो ऐसा लगने लगा है कि जैसे इन आरोपों का इनके पास कोई जवाब नहीं है और इन पर लगाए गए सभी आरोप सच हैं।
यहीं पर गौर करने वाली बात है कि भारत की सारी की सारी केंद्रीय एजेंसियां ईडी, सेबी, सीबीआई और इनकम टैक्स विभाग ने इस बहुत ही गंभीर मामले में गजब की चुप्पी और निष्क्रियता अपना रखी है। वे भी बिल्कुल मौनासन में चली गई हैं। इन तमाम एजेंसियों की यह गजब की चुप्पी, आनाकानी , लीपापोती और निष्क्रियता तो सबसे ज्यादा परेशान करने वाली और अखरने वाली है। आखिर सरकार इस देश को कहां ले जाना चाहती है?
यहीं पर यह एक अहम सवाल उठता है इतने सारे आरोपों के बाद भी अडानी ने हिंडेनबर्ग पर मुकदमा दर्ज क्यों नहीं किया है? हिंडेनबर्ग अपने द्वारा लगाए गए आरोपों पर आज भी कायम है, अपनी पूरी की पूरी रिपोर्ट पर कायम है और वह अडानी को लेकर आज भी हमलावर है। मगर इन तमाम आरोपों के बावजूद भी अदानी ग्रुप ने अभी तक हिंडेनबर्ग के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं है, उस पर कोई मुकदमा दायर नहीं किया है तो इसका मतलब यह हुआ कि हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट में काफी दमखम है, वह लगभग सच्चाई और तथ्यों पर आधारित है, इसलिए अडानी उसके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर रहा है और उसने समर्पण कर दिया है।
अब यहां पर मुख्य सवाल यह उठता है कि इस मामले में आगे क्या हो? देश की तमाम विपक्षी पार्टियां, जनवादी, प्रगतिशील और वामपंथी ताकतें, मीडिया लेखक कवि मिलकर भारत की आम जनता किसानों मजदूरों छात्रों नौजवानों के बीच में जनजागृति अभियान चलाकर, खतरे में डाल दी गई देश की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति की हिफाजत करें। सरकार, अडानी, आरएसएस और बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर देशव्यापी जनअभियान चलाएं और इन सभी ताकतों के जनविरोधी रुख और देशविरोधी कारस्तानियों की जनता के बीच इनकी पोल खोलें और तमाम जनता को इनके खिलाफ एकजुट कर, देश की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति की हिफाजत करें।